बहुजन स्वराज पंचायत
सत्रों का शब्दांकन [Hindi Transcripts of Sessions]
तीसरा दिन: सत्र 6 [Day 3: Sessions 6]
शब्दांकन [TRANSCRIPT]
विडियो लिंक: https://www.youtu.be/vM9PFAlGF6k
9 अक्टूबर 2025: तीसरा दिन, सत्र 6 (सु. 11.00 से दो. 1.30): समापन
पारमिता:
और जो तीसरे दिन के सत्र में आवाज आ रही है? आज हम समापन सत्र की तरफ बढ़ रहे हैं। आज तीसरा दिन है और इस स्वराज बहुजन स्वराज पंचायत का आखिरी सत्र है। बहुजन स्वराज पंचायत का आखिरी सत्र है और समापन सत्र है। इसमें आप सभी लोगों का स्वागत है। हां और आज हम इस अभी मंच पे इस सत्र के मंच पे मैं इस पूरे लोकविद्या विचार के जो प्रणेता हैं जिन्होंने पूरे लोकविद्या विचार को एक नई मतलब मतलब होता क्या है कि हमको यह खराब है वो खराब है। यह अच्छा मतलब यह बुरा है, वह बुरा है। ये कहना तो बहुत आसान है। हां। वो तो एक गांव में जो खेती कर रहा है वो भी बता देता है कि सरकार बुरी है, महंगाई है, खाद नहीं मिल रहा है, ये है वो है। रिक्शा वाला भी बता देता है कि पुलिस की मार पड़ रही पड़ रही है, महंगाई हो गई है, सड़क पे रिक्शा चलाना मुश्किल सब बता देते हैं। लेकिन होना क्या चाहिए? समाज बनना कैसे चाहिए? इसका क्या दर्शन होना चाहिए? ये होना बहुत बड़ी बात है कि हमारे पास कल्पना होनी चाहिए कि हम कैसा समाज बनाना चाहते हैं और कैसा देश बनाना चाहते हैं। उस दिशा में हमारे यहां आदरणीय सुनील शाह बुद्धे जी को मैं बुलाना चाहती हूं। उन्होंने लोग विद्या का जो विचार प्रकट करके हम सभी लोगों के सामने जो हम ये बहुजन समाज के बारे में हमेशा ये बात करते थे। उनकी मांग करते थे कि कुछ ऐसा हो जाए, कुछ वैसा हो जाए तो उनका जीवन अच्छा हो जाएगा, सुंदर हो जाएगा। लेकिन जो ज्ञान की बात थी, वो बात पहली बार आई कि जब तक हमको इस समाज में और जो पश्चिम से आया हुआ ज्ञान है, जो आधुनिक ज्ञान है, जब तक उसके बराबर में जो समाज में ज्ञान है, उसको समानता नहीं मिलेगी। तब तक जो है न्यायपूर्ण और समानतापूर्ण समाज नहीं बन सकता है। इसके साथ ही पीयूसीएल के यहां पे अध्यक्ष हैं प्रभाल सिंह जी। मैं आपको भी आमंत्रित करती हूं कि आप भी मंच पे आइए। नीचे बैठेंगे। अब हम समापन सत्र की तरफ बढ़ रहे हैं। इसमें आज मुख्यत दो विषय रखे हैं। एक तो मतलब लगभग बनारस की टीम में एक साल से बहुजन स्वराज के ऊपर शोध कार्यक्रम चल रहे हैं। जिसकी संयोजिका चित्रा जी हैं। चित्रा जी ने जो किताब हम लोगों को मिली है और हम लोगों के पास सुर साधना का अंक भी मिलता रहता है बीच-बीच में उसके द्वारा और हर शनिवार को हफ्ते में यहां एक बैठक होती है। उसमें सभी साथी जो भी इस काम में लगे हुए हैं। कैसे इसमें जो बहुजन समाज के लोग हैं उनके समाज के बारे में उनकी राजनीति के बारे में उनके इतिहास के बारे में एक उसपे शोध का कार्यक्रम हो रहा है। चल रहा है। तो मैं चित्रा जी को आमंत्रित करूंगी कि आप आइए इसके बारे में। कैसे मतलब इसकी क्या दिशा है। क्या चल रहा है। उस कार्यक्रम के बारे में प्रगति के बारे में अपनी बातों को रखेंगे। आदरणीय चित्रा जी …
चित्रा जी:
हम लोग तीन दो दिन सघन वार्ता कर चुके हैं कि समाज किन परिस्थितियों में फंसा हुआ है हमारा समाज का संगठन और व्यवस्थाएं किस तरह की हैं और हम जो इसका का इसको नहीं चाहते इन व्यवस्थाओं को। किन विचारधाराओं के तहत इसका हल खोज रहे हैं? इस पर बहुत सी बातें हुई, बहुत से सवाल उठाए गए। इन सभी सवालों पर सभी लोगों के दिमाग चल रहे हैं। यही नहीं। देश के अनेक इलाकों में यह चल रहे हैं। इन सभी के साथ एक सघन वार्ता की जरूरत है। बहुजन स्वराज पंचायत के आगे के कार्यक्रमों में। मुख्य बात यह है कि बहुजन स्वराज पंचायत की जो बातें हुई है दो दिन में उसके बारे में थोड़ा सा मैं रखना चाहूंगी और उसके बाद शोध कार्यक्रम के तहत क्या हुआ है? किस तरह से सोचा गया है? इसकी बात रखूंगी। हमारा लक्ष्य क्या है? इस बहुजन स्वराज पंचायत का लक्ष्य क्या है? हमें लगता है जो दो साल तीन साल और लोकविद्या जन आंदोलन लोकविद्या आंदोलन के जितने भी वर्ष हुए सतत सवाल उठता रहा है कि हमें सबके हित का सबके सुख का एक समाज बनाना है। