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बहुजन स्वराज पंचायत

सत्रों का शब्दांकन [Hindi Transcripts of Sessions]

दूसरा दिन: सत्र 4, 5 [Day 2: Sessions 4, 5]


शब्दांकन [TRANSCRIPT]

विडियो लिंक: https://www.youtu.be/QaUKU6EEnUI

8 अक्टूबर 2025: दूसरा दिन, सत्र 4 (शा. 11.00 से दो. 1.00): स्वराज


रामजनम:

मैं रामनाथन कृष्ण गांधी जी को इस सत्र के अध्यक्ष मंडल में मंच पर आमंत्रित करता हूँ. आप किसान आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। आप भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर भी रहे हैं। राम नाथन कृष्ण गांधी अध्यक्ष मंडल के दूसरे साथी समाजवादी आंदोलन के नेता अवधेश जी से निवेदन है कि आप भी मंच पर आए। अवधेश जी सिगौली में रहते हैं। इस सत्र के वक्ता गण नवनिर्माण किसान संगठन के नेता जो उड़ीसा से आए हैं उनसे निवेदन है कि आप मंच पे आए। अक्षय जी जी शिव रामकृष्णन जो बंगलौर से आए हैं। मैं उनसे निवेदन करता हूं कि आप मंच पर आए। शिव रामकृष्णन जी लोकविद्या जन आंदोलन के नेता हैं। आप समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं। इस सत्र के वक्ता राजेंद्र मानव जी से निवेदन है कि आप मंच पे आवें। राजेंद्र मानव जी किसान न्याया मोर्चा के नेता हैं। राजेंद्र मानव जी। और इस पंचायत में नौजवानों की एक टोली भी है। पढ़े लिखे नौजवानों की टोली है जो विभिन्न देश के विभिन्न संस्थानों में पढ़ाई कर रही है या पढ़ाई कर चुकी है पूरी कर चुकी है जो अपने को पगदंडी समूह बोलती है उस समूह से मैं आर्यमन जी से निवेदन करूंगा कि आप मंच पर आवे साथियों हम लोग इस पंचायत का विषय रखा था बहुजन समाज की पहल पे जो ये पूरा विषय है बहुजन समाज की पहल पर स्वराज निर्माण माफ करिएगा इस सत्र में एक वक्ता हैं रामजी सिंह हमको दिखाई नहीं दे रहे हैं यदि इस पंचायत में रामजी सिंह हो जो किसान सभा के अध्यक्ष हैं बनारस के तो वे भी मंच पर आए शायद नहीं दिख रहे हैं अब मैं कारवाई को आगे बढ़ा रहा हूं। कल हम लोग बहुजन समाज पे लंबी बातचीत किए और विभिन्न वक्ता बहुजन समाज पे अपनी बात रखी। हम उसी बात को आगे बढ़ा रहे हैं क्योंकि हम लोगों का मानना है जो हमको दिखाई देता है। जो लोग पंचायत आयोजित किए हैं जो जिनकी भूमिका है पंचायत आयोजित करने में जो उनको दिखाई देता है कि बहुजन समाज की जो राज परंपरा है वो स्वराज है। यहां लिखा हुआ है शायद सबको नहीं दिखाई देगा। बहुजन समाज की जो संत परंपरा है जो बहुजन समाज की परंपरा है वो संत परंपरा है। ये सारी बातें हम लोग इस फोल्डर में लिखे हुए हैं। हम उसी के इर्दगिर्द बात करना चाहते हैं। हम चाहते हैं ये बहुत सारे लोग मांगते हैं जो परिवर्तन चाहते हैं परिवर्तन का सपना देखते हैं वैसे बहुत सारे लोगों चाहते हैं और ये चीज उनको भी दिखाई देती है कि जो आज के दौर का परिवर्तन है उसकी शक्ति बहुजन समाज में है। ये मोटा मोटी बहुत तरह के लोग मानते हैं। लेकिन इस पंचायत का मकसद है कि उस शक्ति को उजागर किया जाए। हम कैसे उजागर करेंगे? उसके विभिन्न पहलुओं पे आज बातचीत करेंगे और उस दिशा में एक-आध कदम आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। इसी मकसद से हम इस बातचीत की शुरुआत करते हैं। तो मैं लंबा चौड़ा क्योंकि देखिए समय की अपनी मर्यादा है और हम चाह के भी मतलब कई तरह के लोग आ जाते हैं। इस पंचायत में जुड़ जाते हैं। विभिन्न सत्रों में जुड़ जाते हैं। हम लोग चाहते हैं कि उनकी बात भी सामने आए लेकिन हम लोग नहीं कर पा रहे हैं। हम लोगों ने तय किया था कि हर सत्र के बाद एक खुला सत्र होगा। कल उसका भी पालन हम नहीं कर पाए। लेकिन हम आज कोशिश करेंगे कि इस सत्र के बाद आधे घंटे का हमसे सवाल भी पूछे पूछे कुछ लोग कि हम लोग तो तय किए थे कि आधे घंटे का खुला सत्र रखेंगे। लेकिन प्रकी और समय के कारण कल बरसात शुरू हो गई पहले सत्र में तो हम लोग उसको नहीं कर पाए। दूसरे सत्र में समय के कारण वो खुली चर्चा नहीं कर पाए लेकिन आज कोशिश होगी कि वो आधे घंटे की खुली चर्चा हो। तो मैं वक्ता साथियों से भी निवेदन करूंगा कि सारे साथी अपनी बात 15 मिनट के अंदर समझने की कोशिश करें। मेरा निवेदन होगा तो मैं बातचीत को आगे बढ़ाते हुए पहले वक्ता के रूप में मैं शिवरामकृष्णन जी से निवेदन करूंगा कि आप आए और इस बात को आगे बढ़ाएं। शिवरामकृष्णन जी से निवेदन है जी आप आइए …

शिवरामकृष्णन:

नमस्ते! सिंस आई डोंट नो नो हिंदी आई कैन हार्डली फॉलो हिंदी यू शुड फॉरगिव मी इफ आई स्पीक इन इंग्लिश मे बी इट कैन बी ट्रांसलेटेड बट आई डोंट नो यस आई हैव बीन अ पार्ट ऑफ दिस …

रामजनम:

शिव रामकृष्णन जी अंग्रेजी में बोलेंगे और उसके बाद उसका हिंदी अनुवाद आर्यमन जी करेंगे। थोड़ा समय करेंगे। थोड़े-थोड़े समय दीजिए … पूरा नहीं आप …

शिवरामकृष्णन:

आई हैव बीन विथ बहुजन … काइंड ऑफ एन हेजिटेशन फ्रॉम अ लॉन्ग टाइम दो इट वास नॉट कॉल्ड बहुजन इन दोज़ डेज आई हैव बीन जनरली एसोसिएटेड विद एनी मूवमेंट और एनी ऑर्गेनाइजेशन दैट हैस द कंसर्न ऑफ द वेरी ऑर्डिनरी पीपल ऑफ इंडिया इवन व्हेन आई एस अ लेफ्टिस्ट वास पार्टिसिपेटिंग इन ट्रेड यूनियन काइंड ऑफ एक्टिविटीज एंड लेटर व्हेन आई जॉइ द पीपीएसटी एस अ फाउंडर मेंबर एंड टॉक्ड अबाउट साइंस एंड टेक्नोलॉजी इन इंडियन सोसाइटी अंडर रेलेवेंस ऑफ इंडिजीनस साइंस एंड टेक्नोलॉजी अंडर द इंस्पिरेशन ऑफ धर्मपाल जी …

[आर्यमन: शिवराम जी कह रहे हैं कि वो बहुजन आंदोलन के साथ बहुत लंबे समय से रहे हैं। हालांकि बहुजन आंदोलन के नाम से उनके पहले के संगठन ना रहे हो लेकिन खास करके जब वे ट्रेड यूनियंस के साथ एक वामपंथी विचार रखते हुए हैं तो इन्हीं मुद्दों पर उनका काम रहा है। बाद में पीपीएसटी नाम के एक समूह के साथ उन्होंने विज्ञान और तकनीकी पे भी सोचा।]

एंड व्हेन सुनील सहस्र्बुद्धे केम विद दिस आर्ग्यूममेंट ऑफ द बहुजन समाज एंड लोकविद्या एस द सेंट्रल पॉइंट ऑफ आवर मूवमेंट्स इन इंडिया एस्पेशली द इंटेलेक्चुअल काइंड ऑफ डिस्कोर्स दैट वी हैड देयर वास समथिंग वेरी वांटिंग इन दैट वी वेअर ऑल यूनिवर्सिटी प्रोडक्ट्स वी वेअर ऑल एजुकेटेड इन द मॉडर्न सिस्टम ऑफ़ एजुकेशन दो वी हैड सिंपथीस वि द इंडीजीनस एंड द डाउन ट्रॉडन वी डिड नॉट सी देम एस नॉलेज बेअरर्स आर पीपल हु आर केपेबल ऑफ प्रोड्यूसिंग नॉलेज इन देयर ओन वे एंड ट्रांसफॉर्मिंग सोसाइटी वी थॉट ऑफ देम एस बेसिकली कंज्यूमर्स आर वर्कर्स वि मसल्स एंड स्ट्रेंथ एंड हार्ड वर्किंग पीपल इट वास आई थिंक सुनील सहस्र्बुद्धेज़ इनसाइट दैट समवेयर अराउंड 90ज़ … लेट 90ज़ … ही फॉर्म्यूलेटेड दिस आर्ग्यूमेंट ऑफ लोकविद्या एव्री इंडियन ऑर्डिनरी पर्सन … नॉट ओनली इंडियन … ऑर्डिनरी ह्यूमन बीइंग इन पज़ेशन ऑफ नॉलेज एंड दिस नॉलेज इज वेरी इम्पौर्टन्ट …

[आर्यमन: उस दौरान सुनील सहस्त्र बुद्धे जी ने लोकविद्या और बहुजन समाज की बात हमारे बीच में रखी तो मुझे इस इस मुद्दे पर सोचने का मौका मिला। हालांकि हम लोग देशज लोगों के साथ संवेदना रखते थे। लेकिन फिर भी हम उन्हें एक उपभोक्ता के रूप में ही देखते थे और उनके ज्ञान और उनके कंट्रीब्यूशन को उस तरह से नहीं देख रहे थे। लेकिन जब 90 के दशक में लोकविद्या के बारे में बात कर करनी होनी शुरू हुई तब यह बात हमको साफ होने लगी।]

आई थिंक इट इज आफ्टर द वाराणसी कांग्रेस ऑन ट्रेडिशनल साइंस एंड टेक्नोलॉजी. विच वास राइटली, आई थिंक, कॉल्ड बाय सुनील सहस्रबुद्धे एंड दीज़ कॉमरेड्स हियर एस अ लोकविद्या काइंड ऑफ सेशन इन विच … यू नो … लोकविद्या बम द आर्गुमेंट अनलाइक द अर्लियर टू सेशंस ऑफ अवर कांग्रेस ऑन ट्रेडिशनल साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी आर्गनाइज्ड बाय द पीपीएसटी – वन इन बॉम्बे एंड द सेकंड वन इन चेन्नई – द लास्ट वन वाज़ इन वाराणसी, राजघाट – एंड देयर यू नो दिस आर्ग्यूमेंट केम अप इन बिग वे एंड इट इज़ देन दैट आई कंप्लीटली एसोसिएट माईसेल्फ वि दिस … अलोंग विथ पीपीएसटी आई आल्सो वाज़ अ मेंबर ऑफ़ दिस एंड आई हैव ट्रेवल्ड ऑल दीज़ इयर्स … आई हैव माय ओन क्वेश्चंस … आई हैव माय ओन डाउट्स … आई हैव माय ओन नो सपोर्ट फॉर दिस सिस्टम … बट देन आई एम वेरी ग्लैड दैट इट इज़ अलाइव एंड किकिंग एंड इट इज नॉट गोइंग टू डाई. आई एम शोर अबाउट दैट. बट देन इट हैस टू एक्वायर स्ट्रेंथ एंड आई एम … आई एम शोर दो … सेशंस लाइक दिस आर दी काइंड ऑफ़ ऑर्गेनाइजेशन दैट हैज़ बीन इन्वॉल्व इन दिस वुड स्ट्रेंथन दिस मूवमेंट एंड होपफुली इन द कमिंग इयर्स वी विल हैव अ काइंड ऑफ लार्जर मूवमेंट बेस्ड ओनली ऑन लोकविद्या एंड दिस कैन बी परहप्स दैट विल स्ट्रेंथन द फार्मर्स मूवमेंट और दी मार्जिनल वर्कर्स और इवन द अर्बन काइंड ऑफ वर्कर्स हु आर नाउ स्ट्रगलिंग विथ देयर ओन नॉलेज बेस एंड ट्राइंग टू कोप वि द सिस्टम दैट वी हैव एंड आई एम शोर दिस विल ग्रो इन स्ट्रेंथ एंड दैट इज व्हाई आई हैव कम ऑल द वे फ्रॉम फार दो आई डोंट अंडरस्टैंड मच ऑफ द डेलीबरेशंस हियर द स्पिरिट आई गेट बिकॉज़ द स्पिरिट इज व्हाट इज वेरी कॉमन टू ऑल द स्पीकर्स एंड द प्रोग्राम्स. आई थैंक यू एंड आई होप दिस विल ग्रो इन स्ट्रेंथ एंड आई विल कम अगेन टू वाराणसी टू विटनेस वेरी लार्जर काइंड ऑफ गैदरिंग एंड लार्जर पार्टिसिपेशन। थैंक यू।