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय समाज बनाना है। तो ऐसे समाज के आधार में जब तक न्याय त्याग और भाईचारा के मूल्य उसके अंदर ही निहित नहीं होंगे। मतलब व्यवस्थाओं और विचारों के अंदर ही जब तक निहित नहीं होंगे तब तक हम यह समाज नहीं बना पाएंगे। स्वराज बना नहीं पाएंगे। समझ यह बनती है हमारी कि नैतिक ज्ञान नैतिक समाज के निर्माण की बुनियाद होती है और नैतिक ज्ञान बहुजन समाज के अंदर कसटियों के साथ उपस्थित रहता है। फैला हुआ होता है। उसको चुनना है और उससे हमको नए समाज के निर्माण की नीव बनानी है। दूसरी बात यह कि जैसा कि स्वागत में भी हम इसको कहा और फिर दोहरा रही हूं मैं कि बहुजन स्वराज लोकविद्या और सामान्य जीवन इन चार अवधारणाओं के आसपास हम अपने विचार गूथ रहे हैं। नए समाज के निर्माण में ये चारों मिलकर ये साधन भी है हमारे ये हमारी कसटियां भी है बनाते हैं और मार्ग भी है और लक्ष्य भी यही है। हमें हर चीज को जैसे हम जब बहुजन शब्द की व्याख्या करते है तो हम उसकी कसौटी सामान्य जीवन में भी देखेंगे। स्वराज की शक्तियों में भी देखेंगे। लोकविद्या के बुनियादी जीवन मूल्यों में भी देखेंगे। और तब कहेंगे कि यह बहुजन क्या है? हम लोगों हम लोगों की समझ यह रही है कि बहुजन यानी सामान्य जन सामान्य जन यानी सामान्य जीवन जीने वाले लोग हमारा हमारे सामने यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि सामान्य जीवन जीने हम किसी भी पूर्वाग्रह से बचने की कोशिश करेंगे। किनहीं भी पूर्वाग्रहों से बचने की कोशिश करेंगे। सामान्य जीवन यानी सादगी भरा जीवन नहीं स्वराज यानी ग्राम समाज स्वराज नहीं लोकविद्या यानी परंपरागत विद्या नहीं बहुजन समाज मतलब जातियों में बटा समाज नहीं समाजों से बना समाज है। अभी तक की जो भी समझ हमारे शासन के वर्ग ने बनाई है। विश्वविद्यालयों में खूब उसमें इजाफा किया है। प्रतिष्ठित लेखन और प्रतिष्ठित साहित्यिक मूल्यों में भी वही विचार आए हैं जो पश्चिमी समाज के समान उसकी नकल पर हमारे समाज को देखते हैं और बनाने की कोशिश करते हैं। चाहे पक्ष हो चाहे विपक्ष हो चाहे आंदोलन के नेतृत्वकारी लोग हो चाहे मॉडल तो वही है। प्रेरणा वही से है। तो यह एक दिक्कत है हम लोगों के सामने। हमें यह कहना है कि इन भ्रमों से ऊपर आना है। लोकविद्या परंपरागत विद्या नहीं है। उसमें फंसे नहीं। कई लोग इसलिए जातियां दिखाई दे रही है इसलिए जाति को यह समझना बहुत जरूरी है कि ये तो जाति शब्द कहना ये केवल विश्वविद्यालय की विद्वत्ता और राजनीतिक दावपेच इनके चलते बहस में सार्वजनिक बहस में और व्यवस्थाओं में बढ़ती चली गई है। अगर हम अपने बहुजन समाज को हम देखेंगे तो आज तक अगर जातियों का यह नामोनिशान नहीं मिटा है तो इसका मतलब है समाज की समझ जो पश्चिम से आयातित है समाजशास्त्र में है वो जड़ है। उसमें समाज वस्तुओं की तरह देख रहे हैं और उनमें आपस में संबंध बनाने के घर्षण के तरीके देख रहे हैं और उसके मार्फत समाज निर्माण की प्रक्रियाओं को आकार देने की कोशिश में है। इसको छोड़ना होगा। हमारे यहां जो तरीका रहा है अगर हम बहुजन समाज के पास जाएं तो समाज एक जैविक क्रिया है। जिस तरह जंगल में पैदा होते हैं। वृक्ष एक दूसरे के पूरक होते बढ़ते जाता है। जंगल उस तरह से समाज बनते हैं। नए जन्म लेते हैं। पुराने मरते हैं। कई एक दूसरे को देने लेने की क्रियाएं करते हैं। जिस तरह से लोकविद्या बनती है। लोकविद्या भी समाज में जितने भी ज्ञान के प्रकार हैं, ज्ञान की धाराएं है, उनमें आपस में मिलजुलकर बनती है। एक दूसरे को ले देकर बनती हैं मरती है कुछ नहीं बनती है। सतत नवीन होती रहती है। तो ये एक समझ इस पूरे आंदोलन, लोकविद्या आंदोलन के पीछे रही है। दूसरी बात यह भी है कि ये लोकविद्या से जुड़े जितने भी लोग हैं वो बुद्धिजीवी नहीं है। जैसा कि कल की बातों में भी आया बुद्धिजीवी शब्द उनके लिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि ये ज्यादातर जैसा पहले कई सम्मेलनों में कहा आंदोलनों से आए हुए लोग सक्रिय भागीदार करते हैं जो और आज भी कर रहे हैं। तो ये विचार नहीं है कि यह किसी कमरे के अंदर का लोकविद्या विचार है। यह समाज में खड़े होकर आज भी विद्या आश्रम किसान और कारीगरों की पंचायतों का जीवंत स्थल है। किसी भी जगह से लोग आते हैं और यहां अपने अपनी समस्या और अपने अपने मार्गों की खोज के लिए यहां चिंतन मनन पंचायते करते हैं। तो यह एक लोक इसीलिए इसको हम लोगों ने ज्ञान आंदोलन किया कहा है क्योंकि समाज के निर्माण में एक नए नरैरेटिव की जो जरूरत है उसमें एक नए ज्ञान का आधार भी होना है। हम साइंस के आधार पर नैतिक समाज नहीं बना सकते। साइंस की को किसी भी दूसरी बात जो महत्वपूर्ण है लोकविद्या आंदोलन किसी को भी दुश्मन नहीं करार देता। हमको किसी को भी मारने की जरूरत नहीं है। नियंत्रित और सीमित करने की जरूरत है। इस अर्थ में कि जैसे साइंस हम साइंस के प्रति बहुत खराब दृष्टि रखते हैं। यहां तक कि उसको कई लोगों ने मानव भक्षी भी कहा। यह बात सही है और उसमें कोई यह नहीं है। लेकिन हम मानव भक्षी कहकर कोई बहुत क्रांतिकारी बात कह रहे हैं। ऐसा नहीं है। हम यह कहेंगे कि हम लोगों के पास जाएंगे। बहुजन समाज तय करेगा कि साइंस के किस पक्ष से हमें क्या चाहिए। तब तय होगा। हम नहीं बैठकर या विश्वविद्यालय नहीं तय करेगा। और यह हर इलाके के जलवायु और मनुष्यों के रहनसहन की संस्कृति के अनुकूल तय होगा। तो यह दृष्टि हम आधुनिक राजसत्ता के प्रति भी रखते हैं। हम विश्वविद्यालयों के प्रति भी रखते हैं और अन्य जो भी संस्थाएं हैं समाज में उनके प्रति हम रखते हैं कि उनकी भूमिका अति हो रही है अगर तो बहुजन समाज या बहुजन स्वराज पंचायत बैठेगी और कहेगी येती कर रहे हैं। इनको नियंत्रित करना होगा। इतिहास के प्रति भी हमारी दृष्टि यह है कि गौरव शाली परंपराओं का जिक्र विश्वविद्यालय की विद्या में यह किया जाता है कि हमारा राज कहां तक फैला। गिरीश जी ने विषय प्रवेश में ही कहा कि दुनिया में अभी सत्ता के ऊपर कितने किस कितने तरह की बहस चल रही है और ज्यादातर उनमें साम्राज्य फैलाने की व्यवस्थाओं को गढ़ने का शक्तिशाली देशों की तरह से तरफ से प्रस्ताव आता जा रहा है। बहुजन स्वराज पंचायत इसके खिलाफ है। किसी भी विचार, किसी भी कार्य पद्धति, किसी भी प्रणाली, किसी भी व्यवस्था का एकाधिकार अथवा साम्राज्य अत साम्राज्य को बढ़ाने का दूसरे पर अतिक्रमण करने का बहुजन स्वराज पंचायत विरोध करती है और बहुजन समाज का आवाहन करती है कि इस पर सोचे और कदम उठाए कि यह कैसे नियंत्रित किए किए जा सकते हैं। कृष्ण गांधी जी ने कहा कि अहिंसा के मार्ग अपनाने हैं। यही अहिंसा का विचार है। हम दुश्मन नहीं करार देंगे इनको। हम नियंत्रित करने की अपनी विद्या को अधिक धारदार बनाएंगे। हम अन्याय से का प्रतिरोध करने और एक नई लाइन खींचने का कार्य शुरू करेंगे। नैतिक लाइन खींचने का और उसे अधिक मजबूत मजबूती से उसका अस्तित्व बढ़ाने का कार्य करेंगे। तीसरी बात जो इस शोध कार्यक्रम के पीछे है वो है वर्तमान परिस्थितियों के प्रति हमारी जो दृष्टि है काफी कुछ इसमें आ गया है लेकिन एक दो बातें आज की व्यवस्था में पूरी दुनिया में वित्तीय पूंजी साइंस और आधुनिक सत्ता का प्रकार चाहे वो समाजवादी राज्य सत्ता हो चाहे वो डेमोक्रेसी के नाम पर हो चाहे वो [संगीत] रूढ़िवादियों की हो दक्षिणपंथी जैसे आज हमारे यहां है उनकी हो इन सबका ज्ञान आधार एक ही है। सभी लोग साइंस की बहुत पूजा करते हैं। देव है। बहुजन समाज के खिलाफ चला जाए। सबको मार दिया जाए। फिर भी वो साइंस के खिलाफ आवाज उठाने के लिए तैयार नहीं है। तकनीकी को गाली दे देंगे। कुछ कुछ कर देंगे। ऐसा कुछ होगा लेकिन साइंस के खिलाफ नहीं है। तो हम इस गठबंधन को चुनौती देना जरूरी समझते हैं। अगर आज की व्यवस्था में एक नए समाज संगठन का विचार लाना है। अब इस नए समाज संगठन का विचार अगर आयात नहीं लाना है तो खोज करना है कि हमारे पास क्या है। शोध कार्यक्रम की यह शुरुआत है। हमें बहुजन समाज के विचार में जो भी ज्ञान है, जीवन मूल्य है, उनकी विरासत है, उनकी परंपराएं हैं, उनका दर्शन है, उनकी प्रवृत्तियां है, उनकी पहल है, उनकी सीमाएं हैं। उनका एक बहुत वास्तविक और भावपूर्ण मैं इस पर जोर दे रही हूं। एक वास्तविक और भावपूर्ण आकलन होना है। इनकी शक्तियों के स्रोत जब हम खोजते हैं, खोजेंगे तो केवल भौतिक रूप से संकेत करके नहीं होगा। उसमें निहित भावों को उजागर करना पड़ेगा। जंगल के प्रति उनकी क्या दृष्टि है? जंगल नदी के प्रति उनका क्या भाव है? उसके आधार पर समाज संगठन के प्रकार क्या हो सकते हैं? उस इलाके के विविध समाजों की भूमिकाएं क्या हो सकती हैं? इन सब पर एक शोध कार्यक्रम होना चाहिए। जिसमें पिछले कई सदियों से यह जो देश की सभ्यता ने आकार लिया है उसने इसको कैसे हैंडल किया है। किस तरह से इसको चलाया है ये भी एक बात है। लेकिन किसी भी चौखट में फंसने की जरूरत नहीं है। जरूरत इस बात की है कि ज्वलंत समस्याओं के साथ हम निर्माण की बात को जारी रखें। हम बंधे ना रहे कि इस ये चीज खतरनाक है अगर या जैसे प्लास्टिक के बारे में हो सकता है। किसी तकनीकी के बारे में हो सकता है। किनहीं प्रथाओं के बारे में हो सकता है। जिनको नासमझी में हम अंधविश्वास कह सकते हैं कह देते हैं। इन सारी चीजों के प्रति एक नजरिया रखना होगा और वो नजरिया ये होगा कि उस क्या ये प्रमुख कारण है आज की समाज अह समाज में अन्याय का अगर है तो उसका पैमाना कितना बड़ा है? वो क्यों है? उसने क्या भूमिका