[आर्यमन: 90 के दशक में जो लोकविद्या अधिवेशन बनारस में हुआ वो हमारे लिए लोकविद्या को समझने का एक अच्छा मौका था और लोकविद्या उसके लिए एक अच्छा शीर्षक भी था क्योंकि उससे पहले उस तरह की दो कॉन्फ्रेंस हो चुकी थी। एक चेन्नई में और एक बॉम्बे में जिसमें विज्ञान और तकनीकी की तो बात हुई थी। लेकिन जिस तरह से लोकविद्या का पक्ष इन मुद्दों को समझता है वह नया था और वह ज्यादा कारगर भी था। उस वजह से जब आगे घूमने का मौका मिला देश भर में तो चीजों को एक नए नजरिए से भी देखा और हालांकि उस उसको हमने समझा और उसके पक्ष में भी थे लेकिन फिर भी हमारे कुछ सपोर्ट रहा जो भी सिस्टम है आज का उसमें भी हम रहे लेकिन हमें लगता है कि आगे जाते समय लोकविद्या जो छोटे किसान हैं जो छोटे वर्ग के मजदूर हैं और जो शहरी लोग हैं उन सभी के लिए यह एक अच्छा ढांचा है जिसमें सबकी बात हो सकती है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह बात आगे लंबी जाएगी और आज जिस तरह से बात हो रही है इस तरह से आगे भी बातचीत होती रहेगी। यहां आने के लिए मेरा आप सबको आभार धन्यवाद।]

रामजनम:

धन्यवाद शिव राम कृष्णन जी साथियों ये जो बहुजन समाज है उसका एक बड़ा हिस्सा एक बड़ा हिस्सा इस देश का किसान कारीगर है और इस देश में हम सबको पता है कि पिछले 13 महीने तक अद्भुत किसान आंदोलन हुआ शायद दुनिया दुनिया में इस तरह का किसान आंदोलन नहीं हुआ है। मेरी अपनी जो जानकारी है उस आंदोलन के नेता और उस दौरान अद्भुत कार्यक्रम अक्षय जी लेते थे उड़ीसा से आकर के पश्चिम चंपारण से बनारस तक की यात्रा करना पैदल यात्रा करना तीन- 400 लोगों के साथ यात्रा करना क्योंकि उस दौर में कहा जाता था कि जो किसान आंदोलन है पूर्वी उत्तर प्रदेश में कमजोर है। सच में कमजोर था। उस तरह की गूंज नहीं थी। लेकिन ऐसे लोगों की यात्राओं के कारण कार्यक्रमों के कारण पूर्वी उत्तर प्रदेश में वो गूंज बढ़ी। उसके नेता नवनिर्माण किसान संगठन के नेता अक्षय जी हैं। मैं अक्षय जी से चाहूंगा कि आप आए और आज के विषय पर अपनी बात रखें। अक्षय जी …

अक्षय जी: [नवनिर्माण किसान आन्दोलन]

बहुजन स्वराज पंचायत के ये दूसरा दिन में इस कार्यक्रम के इस सत्र के अध्यक्ष संचालक महोदय रामजनम जी, मंचासीन मित्र यही इसका प्रतिष्ठाता जिन्होंने इनको इसको जिस स्त्रोत को लेकर आगे बढ़े हैं आदरणीय सुनील जी सुनील शाह जी और यही मेरा बहन परिमिता जी और सबको मेरा हार्दिक प्रणाम बात यह है कि बहुजन स्वराज पंचायत का बात आती है तो मुझे जहां तक समझ है अगर स्वराज का बात बोलते हैं तो उसमें बहुजन समाज उसका अंदर समाहित है। स्वराज जो मूल पहचान है जिसका आधार पर भारतीय समाज खड़ा था। अंग्रेज आने का बाद जो समाज स्वराज आधारित था स्वराज व्यवस्था को लेकर केंद्र में कृषि थी और उसके अनुरूप परिधि में चाहे शिल्प हो वाणिज्य हो संस्कृति हो शिक्षा हो हर चीज उसका अनुरूप ढांचा में नहीं थी। मगर जैसे अंग्रेज आए कृषि को केंद्र से हटाकर परिधि में ले गए और केंद्र में जो हैवी इंडस्ट्रियलाइजेशन का जो भारी उद्योग का जो मास प्रोडक्शन नहीं कि प्रोडक्शन फॉर द मासेस उत्पादन बहुगुणित उत्पादन ना कि जनता के लिए कितना उत्पादन जरूरी है वो नहीं उस बहुगुणित उत्पादन आधारित जो सिल्व का व्यवस्था है उसको केंद्र में ले आए और उस अनुरूप पहले कृषि के लिए सिल्व था बाद में शिल्प के लिए कृषि बन गई और उस कृषि से लेकर एग्रीकल्चर से लेकर हर चीज उस भारी उद्योग के मुताबिक अनुरूप ढांचा बन गया और ये आगे बढ़ते गया अंग्रेज जाने का बाद में आगे बढ़ा पर अंग्रेज जाने का पहले उसमें जो फाइनेंस कैपिटल है जो वित्तीय पूंजी है उसको थोड़ा सा प्रारंभिक उसका जो स्वरूप है उसको बनाकर गए और 90 तक जब ग्लोबलाइजेशन वैश्वीकरण जिसको जगतकरण बोलते हैं वैश्वीकरण बोलते हैं उदारीकरण निजीकरण जो एलपीजी का दौर आया 90 का बाद ग्लोबल फाइनेंस कैपिटल वो पूरा केंद्र में आ गया। भारी इंडस्ट्री हो, कृषि हो, कोई भी चीज हो उसको पछाड़ दिया। सबको परिधि में ले गए। और अभी ग्लोबल फाइनेंस कैपिटल जो है वैश्विक वित्तीय पूंजी जो है वो केंद्र में है और उसका अनुरूप पूरा पूरी व्यवस्था में चाहे कृषि हो उद्योग हो कोई भी चीज हो शिक्षा हो सभ्यता हो कल्चर हो कोई भी चीज हो उसका अनुरूप बना दिया गया है और स्वराज स्वराज का जड़ स्वराज का जो रीड है उसको तोड़ दिया है। इसलिए सवाल उठता है आज उसको कैसे प्रतिरोध करके काउंटर करके हम एक स्वराज आधारित इस बहुजन समाज को खड़ा करें। अपने विचार जो है जब हम उसका अर्थव्यवस्था उसका संस्कृति उसका सभ्यता उस मुताबिक शिल्प हर चीज का बात करते हैं तब भूल जाते हैं। उस अनुरूप एक राजनीति भी जरूरत है। वैश्य वित्तीय पूंजी को केंद्र में रखते हुए जो आज का व्यवस्था बनी है जो व्यवस्था स्वराज का रीड को तोड़ दिया है उसके लिए एक राजनीतिक चेतना एक राजनीतिक विकल्प जो उस स्वराज की व्यवस्था को स्थापित करने के लिए अगर और उस वैश्विक पूंजी का वैश्विक वित्तीय पूंजी का जो बोलबाला है जो केंद्र में बैठाकर उसका अनुरूप व्यवस्था बना दिया गया है उस को तोड़ने के लिए और इस स्वराज को स्थापित करने के लिए जब तक एक नई राजनीतिक चेतना जो स्वराज को स्थापित करने के लिए जरूरत है उस स्वराज को स्थापित करने के लिए उस राजनीतिक चेतना का एक संगठित रूप में पेश करने के लिए एक राजनीतिक विकल्प स्थापित नहीं होगा तब तक शायद मुझे नहीं लगता है हम उस व्यवस्था को स्थापित कर पाएंगे। उस वित्तीय पूंजी को केंद्र में रखते हुए उस वैश्विक वित्तीय वित्तीय पूंजी को केंद्र में रखते हुए हम कोई नई विकल्प की और इस स्वराज की बहुजन समाज को स्थापित करने के लिए जो स्वराज का जरूरत है उसको हम आगे बढ़ा पाएंगे। यह अपने विचार है। बाद में बातचीत धन्यवाद।

रामजनम:

धन्यवाद अक्षय जी। अब मैं इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए किसान न्याय मोर्चा के राजेंद्र मानव जी से निवेदन करूंगा कि वह आए और अपनी बात रखें। राजेंद्र मानव जी।

राजेंद्र मानव:

बहुजन स्वराज पंचायत का आज दूसरा दिन का पहला सत्र चल रहा है। बहुजन स्वराज पंचायत मंच पर अध्यक्ष मंडल से अनुमति लेते हुए मैं अपनी बात को प्रारंभ करूंगा और आज के संचालक साथी रामजनम जी का मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूं कि कल मंच नहीं आ पाया जो है कि कारणों से हमारे बड़े भाई साहब का देहांत हो गया था परिवार में इसलिए मैं नहीं आ पाया। आज मैं उपस्थिति दर्ज किया हूं। मनुष्य मानव की उत्पत्ति जिससे होती है मैं उसकी पहले मैं जयकार करना चाहता हूं। आप लोग भी उसकी जयकार करेंगे। मातृ शक्ति जिंदाबाद। जिंदाबाद मातृ शक्ति जिंदाबाद जिंदाबाद हम लोग सिर्फ मातृ शक्ति की उत्पत्ति है इसलिए उसका जिक्र करना जरूरी है। मैं अपनी बात को कहने से पहले मैंने इसी बहुजन स्वराज पंचायत के संदर्भ में एक रचना कविता लिखा हूं 17 सितंबर को मैं उसको आपके सामने रखता हूं। उसके बाद अपनी बात को रखूंगा।

बहुजन चेतना द्वारा सुर साधना का मार्ग प्रशस्त कैसे होगा इस कविता में आपको मिलेगा शीर्षक है: “यही है बहुजन स्वराज का पैगाम हमारा”

समता मूलक समाज हो हमारा यही है बहुजन स्वराज का पैगाम हमारा

100 में 90 भाग हो हमारा यही है बहुजन समाज का सपना हमारा

जिसकी जितनी हो संख्या भारी उसकी उतनी हो समाज में भागीदारी

सच को सच कहना हो राष्ट्रद्रोही तो समझो हम है क्रांतिकारी

अखंड भारत अगर हो खंडित राष्ट्र हमारा तो बचाना यही है कर्म हमारा

मौलिक अधिकार पर हो हमारा हमला करो तो संविधान रक्षा है धर्म हमारा

बहुजनों में हो आपसी भाईचारा तो बहुजन एकता का पूरा हो मिशन हमारा

बहुजन एकता का बुलंद हो नारा इज्जत और रोटी है अधिकार हमारा

बहुजन वैचारिक एकता का मकसद हो हमारा बहुजन का स्वराज स्थापित हो हमारा

बहुजनों को मिले अपनी-अपनी भागीदारी तो हो सामाजिक न्याय का पूरा मिशन हमारा

अधूरा बहुजन स्वराज से समाज हमारा, अंधकार में है भविष्य हमारा

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का अधूरा हुआ सपना हमारा

संपूर्ण बहुजन स्वराज की हो स्थापना तभी होगा समता मूलक समाज हमारा

मानव समाज में मानवता कायम हो हमारा यही है बहुजन स्वराज आज का पैगाम हमारा

ये हमारी काव्य रचना थी। अब इसके बाद हम अपनी बात को रखेंगे। बहुजन स्वराज पंचायत। मैं आठ बिंदुओं पर अपनी बात को रखने का प्रयास करूंगा। पहला बिंदु होगा बहुजन का अर्थ बहुजन सामान्य जन बहुसंख्यक सेप अभिप्राय नहीं है। क्योंकि हम जाति विशेष से बहुत संख्या की बात समझ लेते हैं। लेकिन बहुजन का अर्थ है सामान्य जीवन जीने वाला बहुजन समाज। और बहुजन का जीवन जो होता है वह सहज, सरल और सहभागिता पर आधारित होता है। बहुजन की समाज में भूमिका सृजनकर्ता और शिल्पकार की होती है। बहुजन प्रकृति प्रेमी होता है। प्रकृति से उसका बहुत लगा होता है और पर्यावरण का संरक्षक भी होता है। बहुजन बहुजन का जो जीवन होता है वह जल, जमीन और जंगल से जुड़ा हुआ होता है। बहुजन का सामाजिक जीवन बहुजन कर्म ज्ञान की महान विरासत है। कर्म और ज्ञान दोनों का महान विरासत है। बहुजन समाज अब हम आते हैं ऐतिहासिक रूप से बहुजन शब्द का महत्व और आधुनिक इतिहास में इसका संदर्भ क्या है? 19वीं और 20वीं शताब्दी में सुधार आंदोलनों से सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले सत्यशोधक समाज का निर्माण करके उन्होंने आंदोलन चलाया। 1837 में महामानव डॉक्टर अंबेडकर के नेतृत्व में 20वीं सदी में बहुजन शब्द सामाजिक न्याय और समानता के आंदोलन का प्रतीक बना। महात्मा गांधी जी की पत्रिका है हरिजन। 1 फरवरी 1933 में बहुजन हित या बहुजन समाज जैसे मुद्दों को लेकर 1933 से 1940 तक सामाजिक सुधार और असप्रियता उन्मूलन आंदोलन गांधी जी ने चलाया। अब हम आते हैं अगला बिंदु आजादी के बाद इस समय हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं। लिखा हुआ है लोकतंत्र लेकिन लोकतंत्र है नहीं। लोक का तंत्र कैसे स्थापित होगा? वो बहुजन स्वराज से ही स्थापित होगा। आजाद भारत में विभिन्न राज्यों में अपने मौलिक अधिकारों के लिए लोगों ने संघर्ष किया। जिसमें वंचित वर्गों के बीच बहुजन चेतना आधुनिक युग में केरल आंध्र प्रदेश में देवदासी प्रथा पहले थी उसके खिलाफ लोगों ने आंदोलन चलाया। महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन चलाया। तमिलनाडु मद्रास में रामास्वामी नायकर ने समाज के कमजोर वर्गों और महिलाओं के अधिकार के लिए उन्होंने संघर्ष किया और बहुजन राजनीति मान्यवर कांशीराम ने बहुजन समाज को सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण के माध्यम से आंदोलन किया और उन्होंने नारा भी दिया वो नारा था जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी। अब इसके बाद हमारा अगला बिंदु है राजसत्ता बनाम स्वराज। आजादी के बाद बहुजन समाज में राजनीतिक और सामाजिक चेतना का विकास हुआ। तथा केंद्रीय व राज्य स्तर पर बहुजन समाज की भागीदारी भी बढ़ी। साथ ही राजनीतिक नई पार्टियों का उदय भी हुआ। कानूनी और संवैधानिक अधिकार के साथ आरक्षण की नीतियों का भी काफी तेजी से उसका पालन भी हुआ। उसका लाभ मिला बहुजन समाज को। इसके कारण आरक्षण की नीतियों के कारण शिक्षा रोजगार और सरकारी पदों पर बहुजन समाज की पहुंच बढ़ी। इसके बावजूद भी आज तक संपूर्ण स्वराज का सपना पूरा नहीं हुआ। नई राजनीतिक पार्टियों और जातिगत संगठनों के माध्यम से सत्ता पाने की चाह अधिक प्रबल हो गई। बहुजन स्वराज का सपना अधूरा दिखाई देने लगा। जिससे बहुजन समाज के अंदर जात बनाम जाति गुदबंदी दिखाई पड़ने लगी। बहुजन स्वराज की स्थापना जाति विकास के बजाय बहुजन सामुदायिक विकास की जरूरत है। उस पर बल देने की जरूरत है। बहुजन सामुदायिक विकास अर्थात बहुजन स्वराज स्थापित करने के लिए संपूर्ण पीत शोषित वंचित जातियों की भागीदारी के लिए चिंतन और मंथन करने की जरूरत है। पूर्व संघर्षों और आंदोलनों से हमें सीख लेते हुए जैसे महात्मा ज्योतिबा फुले के सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक विकास के साथ ही लिंग समानता भी जरूरी है समाज में। महामानव डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय। तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति आंदोलन के संदर्भ में बस दो मिनट में खत्म कर देंगे। कहने का तात्पर्य है कि सिर्फ राजनीतिक चेतना से स्वराज की स्थापना नहीं होगी। हमें स्वराज की स्थापना अगर करनी है तो बहुजन वैचारिक एकता बनानी पड़ेगी और बहुवचन वैचारिक एकता के माध्यम से बहुजन समाज के पहल पर उनकी सभ्यता इतिहास दर्शन संस्कृति कला तथा मानवता मानवीय मूल्य मानवीय संवेदना

रामजनम:

साथियों आज के इस सत्र में कई साथी हमको दिख रहे हैं जो लगातार ये जो बहुजन समाज है इस देश का किसान कारीगर समाज है उनके सवालों को ले लड़ते रहे हैं लड़ते रहे हैं और तमाम तरह के अभियानों को आगे बढ़ाते रहे हैं उनको हम इस हाल में देख पा रहे हैं। कृषि भूम बचाओ मोर्चा के नेता अमरनाथ यादव जी हैं। गाजीपुर से सामाजिक न्याय आंदोलन आजमगढ़ से राजेंद्र यादव जी दिख रहे हैं और इस शहर के बहुजन हमारा मानना है बहुजन समाज के पत्रकार साथी डॉक्टर शिवदास प्रजापति दिख रहे हैं। मनरेगा मजदूरी यूनियन के साथी सुरेश राठौर हैं। और हमारे बीच इस सत्र के वक्ता जिनको हम इस सत्र के का वक्ता बनाए थे। साथी राम जी सिंह दिख रहे हैं किसान सभा के अध्यक्ष बनारस के। हम सभी का स्वागत करते हैं और राम जी सिंह जी से निवेदन करेंगे कि आप मंच पे आए। आप देर से ही सही आप मंच पर आए और आज इस सत्र में अपनी बात भी रखें और मंच पर भी आए। साथी रामजी सिंह यादव रामजी सिंह जी राम जी सिंह किसान सभा के जिला अध्यक्ष हैं। और ये जो बहुजन समाज की किताब है उसमें आप एक लेख भी लिखे हैं। साथी रामजी सिंह जी आइए सीधे आ जाइए। अभी बोल के बैठिए।

रामजी सिंह: [बनारस जिला अध्यक्ष, किसान सभा]

आज इस बहुजन पंचायत बहुजन स्वराज पंचायत के अध्यक्ष और संचालन कर रहे हमारे किसान नेता साथी रामजनम जी और हमारे सामने और मंच पर बैठे हुए विभिन्न सोच विचार के और विभिन्न आंदोलनों के नेताग साथियों जो विषय रखा गया है बहुजन स्वराज पंचायत मैं जहां तक समझता हूं कि इस देश के अंदर बहुत पहले से ही इस स्वराज स्वराज के लिए इस बहुजन स्वराज के लिए काम शुरू हुआ था। वह अलग बात है कि इस बहुजन स्वराज के लिए जो पंचायत शुरू हुई थी वह कहीं दूसरी दिशा पकड़ लिया और हम किसी दूसरी दिशा की तरफ उसे ले जाना चाहते थे और अभी भी हमारा प्रयास है कि हम इस बहुजन के पंचायत को उनके स्वराज तक पहुंचावे। यह हमारा काम है और आज के इस पंचायत का या सात, आठ और नौ अक्टूबर को जो पंचायत हो रही है विद्या आश्रम में हम समझते हैं कि उसका मकसद यही है। देश के अंदर जमींदारों के खिलाफ, राजाओं के खिलाफ और देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जो आंदोलन खड़ा था उसका भी मकसद यही था जिस मकसद के लिए हम सब यहां इकट्ठा हैं। लेकिन उसमें बहुत से भी विचारधारा के लोग थे। उस आंदोलन में बड़ी कई विचारधारा के लोग थे। हम समझते हैं कि उसमें हम अपना जो महत्वपूर्ण योगदान होना चाहिए था या उस बहुजन समाज की जो बड़ी हिस्सेदारी होनी चाहिए थी उस आंदोलन में जिसके माध्यम से उस आंदोलन को मैं बहुजन स्वराज की तरफ ले आते उसमें हम समझते हैं कि हम लोगों ने कुछ कमजोरी बरती है। इस देश के अंदर आजादी का जो आंदोलन था और आजादी के आंदोलन के जो अगवा के रूप में थे उनका जो मिशन था उनके जो कार्यक्रम थे उनकी जो घोषणाएं थी वह सारी घोषणाएं यही थी कि देश का वह बहुजन समाज जो मेहनत करके अपने हुनर से अपने भी जीता है। परिवार को जिलाता है और दूसरे लोगों को भी भोजन का इंतजाम करता है। दूसरे लोगों को वस्त्र तैयार करता है। चश्मे बनाता है, जूता बनाता है, साइकिल बनाता है, इत्यादि चीजें जो बनाता है, उपलब्ध कराता है। इनके जीवन को सिर्फ संरक्षित करने का काम ही नहीं इनके जीवन को एक बेहतर बनाने का जो हमारा लक्ष्य है उस लक्ष्य की तरफ हम बढ़ रहे हैं और वह इस देश की आजादी और इस देश का स्वतंत्रता है उसको पाने के लिए हम आप सबको इस आंदोलन में शामिल करते हैं। ऐसा ही हमारे देश के क्रांतिकारियों ने और देश की आजादी के आंदोलन के नायकों ने ऐसा ही हमारे सामने अपना मंतव्य पेश किया था। देश को आजादी मिली लेकिन आजादी के बाद जो जो समय बीतता गया तस्वीरें बदलती गई और आज का दौर लोग अलग-अलग हमने पहले ही कहा कि विभिन्न विचारधारा के लोग उस आंदोलन में सम शामिल हुए और आज भी विभिन्न विचारधारा के लोग ऐसे पंचायतों में भी शामिल है जो बहुजन स्वराज दिलवाना चाहते हैं। बहुजन का स्वराज स्थापित करना चाहते हैं। तो उस बहुजन के बहुजन स्वराज को स्थापित करने में जो देश का हर वर्ग है उस हर वर्ग की अपनी अलग-अलग समस्याएं हैं। और उन समस्याओं को उठाए बगैर हम उन वर्ग को संगठित नहीं कर पाते। और जब तक बहुजन समाज जो विभिन्न वर्गों में बटा हुआ है और विभिन्न वर्ग में बटने के नाते उनकी अपनी अलग-अलग समस्याएं हैं। तो इसलिए एक छतरी के नीचे तुरंत आकर के वो अपने लिए स्वराज स्थापित करने का काम नहीं कर पाता है। इसलिए उन बौद्धिक लोगों का भी एक बड़ा काम बनता है। जो इस तरह की पंचायतते आयोजित करते हैं या देश दुनिया के अंदर इस तरह के काम में लगे हुए हैं कि देश का शोषित वंचित वर्ग जो आजादी के बाद अभी भी उसी पायदान पर है जिसको आगे बढ़ना चाहिए था उसकी तरक्की नहीं हुई है। उसके लिए काम करने वाले लोग हैं। उन सबका और हम सबका दायित्व बनता है और साथ ही साथ बहुजन समाज जो है जिसे हमें बताना पड़ेगा कि आखिर बहुजन समाज है कौन वो जातियों के आधार पर नहीं धर्मों के आधार पर नहीं वह जिस तरह के पेशे में लगे हुए हैं उस तरह के पेशे के आधार पर देश का बहुत बड़ा हिस्सा बड़ी आबादी जो शहरों के अंदर और देहातों के अंदर लगी हुई है। यह बहुजन समाज है और इसको संगठित करने का काम हमारा आप सबका और इस तरह के चिंतन करने वाले लोगों का होता है। जो इस तरह के सभाएं आयोजित करते हैं, पंचायतते आयोजित करते हैं, मीटिंग आयोजित करते हैं, उनका सबसे बड़ा काम बनता है। हम समझते हैं कि देश की आजादी के बाद अब देश का के आबादी का बड़ा हिस्सा यह महसूस करने लगा है कि अंग्रेजों से ज्यादा वर्तमान समय में जनता की दुर्दशा हो रही है। और इस दुर्दशा को रोकने के लिए जितने भी लोग जो बुद्धिजीवी वर्ग के हैं या किसी तरह कलाकार हैं, एक्टिविस्ट हैं, किसी भी तरह के लोग हैं। उनकी एक बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि बहुजन समाज को बहुजन समाज को लोगों के बीच प्रचारित करें कि आखिर बहुजन समाज का कौन-कौन हिस्सा है और उस हिस्से को संगठित करते हुए और विभिन्न वर्गों के जो लोग हैं, विभिन्न विचारधारा के जो लोग हैं उन्हें भी एक छतरी के नीचे ले आकर के एक पुनः फिर से बहुजन समाज के लिए उनके स्वराज के लिए सिर्फ पंचायत ही नहीं उसके लिए एक बड़े आंदोलन की जो जरूरत है उस जरूरत को आगे बढ़ाएं जिसमें मैं अपने को भी शामिल करता हूं। इंकलाब जिंदाबाद। बहुत-बहुत धन्यवाद।