अदा की है? उसके बिना हम उसको नकारेंगे नहीं। इन सारी बातों पर एक नए ढंग से विचार करने की जरूरत है। तो यह भूमिका रही है हमारी हमारा इस जैसा कि परमिता जी ने कहा कि लोकविद्या जन आंदोलन और विद्या आश्रम की स्थापना के पहले हम लोग जन आंदोलनों से जुड़े हुए लोग हैं और हमारे लिए जन आंदोलन एक कसौटी रहा है जो भी हो समाजों के जो आंदोलन है, वह एक कसौटी रहे हैं कि किस तरह से वो लोग सोचते हैं। उनका नेतृत्व नहीं उनका नेतृत्व फंसा हुआ है। उनका नेतृत्व चाहता तो है कि लोगों को उनके अधिकार मिले। लेकिन वो अपने विचार और अपने मूल्य बहुत कुछ पश्चिमी पश्चिमी मत कहिए। लोगों बहुजन समाज से अलग परकीय सिद्धांतों और परकीय मूल्यों के तहत देखने की आदत होने से वो फंस जाते हैं और दिशाहीन हो जा रहे हैं। इसमें से निकलना होगा। पिछले करीब कोविड के बाद से और जब से दिल्ली में किसान आंदोलन उठा है उसके बाद दो क्रियाएं लोकविद्या आंदोलन में बहुत गंभीरता से चली हैं। एक तो नागपुर से गिरीश जी ने ऑनलाइन चर्चा चलाई है लोकविद्या समूह के अंदर जिसमें आप देख सकते हैं कि वो उसके ट्रांसक्रिप्शन हमारी वेबसाइट पर अवेलेबल है और कुछ जिक्र इन्होंने इस पुस्तिका में भी किया है जो इस पंचायत के अवसर पर प्रकाशित की गई है। आपको विस्तार से कोई भी विषय छूटा हुआ नहीं मिलेगा जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विविध क्षेत्रों में हो रहा है। चाहे राजनीति हो, चाहे तकनीकी हो, चाहे नई तकनीकी यहां हो। राज सत्ताओं में हो रहे परिवर्तन कोई विषय छूटा नहीं है जिसको लोक विद्या दृष्टिकोण से देखने की और उसमें क्या होना चाहिए इस पर बात करने की। विविध चर्चाएं हुई हैं। उसी तरह से विद्या आश्रम पर लगभग पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र से आए अनेक तरह के कार्यकर्ताओं के बीच में उन चर्चाओं को लाकर एक सक्रिय पहल विविध इसमें ली गई है। नईनई लाइन खींचने की कोशिश की है। बौद्धिक सत्याग्रह, ज्ञान पंचायत और भाईचारा विद्यालय इस तरह की गतिविधियां, बहुत से कार्यक्रम लिए गए। वहां से चलकर हम लोग आए बहुजन स्वराज पंचायत पे आए हैं। खैर तो अब मैं कहना चाहती हूं कि हमारे शोध कार्यक्रम का लक्ष्य क्या रहा? इन सारे अनुभवों और इन सारी चर्चाओं और इतने सारे लोगों के योगदान के बाद जिनकी कोई गिनती नहीं है इस विचार को बनाने में। अनगिनत लोगों ने इस विचार को बनाने में काम किया है। केवल सुनील जी ने या केवल विद्या आश्रम ने या केवल इस समूह ने नहीं किया है। इसमें अनगिनत लोगों का योगदान है इस को करने में बनाने में। तो हमने कुछ प्रस्थापनाओं पर सहमति इस समूह में की है और जगह जगह ज्ञान पंचायत स्थापित कर इन पर लोगों के विचार लिए हैं। इन प्रस्थापनाओं को मैं पढ़ रही हूं यहां और उनके बल पर हम लोग एक नई लकीर बहुजन स्वराज पंचायत की बनाने की कोशिश करेंगे। या कर रहे हैं 2 साल से अभी बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है जो कुछ हुआ है वो शुरुआत है। पहला है कि यह देश यह भूमि बहुजन समाज की है। रही है और आगे बनी रहने के लिए प्रयास करने की कोशिश करनी है। इसका मतलब क्या सोचते हैं हम? बहुजन समाज की ज्ञान परंपरा पहली प्रस्थापना है कि बहुजन समाज की ज्ञान परंपरा लोकविद्या में है। बहुजन स्वराज बनाना है तो पहल बहुजन समाज के पास होनी होगी और बहुजन समाज की पहल का आधार लोकविद्या में है। बहुजन समाज की दर्शन परंपरा संत वाणी में है। जो सत्संग में हमें दिखाई देती है केवल यहां तो कुछ पद ही प्रस्तुत किए आज के पद में बहुत साफ आ गया कि दर्शन और संत वाणी का मतलब क्या है? समाज को कैसे गढ़ना है कि कौन-कौन से भ्रम के जाले सामने पड़े हुए हैं और उनको किस-किन साधनों से हमें बाहर करना है, फेंकना है, जला देना है। अगला है बहुजन समाज की राज परंपरा स्वराज की परंपरा है। यह प्रस्थापना है और इस पर काम भी हुआ है काफी। हम ही ने नहीं किया है। कई लोगों ने किया है और ज्यादातर लोगों का कहना है कि यह जो जातिगत चार वर्ण बताए गए हैं और उनके कान जो गिनाए गए हैं वैसा वास्तविक बहुजन समाज के इतिहास में दिखाई नहीं दे रहा है। हो सकता है कहीं हो कहीं नहीं हो। इसकी खोज हुई है। लेकिन विश्वविद्यालय ने जो इतिहास लिखा है उनमें से हम अगर थोड़ी सी जाग सचेतन दृष्टि से उसको पढ़े तो हमें एक भी राजा क्षत्रिय नहीं दिखाई देता और न उसकी राज प्रणाली में हमें कोई ऐसी मनुस्मृति की उपस्थिति दर्ज देखी मिली है। राजा भोज हो चाहे राजा मालवा का राजा भोज हो चाहे आपका मौर्यकालीन राजा चंद्रगुप्त हो चाहे गुप्तों का गुप्त साम्राज्य हो साम्राज्य होना की कल्पना भी क्या है मालूम नहीं है साम्राज्य नाम कब दिया गया गुप्त और मौर्य के मालूम नहीं लेकिन कुछ परंपराएं चल पड़ी है जैसे हमारे यहां हम सारनाथ में बैठे हैं यहां हर बार अशोक के नाम से जुलूस निकलता है। किस दिन किस दिन निकलता है शायद मुझे याद नहीं आ रहा है। ये बता पाएंगे लक्ष्मण जी। हां तो उसमें लिखा होता है सम्राटों के सम्राट राजा अशोक। तो ये प्रवृत्ति बहुजन समाज में है नहीं। यह आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजों के और अभी की साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों के चलते आ गई है। राजा को इतना ज्यादा महत्व रहा हो यह कहीं दिखाई नहीं दे रहा है वास्तविकता में। तो इसको इसके एक बहुत खोज होने की जरूरत है। इस शोध कार्यक्रम में यह भी काम होगा। दूसरा है कि हमारे यहां विधा अगला है विधि विधान की जो परंपराएं हैं वह पंचायत की परंपरा रही है और हर क्षेत्र में हर स्तर पर हर विषय में पंचायतों के मारफत निर्णय और विधि विधान बनते रहे हैं और उसके अनुसार कार्य होता रहा। हमको जैसे हमने उनका मुरदैया भी पढ़ा तुलसीराम जी का। उन्होंने पंचायतों का कैसे चलती हैं इसका बखूबी वर्णन भी किया है। कोई सजा देने का अपराधी को कोई बहुत बड़ी सजा देने का कोई प्रावधान ही नहीं है। उसमें ज्यादा से ज्यादा होता है कि एक भोज करा दो भाई गांव को। इतना बोझ डाल देते हैं तुम पर। यह सबसे या फिर अति हो गया तो जाति बाहर कर देते हैं। समाज के बाहर है। तो यह थोड़ा सा देखने की जरूरत है कि किस तरह से चलते हैं। ऐसा शासन को कोई बहुत कड़ा रुख लेना होता है हर कदम पर। इसकी जरूरत नहीं रहती है। अगला बिंदु यह है कि हमारे यहां की तर्क परंपरा हमारे किसान समाज और कारीगर समाज के कार्यों या आदिवासी समाज के कार्यों में यूं कहे कि लोकविद्याधर समाजों के में देखी जा सकती है। तर्क परंपरा निर्जीव नहीं है। यहां की तर्क भाव पूर्ण होना, तर्क कला पूर्ण होना ये यहां की परंपरा है। इसकी खोज और इसकी वास्तविक आज उपस्थिति हम देख सकते हैं। आर्थिक व्यवस्था का आधार जो रहा यहां वो मूल रूप से कम संसाधन और कम पूंजी के मार्फत होता रहा है। संसाधन भी कम होंगे। उत्पादन का पैमाना भी बहुत ज्यादा नहीं होगा और पूंजी और ज्ञान उसमें लगने वाला भी स्थानीय स्तर पर या आसपास जो है वो लगना लगने पर वो पूरा निर्माण होता था। ये आज भी है। आप अगर देखेंगे हमारे किसान कारीगर छोटे-छोटे दुकानदार ये सब छोटी पूंजी से चलाने वाले उद्यमी हैं और इसके विशेषज्ञ हैं। तो ये इनकी ताकत है। ये ये जितने भी हम अपने शोध कार्य की प्रस्थापनाएं रख रहे हैं ये बहुजन समाज के शक्ति के स्रोत हैं और इनके बल पर बहुत से जन आंदोलन आपको चलते हुए दिखाई दे जाएंगे क्योंकि उन पर आक्रमण है क्योंकि साम्राज्यवादी शक्तियां इनकी छोटी पूंजी के कारोबार को उजाड़ना चाहती है। अपने हाथ में लेना चाहती है। जिस जिन संसाधनों का यह उपयोग कर रहे हैं उन पर उन पर वह कब्जा जमाना चाहती है तो इन सारी अन्याय प्रवृत्तियों का जवाब हमें एक नई शुरुआत करके देना है वो है बहुजन स्वराज पंचायत मैं इतना ही कहकर अपनी बात रखती हूं लेकिन दो बातें सुझा अपना सुझाव यहां रखना चाहती हूं एक तो यह कि हम बहुजन स्वराज पंचायत के बारे में जब भी सोचे अगला काम वो आंचलिक स्तर पर सोचे तो ज्ञान के खजाने मिलेंगे हमें जिसके बल पर बहुजन स्वराज पंचायत आयोजित की जा सकती है और दूसरा खासतौर से हम पगडंडी समूह से आए हुए लोगों से अपील करते हैं कि वे जिन सवाल जिन इन सवालों को उठा रहे हैं। कल के सत्र में अच्छे सवालों को उठाया है। उसके साथ एक विकल्प देने की जरूरत है। उनको ही देनी है और केवल विकल्प नहीं क्योंकि ये पढ़े लिखे लोगों का एक समूह है। हम चाहते हैं कि वर्तमान व्यवस्था में जो नीतियां बन रही है जिसकी वजह से आपकी छत सीमेंट की बन रही है। बनाने की बाध्यता है। वो केवल मूल्य नहीं है। वो नीतियां है जो उनको दबाव में ला रही हैं कि वो छत बनाए अपनी सीमेंट की या पत्तल ना बनाए, कुल्हड़ ना बनाए। तो उन नीतियों के प्रति आप सचेत हो क्योंकि आप पढ़े-लिखे लोग हो। हम लोग अगर हमारा बहुजन समाज उन व्यवस्थाओं को उन नीतियों को नहीं समझ रहा है तो आप जिम्मेदारी ले कि बहुजन समाज के खिलाफ जितनी नीतियां किसी भी सरकार या किसी भी व्यवस्था के अंदर है उनका चरित्र क्या है वो लोगों के सामने खोले ये इस बारे में सोचे और इस पर हम चाहेंगे उनके साथ संवाद चले इस शोध कार्यक्रम के तहत. धन्यवाद!