रामजनम:

साथियों इस बातचीत को आगे बढ़ाते हुए मैं साथी आर्यमन को अनुरोध करता हूं कि आए क्योंकि आर्यमन का समूह पूरे देश में घूम रहा है। कुछ तलाश रहा है वो इस पंचायत को इस पहल को जो हम पहल मानते हैं इस पहल को कैसे देखते हैं बताएं साथी आर्यमन

आर्यमन:

बहुत-बहुत धन्यवाद रामजनम जी यहां पे उपस्थित मेरे सारे अग्रज और साथी आप सबको मेरा नमस्कार सलाम पहली बात तो मुझे लगता है कि मैं ये कहना चाहूंगा कि हम लोग यहां आए हैं और युवा होने के नाते बहुत कुछ सीखने को है और पहले तो हम अपनी समझ बनाने के लिए यहां हैं लेकिन फिर भी क्योंकि आपने आग्रह किया है तो जो मन में विचार चल रहे हैं और खास करके कुछ जो सवाल हैं और हमारी उस पर क्या प्रक्रिया है उसको मैं आपके बीच रख रहा हूं। आप सारे ही जो लोग यहां उपस्थित हैं आप अपने अपने क्षेत्र में चाहे वो राजनीति हो या सामाजिक कार्य हो या बौद्धिक जीवन हो उसमें आप लोग अग्रणीय रहे हैं। बड़े अनुभवी हैं और इस साथ को पाने का हमें एक सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इस तीन दिन में आप सभी से जगह-जगह पर मुलाकात हो रही है, बातें हो रही है, सुनने का मौका मिल रहा है। बहुत कम मेहनत में इतना कुछ सीखने मिल रहा है। मुझे लगता है कि उसके लिए हम काफी आभारी हैं। उसी के साथ-साथ यहां स्वादिष्ट भोजन बन रहा है। उसका भी हमें सौभाग्य प्राप्त है। सुबह मंडली को सुनने का मौका मिला। वह भी हमारा सौभाग्य है और इस तरह से आपने हमारी शिक्षा की भी बात की कि अलग-अलग जगह से हम लोग शिक्षा ले आए हैं। तो एक तरह से वो हमारा सौभाग्य भी है। लेकिन हमारे सामने हमारे दैनिक जीवन में या व्यावहारिक जीवन में कुछ मजबूरियां भी हैं और उन मजबूरियों को मैं थोड़ा सा आपके सामने रखता हूं क्योंकि हम लोग जिन घरों में पैदा हुए हैं वो किसी इतिहास से गुजरे हैं तो आज उनकी यह स्थिति है कि लोकविद्या जैसी चीज को वो समझते नहीं है। तो हमारा जो पहला जीवन का काल है जिसमें हम शिक्षा प्राप्त करते हैं उसमें हमारी सारी की सारी शिक्षा आधुनिक शिक्षा तंत्र से हुई है। लोकविद्या का जो आभास है वो हमें बहुत बाद में हुआ है। तो मैं इसको समझता हूं यह एक मजबूरी है क्योंकि जो रस लोकविद्या में है वह रस आधुनिक जीवन के आधुनिक शिक्षा तंत्र में नहीं है। वो जीवन के रस के स्रोत से बहुत दूर है। एक उदाहरण के तौर पर अगर मैं खुद का निजी शिक्षा की बात करूं। मैंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और सिविल इंजीनियरिंग क्योंकि आजकल इतने सारे नौजवान इंजीनियरिंग की एंट्रेंस एग्जाम की दौड़ में लगे हुए हैं। हमें देखना चाहिए कि पढ़ाया क्या जा रहा है। अंत में मुझे यह पढ़ाया गया कि नदियों पर बड़े बांध कैसे बनाने हैं। हमें यह पढ़ाया जाता था कि नदियों से निकाल के कनालों से हरित क्रांति के खेतों में पानी कैसे पहुंचाया जाए। हमें यह पढ़ाया गया कि नदी से पानी लेकर के शहरों में अपना मल मूत्र साफ करने की व्यवस्था कैसे बनाई जाए और नदियों को इस तरह से अपने मल मूत्र से संहित कर दिया जाए। वही नदियां जिनको हमने अपनी पवित्र माताएं माना है। वही नदियां जिनसे सिर्फ पीने का पानी लिया गया है। तो क्या ये जो शिक्षा हमें मिली है इसका आधार नैतिक है? क्या इस शिक्षा में निकले हुए नौजवान जब समाज बनाएंगे उस समाज का आधार शांति और न्याय हो सकता है। ये हमारे लिए एक बड़े सवाल है। ऐसा नहीं है कि इस देश में सिविल इंजीनियरिंग का डिसिप्लिन आने से पहले गृह निर्माण नहीं हो रहा था। ऐसा नहीं है कि भवन नहीं बने हैं। यहां पे अजंता एलोरा से लेकर के बड़े-बड़े भवन बने हैं। राजाओं के महल भी बने हैं। छोटी-छोटी कुटियाएं भी बनी है। तो क्या उसमें ज्ञान नहीं था? ज्ञान में फर्क क्या है? आज या या आप आर्किटेक्चर के कॉलेज देख लीजिए या फिर सिविल इंजीनियरिंग के कॉलेज देख लीजिए। कुल मिलाकर के चार साल आपका जीवन वहां लगता है और आपको सिर्फ दो मटेरियल के भवन बनाने आते हैं। सीमेंट और स्टील और सीमेंट और स्टील जिसके हमें बड़े फायदे बताए गए हैं कि पक्का मकान बनाने से आप विकसित हो जाते हैं। उसकी कीमत क्या है? स्टील निकालने के लिए आपको एक बड़े क्षेत्रफल से जंगल काटना है। जंगल में रह रहे शांतिपूक लोगों को वहां से विस्थापित करना है। वहां की मिट्टी खराब करनी है। वहां की नदियां खराब करनी है। तब जाकर के आप वहां से लोहा निकालेंगे। उसके बाद कोयला निकालेंगे और वहां से जाकर आपका जब स्टील बन जाता है तब उसको फिर सीमेंट में मिलाएंगे। और सीमेंट क्या है? चूना और चिकनी मिट्टी को जला के कोयले के साथ आपने एक प्रोडक्ट बना दिया है जो कंपनियों के हाथों में है और आज सबसे बड़ी इंडस्ट्री भारत में ये कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री बन चुकी है। क्या ये स्वराज हमें दिला सकती है? क्या स्वराज की कोई अवधारणा हमें इस तरह के बने हुए भवनों में मिल सकती है? यह एक बड़ा सवाल हमें है और मुझे लगता है कि इसने कुल मिलाकर के यह स्थिति बना दी है कि यदि आज आप गरीबों के लिए भी घर बनाने की कल्पना रख रहे हैं तो सिर्फ सीमेंट और स्टील से बनाने की कल्पना रख रहे हैं। इसका मतलब यह है कि हिंसा अनिवार्य है। हिंसा आम हो गई है और एक हिंसक व्यवस्था के बाहर हम अपनी आजादी को सोच नहीं पा रहे हैं। तो ये सोच कहां से आएगी इसकी हमें तलाश है। इसके कुछ बिंदु हमें मिले हैं लेकिन हमारी खोज जारी है। हमारे कुछ मित्र हैं जिन्होंने यह पाया है कि आर्किटेक्चर की फील्ड में आज जो सबसे अग्रणीय लोग हैं उनमें मिट्टी और बांस के घर बनाने की कला आज बड़ी प्रॉफिटेबल हो रही है। बहुत मांग है इसकी। बड़े-बड़े जो उद्योगपति हैं वो चाहते हैं कि उनके आज फार्म हाउस मिट्टी के बनाए जाए। लेकिन उनको यह अफसोस है कि इन आर्किटेक्ट्स को कारीगर नहीं मिलते हैं जो मिट्टी का घर बनाना जानते हैं। शहरों में मिट्टी के घर बनाने की ज्ञान की अब कमी पड़ गई है। लेकिन ये सिर्फ घर बनाने की कला की बात नहीं है। हमारे जीवन में हर आम चीज, कपड़ा, जूता, कुर्सी, मेज हर चीज इस हिंसक व्यवस्था से आ रहा है। यहां तक कि आज हम जो अ अपने जीवन की कल्पना करते हैं तो बिजली के बिना नहीं कर पा रहे हैं। बिजली की उत्पादन भी कैसे हो रही है? हमारे देश में जब कोयला निकाला जा रहा है। कितने बड़े क्षेत्रफल से कितने सारे लोगों को विस्थापित करके वहां की जमीन, पानी, हवा सब बर्बाद कर रहे हैं। क्या इस अवधारणा से हम कहीं आगे शांति और न्याय का समाज बना पाएंगे? यह एक मेरे लिए बड़ा सवाल है और क्या इस हिंसक तंत्र में अपनी जगह सुनिश्चित करना ही हमारे लिए न्याय की अवधारणा है? यह भी एक दूसरा बड़ा सवाल है। और बिजली से जो जो उत्पादन हो रहा है क्या वो बिजली के बिना उत्पादन नहीं हो सकता है? क्या बिजली से उत्पादित सामान हम जो लोग बना रहे हैं क्या उनको पैसा देना जरूरी है? एक छोटा उदाहरण यह है कि अगर हम इस तरह की संगोष्ठी करते हैं तो जो पानी और खाने की व्यवस्थाएं हैं यदि हम ग्लास जो प्लास्टिक और कागज से बने हैं और बड़े उद्योगों से आ रहे हैं क्या हम वहां के स्थानीय कारीगर जो हैं जो हमारे कुम्हार हैं उनसे यदि हम एक संबंध बनाएं तो क्या स्थानीय व्यवस्थाएं और मजबूत नहीं हो सकती हैं? क्या वनवासियों के साथ हम यदि संबंध बनाए क्या वह उनको खुशी नहीं मिलेगी हमें पत्तों के पतल पहुंचाने में ये हमारे लिए एक बड़ा सवाल है क्योंकि ये हमारा सफर रहा है। ये हमारी खोज रही है। कुमाऊं के एक छोटे से गांव में हम अक्सर मिलते हैं। वहां के लोगों से खेती, जंगल इत्यादि के बारे में एक सीखने का अवसर हमें हर साल मिलता है। वहां पे एक बार हम थे और हमारे साथ कुछ आर्किटेक्ट दोस्त थे। यह आर्किटेक्ट वो हैं जिन्होंने सीमेंट और स्टील का रास्ता छोड़ दिया है और वह मिट्टी, बांस, चूना, पत्थर के घर बनाते हैं। कुमाऊं और हिमाचल के घर आर्किटेक्चर कॉलेजेस में बड़े प्रसिद्ध हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनके बनावट के बड़ी-बड़ी पुस्तकें निकलती है। उसमें उनके सुंदर चित्र बन के आते हैं और जो बड़े प्रोफेसर हैं, जो बड़े एक्सपर्ट हैं इन फील्ड्स के, वो उत्तराखंड आकर के सीखना चाहते हैं कि कुमाऊं के लोग अपने घर कैसे बनाते हैं। उसी कड़ी में हमारे कुछ आर्किटेक्ट मित्र आए थे और उनको हम एक चाचा के घर लेके गए जिनका एक बहुत सुंदर घर है वहां पे और उस घर का बनावट पूरा एक कुमाऊनी स्टाइल में है। जब चाचा के घर पहुंचे और दोस्तों का परिचय कराया तो चाचा बहुत खुश हुए। उन्होंने बोला आइए हम आपको दिखाते हैं घर कैसे बनता है। उन्होंने बताया कि जिस पत्थर का उनका मकान बना है वही पत्थर उस क्षेत्र में उत्तम पत्थर है घर बनाने के लिए और इस पत्थर में चुनाई की जरूरत भी नहीं पड़ती है। बिना चुनाई के पत्थर को जोड़ने की एक खास कला उस क्षेत्र में है और जब वो अपनी छत बनाते हैं तो उसके लिए एक अलग विशेष पत्थर का इस्तेमाल होता है। जिसकी ढलान एक विशेष एंगल पे रखी जाती है जिससे कि बर्फ पिघल जाए। अंदर की दीवारों का निर्माण लकड़ी और मिट्टी से होता है और फर्श का निर्माण खास मिट्टी से ही किया जाता है। उन्होंने बताया कि जब इस तरह की बनावट होती है तो कुमाऊं में जब बर्फ पड़ती है और उतनी ठंड होती है तब भी वहां पर गर्मी बनी रहती है। बल्कि कुमाऊं के लोगों में घर निर्माण में प्रकृति से इतना प्रेम है कि वह अपनी दीवार में इतनी जगह छोड़ते हैं कि गौरैया पक्षी उनके घर में आए और घोंसला बनाकर उनके सामने रहे। यदि बर्फीली हवाएं चल रही है आप कल्पना कर सकते हैं कि ठंड अंदर कैसे घुस जाती होगी। लेकिन इस बनावट की खास बात यह है कि ठंड नहीं घुसती है और वह गम ही रहता है। उन्हीं के बगल में एक व्यक्ति पैसा कमा करके आए थे शहर से। उन्होंने अपना पुराना घर तोड़ दिया और सीमेंट और स्टील का दुगनी लागत पर घर बनाया क्योंकि कुमाऊं में पहाड़ है। वहां पे ईंट जब तक पहुंचती है ₹7 से ₹14 की हो जाती है। इसी तरह सीमेंट भी महंगी हो जाती है। फिर भी उन्होंने कर्जा लेकर के एक बड़ा मकान बनाया और उन्होंने बताया कि पिछली गई सर्दी में उन्होंने बिजली का हीटर भी लगाया लेकिन ठंड उनके घर से नहीं गई और नतीजा यही हुआ कि बच्चों को निमोनिया हो गया उनके घर के अंदर। कुमाऊ जहां इतना ठंडा पड़ता है वहां पे उन्होंने कभी पंखा नहीं देखा था लेकिन आई गर्मी में उन्होंने पहली बार उनके घर में कूलर देखा और पूरे गांव में यह बात चल गई कि ये कैसे इन्होंने घर बनाया। यहां पे कूलर इनको लगाने की जरूरत पड़ गई है। लेकिन आश्चर्य की बात हमें यह लगी कि जब वहां से जाने लगे चाचा जानते थे हमारे दोस्त और कुछ अग्रज जो है वो शहरों से आए हैं। उन्होंने हमसे किनारे ले जाकर के एक छोटी सी विनती की। उन्होंने कहा क्या आप हमको ₹1 लाख का लोन दिला सकते हैं? हमने कहा क्या हो गया चाचा? क्या बात है? उन्होंने कहा कि जो हमारी छत है उसको हम तोड़कर सीमेंट की छत डालना चाहते हैं। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि अभी एक घंटे से उन्होंने हमको आर्किटेक्चर पर इतना बड़ा लेक्चर दिया और अब उसी की उल्टी वो बात करने जा रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि क्या कारण है? आप तो जानते हैं कि आपने जो घर बनाया वही उत्तम है। सीमेंट का घर बनाने से आपको लाभ नहीं मिलने वाला है और उसके लिए आप एक लाख का कर्जा लेंगे। उसको चुकाने के लिए इतनी मेहनत करेंगे। उन्होंने कहा दरअसल बात यह है कि हालांकि हमको तो अपना घर बहुत पसंद है लेकिन हमारे बच्चों को अपने स्कूल से दोस्तों को घर लाने में शर्म आती है। स्कूल में यह बताया गया है कि सीमेंट और स्टील का घर उत्तम है और यदि आप चूने, मिट्टी और पत्थर के घर में रहते हैं तो आप पिछड़े हैं। तो मेरा यह एक इस सत्र में और आप सबके सामने आप बड़े हैं। आपसे यह सवाल है कि यह जो आत्मघरणा और शर्म हम सब में आज कहीं ना कहीं है उसकी क्या दवा है? क्या आपने अपने साधारण जीवन में इसकी कोई दवाई ढूंढी है? ये हम लोग आपसे जानना चाहेंगे। आखिर में मैं बस आपको यह बताना चाहता हूं कि क्योंकि आज का जो जीवन है उसमें घर हो या रोटी कपड़ा मकान हो हर तरह से आज का जो शिक्षित वर्ग है वो अपने आप को असहाय मान समझता है। शहर में कभी आप घर बनाने जाएं तो कॉन्ट्रैक्टर आता है और आपको बिल पकड़ाता है। जितने का आपका बिल बना है आपको देना पड़ता है। किस आधार पे आप मोल करेंगे आप नहीं जानते हैं। सब्जी में आपके क्या मिलावट है? अनाज आपका साफ नहीं है। तेल आपको अडानी का लेना पड़ रहा है। कहीं पर भी आपकी आजादी नहीं रह गई है। हर जगह पे आपको मजबूरी मिल रही है। और ये सिर्फ गरीबों का हाल नहीं है। अमीरों में भी यह है। स्वास्थ्य की बात करें तो दिल्ली में बड़े-बड़े लोगों से बात करने पे पता लगता है कि डॉक्टर उनको जरा सा पेट दर्द होने पर बता देते हैं कि आपको गॉल ब्लैडर निकालने की जरूरत है। एक बड़े परिवार के सज्जन से हमारी बात हुई। उन्होंने बताया कि डॉक्टर ने उनसे कहा कि आपको गॉल ब्लैडर निकालना पड़ेगा। ऑपरेशन के बाद जब उनको होश आया तो नर्स ने उनको एक पत्र दिखाया और कहा कि आपके गॉल ब्लैडर के ऑपरेशन के बाद हमारे अस्पताल का लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज हो गया है क्योंकि हमने दुनिया में सबसे ज्यादा गॉल ब्लैडर निकाले हैं। इस दौड़ के पीछे उनका गॉल ब्लैडर निकाल दिया गया। जब ये अमीरों का हाल है तो बाकियों का क्या हाल है? मैं इस पे ज्यादा टिप्पणी नहीं करूंगा। मुझे लगता है हम सब परिचित हैं आज के स्वास्थ्य तंत्र से। तो क्या स्वास्थ्य, शिक्षा, रोटी, कपड़ा, मकान में हम कुछ नई कल्पनाएं कर सकते हैं जिसमें फिर से हमारा स्वराज स्थापित हो। उसके लिए ज्ञान कहां मिलेगा? इसमें कॉलेज और स्कूल असमर्थ है? हम सब जानते हैं तो क्या कॉलेज को चुनौती देने के लिए इस ज्ञान को हम छोटी-छोटी जगह विद्या आश्रम सारनाथ जैसे जगह से लेकर के लंका की गलियों में ढूंढ सकते हैं और उसी कारीगर वैद किसान के आंगन को अपनी पाठशाला बना के बहुत छोटी पूंजी में आज की एक नई शिक्षा प्रणाली का जन्म कर सकते हैं। यह मेरा आप सबसे आखरी सवाल है और इसी के साथ मैं आपसे विदा लेता हूं। धन्यवाद।