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद जी यह बात तो बिल्कुल सही कही कि जो नीतियां बन रही हैं वो बहुजन समाज को मतलब ऐसी कि हे बने बहुजन समाज की विद्या उनका ज्ञान उनका का रहन-सहन दोयम दर्जे का हो गवार माना जाए इस तरह क्योंकि हमने देखा कि जो जेंडर के ऊपर बात करने वाले लोग हैं महिलाएं खासकर उन लोगों ने ये सवाल उठाया कि जब हम किताबों में चित्र आप बनाते हैं तो मां को रोटी बेलते हुए महिला को कपड़े धोते हुए ऐसे ही दिखाते हैं या पुरुष को पढ़ाते हुए या ऑफिस में बैठे हुए ऐसे दिखाते तो इस रोल में आप क्यों नहीं उल्टा करते हैं कि पुरुष भी सब्जी काटे या रोटी बनाए और महिला भी मतलब अखबार पढ़ने के रूप में या चाय पीने के उसमें क्यों नहीं आ सकती है। इन सवालों को उठाया। तभी चित्रा जी ने और जो आदमन ने कहा कि जब हम पहाड़ में बच्चे स्कूल में पढ़ने जाते हैं तो वो देखते क्या है? जो किताबें हैं छोटे बच्चों के जो किताबों में घर बने हैं घर तो पक्के बने हुए हैं। सीमेंटेड घर बने हैं। कई मंजिला घर बने हैं। तो बच्चों का आकर्षण वो परिवार का आकर्षण तो वो घर है। जबकि अगर हमको तो लगता है कि किताबें भी मतलब कोर्स की किताब भी जिस समाज में पढ़ने जा रहा वहां का रहन-सहन वहां की भौगोलिक स्थिति वहां की पर्यावरण की स्थिति जैसी होती है वैसी किताब भी छपनी चाहिए। अब किताब तो आप दिल्ली से बैठ के छापेंगे। अल्मोड़ा में कुमाऊं में रानीखेत में जहां भी पढ़ने वाला बच्चा है वो पक्के मकान देखेगा। अगर उसी किताब में उसके सिमें वैसे मकान हो जो कि बर्फ से मतलब वो दिखाते हैं जो तो वो मकान रहे तब उसको लगेगा कि हां ये मकान जो है हमारे मकान है तो उस मकान की कल्पना करेगा क्योंकि मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी बहुत छोटी थी दो ओम पढ़ती थी एक किताब थी हम लोगों की उसमें था एक पोयम थी उठो लाल अब आंखें खोलो पानी लाई मुंह धो लो पोयम तो अच्छी लगती थी लेकिन मुझे क्षेत्र अभी भी याद है कि सुंदर सा कमरा था, पर्दा लगा हुआ था। सामने पेड़ था, चिड़िया उस पे बैठी हुई थी। सूरज आ रहा था। हम सोचते थे काश मेरा भी घर ऐसा होता। तब तो उठो लाल आंखें खोलो समझ में आता। नहीं तो उठो लाल कहां से यहां तो पहले ही बाबा चिल्लाते हैं कि उठो जरा पानी कुएं से खींचो, ये करो, वो करो दुनिया भर के। तो वो मतलब ये बच्चे के अंदर एक सपना आता है उस किताब को देख के। तो जो चित्रा जी ने कहा कि वो नीतियां बनती हैं जो कि हम बहुजन समाज को हमारे रहन-सहन को हमारी विद्या को हे बनाती हैं दोयन दर्जे का बनाती हैं। हमसे ये कहती हैं कि आप जब तक हमारे जैसा नहीं बनते हो तब तक आप जो है सभ्य नहीं माने जाते हो। इसी क्रम में हम चाहते हैं कि जो हमारी ये शोध की शुरुआत हुई है, बहुजन विमर्श की जो शुरुआत हुई है जो चित्रा जी ने उसमें अगर कोई और साथी अपनी बात रखना चाहे या इस कार्यक्रम में अपनी मदद करना चाहे तो उनका स्वागत है। वो अपना आके यहां बोल सकते हैं। कोई साथी है? हां आइए। [संगीत] जानकी भगत जी आए हैं लेकिन टाइम बस पांच मिनट का है। कम समय में ही अपनी बातों को आप रखिएगा और विषय पर ही रखिएगा कृपा करके बस
जानकी भगत: [अर्जक संघ, रोहतास बिहार]
साथियों मैं पहली बार इस नगर में आया हूं, और ऐसी गोष्टी चर्चा में मैं भाग लिया हूं। जब मैं यहां आया और चर्चा हुआ तो मेरे सोच में और ही बदलाव होने लगा कि शायद मैं जो सोचता था उससे भी बेहतर सोच देश में फैलाया जा सके क्योंकि जब मैं बचा था और सामाजिक विषमताएं थी उस विषमताएं के खिलाफ लड़ते लड़ते आज ये परिस्थिति आ गया हमारी आजादी 78 वर्ष हो गई जब पहले आजाद नहीं थे तो कहते हम गुलाम है क्या करेंगे लेकिन जब आजाद हो गए तो उससे भी जो मानवता का है भाईचारा खत्म हो रहा है हिंदुस्तान की धरती से सब जानते हैं अपराध की घटनाएं बढ़ रही है मैं एक सभा में कह दिया कि भारत गौतम बुद्ध की धरती है राम की धरती है लेकिन ये बताइए भ्रष्टाचार मुक्त भारत और भय-मुक्त भारत का निर्माण कैसे होगा? किसी साथी ने यह सवाल कहा कि अरे हम कहे कि भाईचारा कैसे होगा? इंसान विवेकशील मनुष्य विवेकशील प्राणी है। पशु पक्षी सहज बुझिरी का जीव है। लेकिन जो अभी हमारी शिक्षा नीति है, समाज नीति है, समाजशास्त्र पढ़ाया जाता है। लेकिन उस समाजशास्त्र में और समाज की बुराइयों का अवलोकन नहीं किया जा रहा है कि किस तरह से हमारा समाज चलेगा और नया भारत बनेगा। क्योंकि हमारा देश अभी मजहब में फंसा है। धर्म में फंसा है। मैं तो चैलेंज करता हूं कि कितने भी लोग धर्म की परिभाषा जानते हैं। यूनिवर्सिटी में पढ़े लिखे लोग नहीं जानते हैं। 5% भी नहीं जानते हैं। जात की परिभाषा नहीं जानते हैं। समाज की परिभाषा नहीं जानते हैं। समाज क्या चीज है? तो इन बिंदुओं पर मैं थोड़ा थोड़ा प्रकाश डाल डालता हूं। साथियों समाज सम माने बराबर आज आज बराबर मनुष्य की छह क्रियाएं होती है उठन बैठन बोलचाल खानपान में इच्छ में समता रहेगा तो समाज कहलाएगा इच्छा में समता नहीं रहेगा तो समाज नहीं कहलाएगा आप हमसे अधिक जानते हैं भारतीय व्यवस्था में क्या हो रहा है दूसरी बात धर्म के परिभाषा में मैं कहना चाहता हूं मानव जीवन में अच्छाई को ग्रहण करना मानव हित में अच्छाई को ग्रहण करना धर्म है धातु है तम प्रत्यय लगा हुआ है धर्म लेकिन आज क्या हो रहा है धर्म के नाम पर मंदिर बन रहा है हमारे प्रधानमंत्री जी आ रहे हैं ज्ञान के लिए स्कूल नहीं खोलते हैं और किसी भी दुनिया में किसी भी यूनिवर्सिटी में ईश्वर की पढ़ाई नहीं होती है भगवान की पढ़ाई नहीं होती है लेकिन की धरती पर ईश्वर के लिए स्कूल खुल बोले जा रहे हैं। देवी देवताओं को पूजा पाठ कराया जाता है। हिंदुस्तान के लोगों को नाबालिक बनाया जा रहा है। विज्ञान मानव ज्ञानी है ना मनुष्य के अंदर पांच कर्म इंद्रियां है। पांच वो ज्ञान इंद्रियां है और इस पर जब चोट पहुंचेगी तो शायद वो धूमिल हो जाएगी। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप लोग आगे चर्चा बढ़ाइए और इसको क्योंकि मैं मोबाइल चलाना उतना नहीं जानता। लेकिन मैं व्यवहार में आचरण में और समतावादी मैं परसों रोज बोला था कि अगर सबसे इस देश का महान आदमी है तो कबीर है और शास्त्री है बुद्धिजीवी है संत है भाईचारा का पर कबीर ने कहा था ना कि पोथी पढ़ पढ़ जग हुआ पंडित हुआ ना कोई अढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित हो कहां गया भाई प्यारा हमारे शरीर के अंदर पांच गोरिया है ना और पांच गुरियों में अगर कोई भी पीड़ा हो, दुख हो तो सारे शरीर को हिला देती है। उसी तरह समाज में अगर गरीबी रहेगी, अशिक्षा रहेगी तो देश के विजीों को, संतों को, चिंतकों को वेदना होना चाहिए। लेकिन इस पर बहस नहीं होती है। पार्लियामेंट में बहस नहीं होती है। ना समाज में बहस होती है। हम तो आज इस विद्या आश्रम के लोगों को साथियों को बहुत धन्यवाद देता हूं कि शायद आपने सोचने के लिए जो पहल की है इसलिए आप बधाई के पात्र हैं। और हम लोग भी जन आंदोलन चलाते हैं। लेकिन जनों का काम एक दो मुद्दा पर होता है। पूरे देश के स्तर पर और सोच के स्तर पर नहीं होता है। तो हम चाहेंगे कि आगे की लड़ाई चर्चा कीजिए और दिमाग जो है कुंठित दिमाग को खोलिए और अधिक से अधिक नौजवान और बुद्धियों को जोड़िए। इतने बात कह कर मैं अपनी बात खत्म करता हूं।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद जानकी भगत जी। क्या आपको भी कुछ बोलना है? अच्छा अभी अवधेश जी आ रहे हैं। मैं अवधेश जी यह जो शोध कार्य है इस पर …
अवधेश:
चित्रा जी ने जिस क्षेत्र में पहला नाम लिया धरती का तो मैं प्रस्ताव रखता हूं कि जो उन्होंने कहा धरती को लेके बहुजन स्वराज पंचायत की बात मुझे लगता है कि हम लोग जो कर रहे हैं वही कर रहे हैं इसको थोड़ा थोड़ा सा और अच्छे तरीके से कर सकते हैं। इसके लिए सिंगरौली का क्षेत्र बहुत बढ़िया रहेगा। उदाहरण के तौर पे आज जो भी हो रहा है आज सभी लोग जो लोग विद्या आंदोलन से जुड़े लोग हैं गए हैं आए हैं वो जानते हैं कि धरती मां की क्या दशा हो रही है। तो मैं स्वागत करूंगा। यहां पर उसके लिए टीम भी है। आर्यमन जैसे लोग भी हैं तो उनके पास में पूरा है। मैं केवल इतनी बात कहता हूं कि इसका मैं स्वागत करता हूं।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद अवधेश जी। अभी अरुण जी हैं। फिर उसके बाद विजय जी।
अरुण जी:
मुझे बहुत थोड़ी बात करनी है। एक बात तो यह कि आवाज दुनिया भर में कई प्रकार की है। लेकिन सामान्य जन की आवाज कोई नहीं है। कोई ऐसी आवाज नहीं है कि जो सामान्य जनता को अपील करे। विद्या सब लोकविद्या के माध्यम से सामान्य जिनकी आवाज लोकविद्या बने इसकी कोशिश में लगा हुआ है। तो मेरी कामना है कि ये सामान्य आवाज बने। गांव गांव के अंचलों के स्तर पे और संतों की वाणी के माध्यम से ये दी जाए। दूसरी बात यह कि मेरी जहां तक जानकारी है दुनिया भर में जितने भी धर्म है सब में स्वर्ग और नरक की कल्पना है हमारे गुट्ठी में है खून में है स्वर्ग का लालच और नरक का भय लेके हम पैदा होते हैं और इससे मुक्त नहीं हो पाते और मेरी मान्यता है कि जब लालच