रामजनम:

धन्यवाद आर्यमन जी। जब हम लोग ये पंचायत करने की कवायद कर रहे थे। तो उस समय हम लोग आपसी बातचीत में बहुत सारे बिंदु बातचीत के बहुत सारे बिंदु ढूंढ रहे थे। जैसे एक बिंदु हम जो चाहते थे कि इस पर कुछ बातचीत हो। क्या इस देश में सामाजिक न्याय आंदोलन का लक्ष्य स्वराज हो सकता है? या दूसरा बिंदु ये जो आरक्षण है ये बहुजन समाज के सशक्तिकरण में इसकी क्या भूमिका हो सकती है? इस तरह की बिंदुओं पे भी हम चाहते थे कि यह बातचीत इस पंचायत में आए। हमारे बीच इस शहर के नौजवान पत्रकार शिवदास डॉक्टर शिवदास प्रजापति जी हैं। मैं साथी शिवदास प्रजापति जी से चाहूंगा कि आप आए और अपनी बात रखें। आइए आइए शिव भाई …

डॉ. शिवदास प्रजापति: [पत्रकार]

धन्यवाद! रामजनम भाई और मंचासीन सभी लोगों को मेरा नमस्कार और सामने दर्शक श्रोताग सभी लोगों को मेरा नमस्कार जोहार अब इन्होंने सीमित कर ही दिया है कि मैं आरक्षण को लेके और सामाजिक न्याय के सवाल पर बात करूं तो उसी पर बात होगा और बात खरी भी हो सकती है तो बात मैं वही करूंगा कुछ लोग नाराज भी हो सकते हैं कुछ लोग खुश भी हो सकते हैं लेकिन जो है वही कहेंगे तो आरक्षण की बात होगी तो जाति की बात होगी और जाति की बात होगी तो आपके डिस्क्रिमिनेशन की बात होगी और विविधता की भी बात होगी। अगर भेदभाव है तो आरक्षण है। अगर भेदभाव नहीं है तो आरक्षण की जरूरत नहीं है। यह तो पहला एकदम क्लियर कट सिद्धांत है। मेरा इस पर रिसर्च भी इसी पर है। मेरे रिसर्च का टॉपिक रहा मीडिया एजेंडा सेटिंग एंड रिजर्वेशन स्ट इंडिया अ सोशियोलॉजिकल स्टडी। तो मीडिया से मैं हूं तो मीडिया पे ही कर डाला और आरक्षण जोड़ लिया तो जाति भी जुड़ गई। तो यहां विभिन्न विविधता तो है लेकिन विविधता के दौरान में जब बातें आती है जाति के तो सब लोग ठीक है कहने में तो अच्छा लगता है लेकिन स्वीकार करने में बड़ा दिक्कत होती है वैचारिक स्थिति में सभी विचारधाराओं में विभिन्न तबके के लोग हैं लेकिन जब आता है निर्णय निर्णायक फैसला चाहे कोर्ट में हो चाहे पार्लियामेंट में हो चाहे जब लागू करने की बात हो या अनुपालन की बात हो तो वहां जाति सर्वाइव कर जाती है अच्छे-अच्छे प्रगतिशील लोगों की और यहां इस बार देखने को खूब मिल रहा है इस सरकार में। तो जब आरक्षण की बात आ गई है तो इस समय आरक्षण के नियमों का उल्लंघन भी खूब खूब हो रहा है। लेकिन आवाज कितनी उठ रही है? यह भी तो बात होनी चाहिए। सामाजिक न्याय की बात हो रही है। तो सामाजिक न्याय में कहां तक बात हो रही है यह भी तो बात होनी चाहिए। तो सवाल थोड़ा सा टिपिकल है। तो पहले हम आ जाते हैं जाति पे तो आरक्षण की बात जब आई तो प्रतिनिधित्व की बात आई थी और रिप्रेजेंटेशन का सवाल सिर्फ इंडिया में नहीं था। अगर जहां पर भेदभाव रहा है वहां पर रिप्रेजेंटेशन का सवाल उठा है और विदेशों में भी रिप्रेजेंटेशन के कानून बने हुए हैं। अमेरिका जैसे जगह पे जाकर अलग बात है कि वहां कास्ट और भेदभाव का जो वहां कास्ट नहीं होकर भेदभाव का जो नस्ल है वह अलग है। रेसिज्म है। लेकिन वहां पे यही लोग जो यहां विरोध करते हैं आरक्षण का वहां जाकर आरक्षण का लाभ लेते हैं। तो दिक्कत नहीं होती है। लेकिन यहां देनी होती है तो दिक्कत होती है। अभी रिप्रेजेंटेशन का सवाल आया था 2019 में 10% आरक्षण विशेष वर्ग ने ले लिया ना उसके लिए कोई आयोग बैठा ना ही आंदोलन हुआ और सब लोग बड़ा बड़े-बड़े आंदोलनकारियों ने उसको सपोर्ट कर दिया। संसद में विभिन्न पार्टियों ने सपोर्ट कर दिया। आर्थिक आधार क्या है? आर्थिक आधार भ्रष्टाचार है। शुद्ध अगर किसी को अर्थ की वजह से रिप्रेजेंटेशन नहीं मिल रहा है तो करप्शन है। और वो करप्शन अस्थाई है जिसको अस्थाई बना दिया गया। लेकिन जाति का सवाल अभी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के ऊपर चिपका दिया गया। कहने की जरूरत नहीं है और सोशल मीडिया इस समय देख लीजिए तो पूरा एक वर्ग एक तबका अगर वो विरोध करने वाले थे तो महिमा मंडित कर रहा है उसका और कॉन्स्टिट्यूशन का अगर प्रोविजन की बात करें तो कॉन्स्टिट्यूशन में सीधी सी बात है कि आपके काल्पनिक चीजों का काल्पनिक जो चीजें हैं पात्र है उसको जगह नहीं है फैक्सी तो ले चलेंगे हम जो का्सिट्यूशन में लिखा है कानून बना उसी पर तो बात करेंगे हम लेकिन वो भी दिक्कत है तो रिप्रेजेंटेशन के सवाल में आज के डेट में डेली मैं नोटिफिकेशन को देखता हूं सरकार के पहले भी देखता था 20 सालों से ऊपर हो गए मुझे पत्रकारिता जगत में जिस ढंग से अवहेलना हो रही बातें नहीं हो रही है सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि अनारक्षित वर्ग में हम 10% ले आ रहे यही था इकोनमिक जब आया तो लेकिन वो अनारक्षित नहीं आरक्षित वर्ग में जा रहा है 10% और अनारक्षित अनारक्षित का पार्ट नहीं है आरक्षित में जा रहा है लेकिन कोई सवाल नहीं है और सबको स्वीकार है तो अभी बात आई कि बहुजन स्वराज की बहुजन स्वराज की वही मैं कल्पना कर रहा था कि चर्चा हो रही है इस बहुजन स्वराज में बहुजन के कितने लोगों के पारंपरिक चीज चीजों को शामिल किया गया है। बुरा लग सकता है। बहुजन का कांसेप्ट है। बहुजन कौन है? मजदूर है, श्रमिक है, शिल्पकार है। वही तो बहुजन ज्यादातर है। किसान है। बहुजन का तबका वो है। हम उसके आज आप यही देख लीजिए कि कितना उससे जुड़ी हुई चीजें हैं। शिल्पकारों की हालत, पौनी जातियों की हालत को कितने लोग वाकिफ है। अभी भाई साहब कह रहे थे आप ही कह रहे थे कि मतलब हम लोगों को पढ़ाया क्या जा रहा है और वो कैसे निचले तबके तक पहुंचेगा बात सही है हम लोग जितना लोग यहां बैठे हैं अगली पीढ़ी को ले आए हैं क्या कितने लोग हैं अगली पीढ़ी के साथ यहां आधी आबादी के साथ कितने हैं मैं भी उसमें हूं शामिल ऐसा नहीं कह सकता मैं भी ले नहीं आया हूं तो जब चर्चा चर्चा सिर्फ आपस में होगी तो वो धड़ा तो कटा हुआ है ना तो क्या वो बहुजन समुदाय का हिस्सा नहीं है क्या उसकी भागीदारी नहीं होगी जब स्वराज की बात होगी तो क्या उसके समझ में नहीं आनी चाहिए तो बनाना है तो वहां तक तो जाना पड़ेगा रिप्रेजेंटेशन का सवाल तो है आपने आरक्षण और रिप्रेजेंटेशन का ही तो सवाल उठाया तो रिप्रेजेंटेशन तो मेरा है ही नहीं यहां पे तो हम बहस करते जाएंगे तो एक तरफ बहस जाएगा ना और इसी बहस का फायदा उठा करपो आप चाहे आप जो भी कहिए आपके इस जो शेयरिंग कैपेसिटी ग्रामीण परिवेश का बहुजन का जो पारंपरिक है श्रमिक श्रमण वो कहीं दूसरा फायदा उसका ले चला जा रहा है हमारे बच्चे बातें तो होती है हमारे मेरा बच्चा पढ़ता है कॉन्वेंट स्कूल में सिंपल सी बात मैं बताऊं निजी में पढ़ता है मैं सरकारी में जा के भी नहीं पढ़ा पाता और यहां पे अधिकतर लोगों के बच्चे पढ़ते होंगे कितने लोगों के बच्चे इसमें सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और कितने लोग अपने घर पे चलाते हैं कि जिससे बहुजन स्वराज का कांसेप्ट एस्टब्लिश हो सके। ये भी तो सवाल है। हमारी शिक्षा पद्धति नहीं है। हम तो डेवलप ही नहीं किए। हम तो उसको पोषित कर रहे हैं ना। तो बहुजन स्वराज आएगा। कहां से? सवाल है और पंचायत तो बैठी ही है। और आरक्षण के सवाल पर गंभीरता से बोलने के लिए बहुत कुछ है। उदाहरण बहुत है। सवाल यही है कि बोलते बहुत कम लोग हैं। झेलता जो बोलता है उसे उसका तो लाभ नहीं मिलता। अगली पीढ़ी को मिलता है और जिसको मिलता है वो नहीं बोलता। इतना है यही सवाल है। इसलिए आरक्षण और सामाजिक न्याय और रिप्रेजेंटेशन का सवाल दिन पे दिन नीचे जा रहा है। जो सत्ता में है उसका रिप्रेजेंटेशन बढ़ता जा रहा है। धन्यवाद।

रामजनम:

धन्यवाद शिवदास भाई. ये जो पंचायत है ना हम लोग चाहते थे इसका नाम सम्मेलन भी रख सकते थे लेकिन हम लोगों ने जानबूझ के हम लोग लगातार कोशिश करते हैं कि अपने कार्यक्रमों का नाम हम लोग पंचायत रखें ये पंचायत कहां से आया है जो तो हमको दिखता है कि बहुजन समाज की परंपरा है और आज तक चल रही है। ये बहुजन समाज की परंपरा पंचायत आज भी बहुजन समाज में मौजूद है और उसमें हमको कुछ बहुजन समाज की चीजें दिखती है। इसलिए हम इसका नाम पंचायत रखे हैं और उसकी खूबी बताने का वक्त नहीं है। आगे उस पर बातचीत होगी। मैं इस बातचीत को आगे बढ़ा रहा हूं और अभी समय कितना? 12:30 तो मैं अब ये जो अध्यक्ष मंडल है मैं अध्यक्ष मंडल के साथी अवधेश जी से चाहूंगा कि आप आए क्योंकि हमको थोड़ी खुली चर्चा भी करनी है क्योंकि ऐसे ही हम लोग बोल के चले जाए क्योंकि यह बातचीत इतनी गंभीर और कठिन है इस दौर में कि इसमें चर्चा तो निश्चित रूप से होनी यदि कुछ निकालना चाहते हैं आप इसको आगे बढ़ाना चाहते हैं इस बहस को इस बातचीत को इस कार्यक्रम को तो आपको लगातार चर्चा करनी पड़ेगी लोगों से तो मैं अवधदेश जी से चाहता हूं कि आप आए और अपनी बात रखें …

अवधेश:

संचालक महोदय रामजनम जी अध्यक्ष मंडल और साथी लोकविद्या आंदोलन से मेरा जुड़ाव कैसे बना क्या हुआ यह थोड़ा सा अपना अपना जो अनुभव खुद का रहा वो वो बात मैं कुछ कहना चाहता हूं क्योंकि इधर देख ये रहे हैं कि जो हमारे समकालीन दोस्त लोग हैं वह भी अब काफी सीनियर हो गए बुजुर्ग हो गए बहुत कम मिलते जुलते हैं। बहुत कम आना जाना भी हो गया है। इसी वजह से मैं भी यहां आया हूं कि सुनील जी से मेरा बहुत पुराना परिचय है। लोकविद्या आंदोलन को लेके काफी समय पहले सिंगरौली आए थे तो उन्होंने पूछा कि अवधिष्ठ ये लोकविद्या का थोड़ा बताओ कैसा लग रहा है तुमको तो लोकविद्या उस समय समाजवादी आंदोलन से निकले हुए लोग जो है वो लोकविद्या का तुरंत अर्थ यही बता देंगे कि ये बहुत संस्कृत निष्ठ शब्द है। मैंने नहीं समझा। मैंने कह दिया कि यह थोड़ा सा उस टाइप का है। लेकिन वह भी अिग रहे। सत्संग होता रहा, बात होती रही। धीरे धीरे धीरे धीरे इस शब्द की ताकत हमें एक कार्यक्रम में मिली। एनटीपीसी ने वहां पे कुछ जमीन का अधिग्रह किया था। उसकी जन सुनवाई हो रही थी। उसमें जिला प्रशासन के अधिकारी भी थे, कंपनी के अधिकारी भी थे। मैं भी था वहां पे। तो बराबर यह कहा जा रहा था कि जो भी हम आपको मुआवजा दे रहे हैं, पुनर्वास की सुविधा दे रहे हैं, यह बहुत कुछ है। आपको तो इसे इतना जितना हम दे रहे हैं, इसके हकदार नहीं है। आप क्या करते हैं? आप खेतीबाड़ी में ही लगे लोग हैं। मजदूर लोग हैं। यह सब है। इस तरह की बात हो रही थी। एक तरह से कहना चाहिए कि विस्थापित लोगों को जलील किया जा रहा था। लेकिन इस बीच में लोग विद्या के संपर्क में आने से बातचीत से इस शब्द का जो ताकत है उसके भीतर जो एक भाव है तेवर है। वो बात मुझे वहां कुछ दिखी कि मुझे कहना चाहिए। मेरा नंबर आया। मैंने कहा कि देखो ये जमीन लेने के लिए नहीं गया था। आपको जरूरत हुई तो आप गए। यह जंगल बनाना जानता है, खेती करना जानता है, मकान बनाना जानता है। सड़क बनाना जानता है। सब कुछ जानता है। और यहां जो मेरे सामने लोग बैठे हैं, बड़ी-बड़ी डिग्रीधारी लोग, इंजीनियर लोग, जीएम लोग, कलेक्टर साहब यह बताएं ये क्या जानते हैं? ये खेती कर सकते हैं। लोगों का जीवन चला सकते हैं। जंगल जिस तरह के उजड़ रहे हैं, ये क्या बना सकते हैं? यह सब कहते कहते देखा कि उनका जो अकड़ के बैठे थे कर्नल साहब वो ढीले पड़ गए। तो मुझे लगा कि ये तो वास्तव में इसके भीतर जो तेवर है उसको रखना चाहिए। तो वो बहुत दिनों तक मैं कहता रहा। सुनील जी भी आते रहे, साथी लोग भी आते रहे, चित्र जी भी आते रहे, सब लोग आते रहे। पूरे इलाके में इस तरह की बात हो रही थी। आंदोलन से तो हम लोग बहुत पहले से जुड़े थे। कोई ऐसी बात नहीं थी। तो देखा यह गया कि मजदूर के भीतर वो तेवर नहीं आ रहा है। उसके नेता के भीतर तो आ रहा है। लोगों को बुला रहा है। नेता के साथ में लोग आ रहे हैं। लेकिन उनके लोगों के बीच में वो बात नहीं आ रही है। यह लोग विद्या आंदोलन की वजह से यह हुआ कि नेता ही नहीं शिक्षित होगा बल्कि लोग भी शिक्षित होंगे। उनके भीतर भी यह एहसास होगा कि हम दबे कुचले लोग नहीं हैं। हमारा भी समाज में महत्व है। हम भी कुछ देते हैं। कहने के लिए तो लीडर बहुत लोग थे। आए उन्होंने रखा। यह मुझे दिल से भी लगा। एक बार मेरा इंटरव्यू अपने लोकविद्या आंदोलन के साथी ने लिया। उसमें बहुत तरह की बातें थी। तो उन्होंने जब छप के आया मेरे सामने तो मैंने देखा कि मेरा परिचय उन्होंने दिया। कोई और आंदोलन का परिचय नहीं। उसमें परिचय मेरा जो था अंग्रेजी हटाओ आंदोलन का। 69 में जो अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चला था। उस समय मैं हायर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ता था। तो मेरे परिचय में लिखा था कि इन्होंने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में हिस्सा लिया। तो यह भी मुझे लगा कि जेपी आंदोलन से बड़ा आंदोलन लोकविद्या आंदोलन उसको मानता है। तभी तो इन्होंने ये दिया। तो यह सब कुछ चीजें ऐसी थी जो वास्तव में मन को हिलाने वाली थी। तो इसी से अपने को भी लगा कि यह बुझे मन को खड़ा करने की बात है। एक और भी देखते हैं कि इस में थोड़ा बहुत मेरा संपर्क रहा दिल्ली में सीएचडीएस वगैरह से सबसे आज सभी लोग कुछ हैं कुछ नहीं है। तो देखते यह हैं कि सुनील जी के साथ जो लोग थे वो आज भी बड़े मन से आते हैं। सबकी उम्र हो गई सबको वो हो गई और वो भी यही बात कहते हैं कि हम काम करते थे लेकिन सुनील जी के संपर्क में आए तो हमने यह सीखा और वो इस उम्र अवस्था में भी आ जा रहे हैं मन से जुड़े हैं ये बड़ी बात है नहीं तो आमतौर पे लोग कहां चले गए लोग कहां वो हो गए लेकिन इस उम्र में भी शरीर भले कमजोर हो गया है लेकिन उनका मन डटा हुआ है कुछ करने का तो यह भी एक प्रेरणा की ही बात है। ये आर्य अरमन ने उठाए हैं कुछ सवाल। वास्तव में ये बड़े सवाल हैं। अच्छा है कि नई पीढ़ी के लोग इन सब सवालों को सोच रहे हैं। कि भाई शिक्षा कैसी हो? तो खाली कहने भर से थोड़ी होगा कि हम पर्यावरण बचाने आए हैं। जलवायु परिवर्तन यह तो सब कुछ लोगों का अपना अपना ढंग है। लेकिन जैसे मैं खुद ही हमारे साथी लोग भी आए हैं सिंगरोली से देख ही रहे हैं कि वो जंगल जा रहे हैं जिसको आप 1000 1500 साल में भी नहीं बना सकते। वह बिल्कुल खत्म हो रहे हैं। झले, डोंगरी यह सब पूरी तरीके से आप दिन में अगर अकेले मोटरसाइकिल से भी जाते हैं तो आपको डर लगेगा कि पता नहीं पीछे से बाघ आ रहा है, तेंदुआ आ रहा है कि भूत आ रहा है कि प्रेत आ रहा है। इतनी घोर जंगल है और वो जंगल इस तरीके से काटे जा रहे हैं जैसे लग रहा है कि अगर आप थोड़ा सा नजर दौड़ाएं कुछ दूर तक तो लग रहा है कि कोई कब्रिस्तान का इलाका है। इतने बड़े-बड़े उसके दरख्त हैं और इतने बड़े-बड़े और सब बुरी तरीके से आज अगर आपने देखा है वो जंगल को तो तीन साल चार साल के बाद में वहां पे एकदम मलवे का ढेर वो हटा के कोयला निकालेंगे बिजली बनाएंगे पूरा अडानी का ही साम्राज घर घड़ जहां पे जंगली जानवर रहा करते थे उस समय बड़े-बड़े डंपर देख के डर लगता है पता नहीं वो कितने पहिए की मशीनें वहां चल रही है। 70 पहिए की चल रही है। 80 पहहिए की चल रही है। आए दिन वहां पे आदमी मारा जा रहा है। सब खत्म किया जा रहा है। आंदोलन तो ना पूछे लोगों ने आंदोलन करते हैं। कर कर के बंद कर दिए वो कर दिए। कहीं कोई सुनवाई नहीं। कुछ नहीं। पूरा साम्राज्य है। तैयार रहता है लिफाफा। कलेक्टर के पास में, दरोगा के पास में सबके पास एक्सीडेंट होता है। तुरंत यह लो मुआवजा ले लो बात खत्म करो। थोड़ी देर के बाद दो चार घंटे के बाद धरना खत्म हो जाता है। रोज यही दशा होती है। रोज होता है। लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। तो ये सब के पीछे मुझे लगता है कि यह एहसास नहीं कराया गया। अभी भी एक बात मैं जरूर कहूंगा कि लोकविद्या आंदोलन को जो काम करना था उसने कर दिया और जो विचार उसको देना था दे दिया जो शब्द फैलाना था उसने फैला दिया वो है ऐसे नहीं है कि ऐसे है वो है अब उसको आगे बढ़ाना उसको प्रयोग में लाना अपनी राजनीति में लाना ये हम सबका काम है मुझे दिखता भी कि जहांजहां भी सुनील जी या उनके लोग गए हैं वह अकारथ नहीं गया है। वह कहीं ना कहीं दिखता है। कहीं ना कहीं उनको राजनीति में यह बात करने से खुद ही ताकत मिलती है। तो बस इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात खत्म करता हूं। बस धन्यवाद।

रामजनम:

धन्यवाद अवधेश जी। अब मैं प्रोफेसर कृष्ण गांधी से निवेदन करूंगा कि आप आए और अपनी बात रखें।

रामनाथन कृष्ण गांधी:

बहुजन स्वराज पंचायत पर हम लोग बैठे हैं। तो बहुजन के बारे में भी चर्चा काफी हुई। स्वराज क्या है? इस पर भी चर्चा हुई और आर्यमन जैसे युवा साथी ने बहुत सारे विचारणीय विषय रखे। आरक्षण पर हमारा दृष्टिकोण क्या हो? जाति, समाज इनके बारे में हम क्या सोचते हैं? तो इन सब के ऊपर और भी अधिक हमें सोचने के लिए करने के लिए करने की आवश्यकता है। और मैं यह मानता हूं कि कुछ ऐसे बिंदु जिन पर हम ज्यादा काम कर सकते हैं, सोच सकते हैं उनको लेना चाहिए और उस पर हम लोगों को कुछ कार्य प्रोग्राम कार्यक्रम लेकर आगे चलना चाहिए। तो क्या-क्या विषय हो सकते हैं जिस पर हम लोग कुछ आगे फोकस होकर के काम करें। तो एक चीज मुझे सबसे पहले कहना है कि स्वराज कोई ऐसा कोई दूर का कोई समाज स्थापना का कोई लक्ष्य नहीं है। वह स्वराज आज और इस वक्त करने का कार्य है। तो यदि हम स्वराज के संदर्भ में ऐसे एक सोच तैयार करें कि स्वराज हमें आज करना है इस वक्त करना है। तो मुझे लगता है कि काफी चीजें आसान हो जाती है। हम हवा में नहीं लटकेंगे क्योंकि हम वास्तवता और धरातल पर खड़े होंगे तो आसपास क्या हो रहा है उस पर हमारी दृष्टि जाएगी और हम उस आधार पर आज की वास्तविकता पर आधारित हम कुछ कार्यक्रम शुरू करेंगे। तो यदि हम इस प्रकार सोचने लगेंगे तो स्वराज एक लक्ष्य नहीं है। हमारा एक कार्य प्रणाली है। एक कार्य करने की पद्धति है। हमारा एक रास्ता है। मार्ग है स्वराज। और यहां पर हम कुछ चीजें कहना चाहते हैं कि एक तो स्वराज किसकी? बहुजन की बात हो रही है। बहुजन का स्वराज लेकिन बहुजन में भी जैसे जातियां हैं, समूह है, धर्म है, आदिवासी हैं, स्त्री है, किसान है, कारीगर हैं। तो कुछ लोग यहां पर कह रहे थे कि पेशे के आधार पर भी लोगों को संगठित करना है। लेकिन मैं एक चीज कहना चाहता हूं कि मानव जाति समूह में आगे बढ़ी है। उसकी उत्पत्ति हुई है और समूह ही मानव जाति का मूल बिल्डिंग ब्लॉक है। मतलब जैसे मकान ईटों से बनती है वैसे समूहों से मानव जाति बनी है। तो जब हम कोई नया ढांचा तैयार करते हैं। जैसे नई जो है विचार और कार्यप्रणाली हम लाते हैं। जैसे आधुनिक राष्ट्र राष्ट्र यानी कि नेशन नेशन स्टेट यह एक एक सोच है। एक ढांचा है जिसको हमने आयातित किया विदेशों से और पश्चिमी दुनिया से और उस राष्ट्र में बहुत सारे समूह जातियां और उन सबको बहुत सारे समूहों को तो लगभग इग्नोर कर दिया या उसको दबा दिया या दबाया जा रहा है और कुछ समूहों को उनमें किसी तरीके से फिट करने की कोशिश हो रही है राष्ट्र की अवधारणा में तो एक विसंगति यहां पर मुझे तो बहुत स्पष्ट दिख रहा है कि भले ही आज देश में ऐसा बहुत बड़ा एक समूह है जो कहता है कि संविधान बचाओ संविधान बचाओ लेकिन यह संविधान मूल रूप में एक राष्ट्र की कल्पना पर आधारित है और पश्चिमी जो पार्लियामेंट्री सिस्टम पर आधारित एक कल्पना है। क्या यह हमारे देश के लिए हमारे देश की जो परंपराएं हैं, हमारे देश की सोच है, उसके अनुकूल है क्या? मुझे लगता है कि शायद हम लोग राष्ट्र को बहुत ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर मान रहे हैं और उसकी वास्तविक धरातल पर कोई उसका कोई लाभ हमें नहीं दिख रहा है। तो इस पर हमें सोचने की जरूरत है कि क्या हम राष्ट्र की बात को कितना लेकर आगे चलना है या उसमें संविधान भी हमारे लिए क्या कोई वेद है क्या? जिसमें हम कोई परिवर्तन नहीं कर सकते। मुझे लगता है कि संविधान में भी परिवर्तन करने की जरूरत है। तो मैं तो उस पक्ष में नहीं हूं कि संविधान सर्वोपरि है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। संविधान में भी परिवर्तन करने की जरूरत है। तो किस प्रकार के परिवर्तन संविधान में करने की जरूरत है? एक विषय है। जैसे आज वोट चोरी की बातें बहुत हो रही है। तो रिप्रेजेंटेशन किस तरीके का हो और हमारी जो मूल इकाइयां क्या हो? तो यह सब चीजों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है और मुझे लगता है कि एक पंचायत राज जो अधिनियम जो भी 93 में संविधान में जोड़ा गया उस पर उसके आधार पर भी वह भी एक एक स्पेस हमें देता है काम करने के लिए स्वराज की बात को आगे बढ़ाने के लिए तो मैं यह कहना चाहता हूं कि स्वराज को आगे बढ़ाने के लिए हमें बहुत सारे ऐसे कंस्ट्रक्टिव वर्क रचनात्मक कार्यक्रम करने की जरूरत है। ना केवल संघर्ष की बात है। रचनात्मक कार्य भी एक संघर्ष होता है और उससे हमारे विचारों को एक एक कंटिन्यूटी मिलती है। एक सिलसिलेवार तरीके से हमारे विचार बढ़ते जाते हैं रचनात्मक कार्यों के माध्यम से। तो स्वराज की बात को आगे बढ़ाने के लिए मेरा सुझाव है कि हमें कुछ रचनात्मक कार्य करना चाहिए। तो कुछ इस प्रकार की बातें हैं कि जो पंचायती राज व्यवस्था है अपने देश में उसमें क्या कुछ योगदान हम लोग स्वराज की तरफ से कर सकते हैं क्या हमें गांवगांव में पंचायत के जो कार्यप्रणाली है उसमें कुछ सुधार लाने के लिए लोगों में जागरूकता तैया पैदा करने के लिए कुछ युवा लोगों को तैयार कर सकते हैं क्या? दूसरी बात यह है कि हम लोग जैसे हमने बताया कि समूहों के रूप में मानव जाति का विकास हुआ है। तो समूहों का अस्तित्व कैसे बना रहा? समूहों का अस्तित्व इसलिए बना रहा और उनका स्वराज परंपराएं इसलिए चलता रहा क्योंकि समूहों का अपना ज्ञान था। अपनी विद्या थी। और उस ज्ञान और विद्या को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए उनका कोई ना कोई व्यवस्था रही और आज के संदर्भ में हम लोग स्कूल कॉलेज को मानते हैं कि ज्ञान को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को देने का माध्यम है और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सारे जो संस्थाएं और बातें बहुत होती हैं। लेकिन जैसे आर्यमैन ने कहा जो शिक्षाएं जो शिक्षा संस्थाएं अभी अपने देश में है वो किस प्रकार की शिक्षा दे रही हैं। स्वराज को बढ़ाने वाली दे रही है। तो यह भी एक बिंदु है जिस पर हम रचना रचनात्मक कार्य कर सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा मुझे लगता है और भी कुछ चीजें हैं जैसे रचनात्मक चीजें जैसे आपने टेक्नोलॉजी की बात कही तो क्या टेक्नोलॉजी जो जिस तरीके से टेक्नोलॉजी का फैलाव हो रहा है और उसमें भी क्या कुछ टेक्नोलॉजी स्वराज के मददगार हो सकता है या कुछ टेक्नोलॉजी उसके विपरीत दिशा में काम कर रहे हैं। तो यह भी सोचने के विषय हैं। तो हमें इस पर भी सोचना चाहिए, कार्य करना चाहिए। जैसे सीमेंट और लोहे के बगैर बिल्डिंग बनाए जा सकते हैं। बांस और मिट्टी से भी बनाए जा सकते हैं। तो यह सब चीजें हैं जिस पर हमें सोचने और करने के लिए बहुत कुछ है। तो इनके अलावा मुझे लगता है कि स्वराज के लिए बहुत सारी लड़ाईयां देश में चल रही है। जैसे हमने सुना है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समूह अपने जो है अस्तित्व अपना एक धर्म को अलग एक संज्ञान देना चाहते हैं। हिंदू धर्म का वो हिस्सेदार नहीं बनना चाहते हैं। तो उनकी लड़ाई चल रही है। अभी लद्दाख में लड़ाई चल रही है। मैं समझता हूं वह भी एक स्वराज की अभिव्यक्ति है। तो ऐसे जो ऐसे जो लड़ाई देश में कोनेकोने में चल रहे हैं वह मुख्य माध्यमों में उनको काफी दबाया जाता है। लेकिन यदि हमारा कोई नेटवर्क है, हमारे पहचान के लोग हैं, इधर-उधर काम कर रहे हैं, सामाजिक कार्यकर्ता हैं तो उनके माध्यम से भी हम उनके बारे में जानकारी ले सकते हैं और उन आंदोलनों में के समर्थन में भी हम कुछ कार्यक्रम कर सकते हैं। ऐसा मुझे लगता है। तो इस प्रकार के कुछ कार्य भी हम कर सकते हैं। तो आरक्षण के प्रश्न पर भी हमें सोचने की जरूरत है। समूहों का प्रतिनिधित्व कैसे हो? जातियों का प्रतिनिधित्व कैसे हो? रिप्रेजेंटेशन कैसे हो? तो अभी जो है वन मैन वन वोट की प्रणाली है। तो क्या हमारे यह जो वन मैन वन वोट प्रणाली जो पश्चिमी सभ्यता का एक देन है तो वो एस सच हमें रखना है या उसमें हम कुछ संशोधन कर सकते हैं कि हम समूहों का प्रतिनिधित्व भी दे सकते हैं संविधान में। उदाहरण के लिए मेरे मन में बहुत दिनों से यही चल रहा है कि हम राज्यसभा में या विधान परिषदों में रिप्रेजेंटेशन जो है समूहों के आधार पर हम दें जिसकी संख्या जितनी भारी उतनी उसके भागीदारी उस अनुपात में रिप्रेजेंटेशन राज्यसभा में हो या विधान परिषदों में हो और विधानसभा और लोकसभा में वन मैन वन वोट वो भी साथ में चल सकता है। तो कुछ संतुलन समूह और व्यक्ति के बीच में हमें स्थापित करने में हम लोग कामयाब हो सकते हैं। क्योंकि पश्चिमी जो सभ्यता की एक विशेषता यह है पूंजीवादी व्यवस्था की विशेषता यह है कि समूहों को नष्ट करना है और व्यक्तिवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। समूह नाम की कोई चीज नहीं रहेगा। संविधान सिटीजन और राष्ट्र इसके अलावा कुछ नहीं। बीच में कोई ढांचा नहीं है। तो उस एटमाइजेशन का जो की जो परिपाटी है उससे बचने के लिए हम लोग क्या कर सकते हैं? तो मैं तो यही सब बातें आपके सामने रखना चाहता हूं और सोचता हूं कि हम लोग इन सब बातों पर या और भी बहुत सारी चीजें हैं जो प्रश्न है जिनका हमारे पास कोई हल तुरंत नहीं है। लेकिन उन पर सोचना और उन पर कार्य करना हम लोग यदि शुरू करेंगे तो ये स्वराज बहुजन स्वराज पंचायत का आयोजन काफी लाभदायक सिद्ध होगा। ऐसा मैं मानता हूं। धन्यवाद।

रामजनम:

धन्यवाद कृष्ण गांधी जी। साथियों अब मैं चाहता हूं कि जिन साथियों के मन में कोई सवाल हो या कुछ जोड़ना चाहते हो इस बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए उन सारे लोगों को मैं आमंत्रित करता हूं और साथी लक्ष्मण जी से चाहूंगा कि आप उनका नाम नोट कर ले और पांच मिनट में वो अपनी बात कहे ऐसा अनुरोध है और इस बीच अक्षय जी कुछ कहना चाहते हैं तो अक्षय जी से निवेदन है कि अक्षय जी अपनी बात कहें।

अक्षय जी:

साथी आर्यमन ने कुछ बात रखे हैं। उसका ऊपर कुछ बात छेड़ना चाहता हूं। सवाल पहले हमको सोचना चाहिए अगर स्वराज को लेकर सही में समाज को लेकर कुछ रणनीति को लेकर कुछ कार्यक्रम रखे थे वो है महात्मा गांधी ने रखे थे शिक्षा पद्धति को लेकर नई तालीम हो रविंद्र नाथ टैगोर जी का शांति निकेतन हो। हमको सवाल ये उठता है वो कुछ हद तक जाने के बाद सिमट क्यों गया? कहां कमी रही? कौन से समाज में कौन से रणनीति में कमी रही? वो सिमिट गया और हबीबी पूरा उस समय इंडस्ट्रियल कैपिटल को चुनौती देते हुए गांधी जी ने खदी को लाकर सामने आए थे। जिसको मैनचेस्टर का जो कपड़ा जो उद्योग है उसको चुनौती दिए थे। पर आज सामने इंडस्ट्रियल कैपिटल नहीं है। ट्रेडिंग कैपिटल इंडस्ट्रियल कैपिटल का बात आज फाइनेंस कैपिटल है और वो भी ग्लोबल फाइनेंस कैपिटल है। अगर वो एक्सपेरिमेंट इंडस्ट्रियल कैपिटल को चुनौती देते हुए सिमट गया तो आज कौन सी एजुकेशन सिस्टम वो लेना चाह रहे हैं और उसका रणनीति क्या होना चाहिए। मैं सिर्फ एजुकेशन सिस्टम को लेकर नहीं बोल रहा नहीं कह रहा हूं। मैं कह रहा हूं टोटल समग्रता से उस बहुजन स्वराज का जो बात कह रहे हैं कोई भी चीज को लेकर हो अर्थव्यवस्था को लेकर हो पूरा जैसे हम जिस व्यवस्था में उत्पादन का पद्धति का बात उठाते हैं उसको लेकर हो शिक्षा व्यवस्था को लेकर हो स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर हो वो उसको जिन लोगों ने प्रयास किए थे वो क्यों सिमट गया और आज कुछ इंडस्ट्रियल कैपिटल नहीं आज हमारा सामने वैश्विक वित्तीय पूंजी का जो बोलवाला है जो सेंटर पार्ट में राज कर रहा है उसको चुनौती देने का क्या रणनीति होना चाहिए और जो रणनीति पहले फेल मर गया क्या उसी रणनीति को लेकर जाएंगे ना कुछ नई रणनीति है. धन्यवाद!

रामजनम:

तो यदि कोई जोड़ना चाहता है कुछ या कोई सवाल है तो हाथ ही उठा दे साथी हम बुला लेंगे जिनको कुछ कहना है और इस बीच मैं चाहता हूं कि हमारे बीच कृषि भू बचाओ मोर्चा के नेता अमरनाथ जी हैं। वो अपनी बात कहें। अच्छा अच्छा … अरुण जी आप आइए. आइए…

अरुण जी:

सबको धन्यवाद! मंच पे बैठे हुए और सामने जो है सबको मैं एक छोटी सी बात जोड़ना चाहता हूं याद दिलाना चाहता हूं। मेरी ओरिजिन थोड़ा विचित्र ढंग की है। ढाई साल के उम्र में मैं विदेश से इस देश में आया। पांच साल की उम्र में गांव से मैं मुंबई चला गया। 20 साल की उम्र में फिर वापस गांव आया। क्योंकि पिताजी आजाद फौज से कुछ जुड़े थे। इसलिए उनकी स्मृति बातचीत सुनते सुनते मेरे मन में भी कुछ खटकता रहता था। गांव पे आया तो चाचा जी हमारे जो मालिक थे घर के उनसे मैंने पूछा क्योंकि उम्र ज्यादा थी और 42 के आंदोलन में उसके पहले आजादी के लड़ाई के आंदोलन में वो उस माहौल में रहे थे गुजरे थे। इसलिए मैंने उनसे पूछा चाचा जी आप लोग उस जमाने में क्या सोचते थे? क्या सोचते थे कि आजादी की लड़ाई होगी आजादी मिल जाएगी तो क्या होगा? उन्होंने सीधा जवाब दिया हम समझते थे कि सब कुछ बदल जाएगा। ना ये जिला रहेगा, ना कलेक्टरी रहेगी, ना डीएम रहेगा, ना एसपी रहेगा, ना थाना रहेगा, ना तहसील रहेगा। हुआ क्या एक तो नया ब्लॉक डेवलपमेंट अलग से जुड़ गया सब जो क्यों बना रहा अब वीडियो आ गया एडीओ आ गया ग्राम पंचायत ग्राम सेवक ग्राम अधिकारी हो गया अधिकारियों की बड़ी जमात गांव में फैल गई सर पे मतलब एक उल्टा पिरामिड जैसा कहा जाता है सुरई कहते हैं कि एक पिरामिड उल्टा पिरामिड हमारे ऊपर और बैठा दिया गया जिसे सीधा करना है। ये सब सुनते सुनते हम लोग हो गए। मुझे यही याद दिला रहा था तो और एक चीज और कि गांव में स्त्रियां जो लोक गीत गाती हैं या और लोग भी जो गाते हैं उसमें उसमें हर जगह उनके लोक गीतों में देश और परदेश की बात आती तो देश माने गांव और परदेश माने गांव से बाहर। लेकिन अब देश माने हो गया है ये भारत देश और परदेश माने भारत से बाहर। ये फर्क आ गया है। मूलत हमारी जो पारंपरिक सोच है उसमें देश माने गांव ही होता है। और देश से बाहर जो गया वो परदेश में गया। तो मूल बात यह है कि जो अब जो कुछ भी करना है नए सिरे से यदि ये ज्ञानी समाज बहुजन समाज के लिए हम दावा करते हैं तो ये ज्ञानी समाज अपने ज्ञान के बल पे एक नया समाज नई राज व्यवस्था नया दर्शन सब कुछ खड़ा कर सकता है। ये उसके ज्ञान के औचित पे यदि जोड़ दिया जाए फोकस किया जाए उसके मैं सवेरे संत समागम देख रहा था मुझे बहुत प्रभावी लगा यह तरीका। गांव गांव में यदि इस तरह के भजन गाते हुए टोली यदि घूमे तो उसे जरूर नई ऊर्जा का संचार हो सकता है। धन्यवाद।

रामजनम:

धन्यवाद साथियों। मुझे भी कभी-कभी बड़ा अजीब सा महसूस होता है इस व्यवस्था को देख के। जो वोट और लोकतंत्र की व्यवस्था है उसको देख के बड़ा अजीब सा महसूस होता है। जैसे वोट देने के बाद लगता है कि वोट देने के साथ-साथ ही हमारा अंगूठा कट गया। जैसे प्रतिनिधि आजकल हम देखते हैं। जैसे वह संसद और विधानसभा वो जो काम करते हैं उनकी जो कारगुजारियां उसके बाद जब देखते हैं तो लगता है कि वोट देने के बाद हमारा वोटर के रूप में अंगूठा कट गया। जिस वोट से हमने उनको वोट दिया उसके बाद हमारा काम खत्म। ऐसा लगता है। इस व्यवस्था में कहीं ना कहीं कुछ चीजें हैं। वैसे लोकतंत्र को भी जब मैं देखता हूं लोग तो है लेकिन जो ये तंत्र है ना ये तंत्र अजीब है तो मुझे जो महसूस होता है लोग तो अपना है लेकिन ये जो तंत्र है जिसको हम बहुजन समाज कहते हैं उसके ज्ञान का तंत्र नहीं है। ऐसा मुझे महसूस होता है कि जो बहुजन समाज है, जो सामान्य जन है, उसके ज्ञान का यह तंत्र नहीं है। यह कहीं और से आया हुआ तंत्र है। ऐसा मुझे महसूस होता है, जैसा अरुण जी भी कह रहे थे। जो सवाल प्रोफेसर कृष्ण गांधी ने उठाया, इसको भी हमको विचार करना होगा। शायद अब कोई साथी नहीं आएगा ऐसा लग रहा है तो और किसी साथी का कोई सवाल भी नहीं है तो या तो बहुत गंभीर बहस है या कोई वैसी बहस है दोनों तरह की बातें हो सकती हैं तो मैं काफी समय भी हो गया है खाने का समय भी हो गया है तो मैं इस सत्य की समाप्ति करता हूं और अगला पहला सत्र एक घंटे बाद हम लोग शुरू करेंगे यही पर.



शब्दांकन [TRANSCRIPT]  

विडियो लिंक: https://www.youtu.be/————

8 अक्टूबर 2025: दूसरा दिन, सत्र 5 (दो. 2.00 से दो. 4.00): स्वराज 

इस सत्र का शब्दांकन यहाँ देखा जा सकेगा कुछ दिन बाद 

 


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