और भय ये दो से जब तक मनुष्य मुक्त नहीं होगा तब तक कोई रास्ता नहीं हो सकता है। तीसरी बात हमको आदत पड़ गई है अरब अरब देशों को मिडिल ईस्ट कहने की। पश्चिम के लोग मिडिल ईस्ट कहे ये तो बात समझ में आती है। हम पूरब के लोग क्यों मिडिल ईस्ट कहे? लेकिन ये दबाव है ऊपर का। पढ़े लिखे लोग मिडिल ईस्ट कहते हैं। सामान्य जन भी मिडिल लिस्ट कह देते हैं। तो यह दबाव है। तो इस दबाव से मुक्त होने की जरूरत है। भारत की पूरी जनता पढ़ा लिखा उच्च वर्ग का हो, निम्न वर्ग का किसी भी वर्ग का हो। सबको मालूम है सब जानते हैं कि काशी इस धरती पर नहीं है। पृथ्वी पर नहीं है। शंकर जी के त्रिशूल पर है। शंकर जी के त्रिशूल पे है। का आशय क्या ये हो सकता है? कि ये ग्रीनविच लाइन हो। क्यों हम ग्रीनविच के फेर में पड़े? हम खोजे कि काशी क्या वो जीरो देशांत या जीरो अक्षांश पर बैठी बसी हुई है। क्यों नहीं खोजते? ये कुछ शंकाएं थी जो मैंने रखी। ये जुड़ा हुआ हो तो ठीक है। नहीं जुड़ा हुआ तो समझ लीजिए। ठीक है। इतनी ही बात करनी थी मुझे।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद अरुण जी। विजय जावंधिया जी आ रहे हैं। अभी हम लोग बहुजन स्वराज पंचायत पर भी बात रखेंगे और सबको उसमें बोलने के लिए आमंत्रित करेंगे। इस विषय से संबंधित बात हो तो ही इस पर रखिए। विजय जी …
विजय जावंधिया:
नमस्कार! धन्यवाद। मैं इसलिए बोलने के लिए थोड़ा प्रेरित हुआ कि चित्रा जी ने कल वो आर्यवन की बात का जिक्र किया और नीति की बात कही कि क्या नीति है जो हमारे छत को सीमेंट कंक्रीट की बनाने की बात कर रही है। आर्यवन ने एक एनर्जी की बात कही थी। बिजली की भी बात कही थी। मैंने मेरे प्रेजेंटेशन में कल यह बात कही थी नीति के बारे में और विनोबा जी के यहां यह वाक्य लिखे हुए हैं। तो इसमें विनोबा जी ने भी जो एक बात कही है उसका जिक्र करके मैं ये नीति के बात को रखना चाहता हूं। विरोबा जी ने एक जगह ऐसा कहा है कि पैसा लफंगा है और विरोबा जी के समर्थकों ने पैसा लफंगा है इस बात को लेकर कांचन मुक्ति का आंदोलन चलाया पैसे से दूर रहो पैसे से दूर रहो मेरा ऐसा मानना है शायद मैं गलत हूं पैसा लफंगा है और विनोबा जी का कहने का मतलब यही था कि ये पैसे की जो लफंगे गिरी है। यह पैसे के लफंगे गिरी पर समाज का नियंत्रण चाहिए। पर यह पैसे के लफंगी गिरी पर लफंगों उद्योगपतियों का नियंत्रण है। इसलिए वह मजा कर रहे हैं और समाज संकट में जा रहा है। इसको बहुजनों से जोड़ते हुए मैं ऐसा कहता हूं कि बहुजन ही संपत्ति का निर्माण करता है। और इस संपत्ति का समाज में सही वितरण हो इसके लिए राज्य व्यवस्था होती है। फिर राज्यशाही हो या डेमोक्रेटिक हो या डिक्टेटरशिप हो। अगर वह समाज में निर्माण हुए संपत्ति का समाज में वितरण ठीक नहीं हो रहा है इसलिए बहुजन संकट में है। अब इस बात को जोड़ने की जरूरत है। अब मैं मोदी जी के इस पर आता हूं। क्योंकि मोदी जी हमें क्या कह रहे हैं? हमें हर समय नया गोल पोस्ट बता रहे हैं। मोदी जी ने अभी हमको 2037 की विकसित भारत का सपना बताना शुरू कर दिया है। अब इसको हम कैसा काउंटर करेंगे? उसमें बहुजन को क्या स्थान मिलने वाला है? इसका सवाल अभी से हम खड़ा करेंगे या नहीं करेंगे? क्योंकि विकसित देश की परिभाषा क्या है? तो मैं ऐसा जो समझ पाया हूं वो विकसित देश की परिभाषा यह है कि 30 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी जिस देश की होती है वो विकसित देश है। तो मैंने मोदी जी को चिट्ठी लिखा हूं। उसमें ये लिखा हूं कि 2047 में हमारे देश की अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर की होगी। यह सपना आप दिखा रहे हैं। पर आज ही अमेरिका की व्यवस्था यह 30 ट्रिलियन डॉलर की है। और अमेरिका में एक घंटे की मजदूरी यह 8 से $ है। तो क्या 2047 में हमारे देश में किसान हो, मजदूर हो, कारागीर हो उसको 8 से $ मजदूरी मिलेगी? ऐसी व्यवस्था बनेगी क्या? क्या इसके लिए अभी से काम करने की जरूरत नहीं है? क्या? धीरे-धीरे उस तरह से उनके मजदूरी में इजाफा उनके पास में पैसा जाए, ऐसी व्यवस्था करने की जरूरत नहीं है क्या? मैंने ऑफिस में देखा कि हम यह कह रहे हैं ना कि किसान कारीगर के घर में संगठित वर्ग की तरह एक पक्की आमदनी जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। तो फिर यह किस तरह से हम इस दिशा में इस सरकार को इस व्यवस्था को प्रश्न चिन्ह उपस्थित करके हमारे हक की लड़ाई हम लड़ सकेंगे और यह महत्व का इसलिए है कि जो मैं बार-बार वेतन आयोग की बात करता हूं तो आठवां वेतन आयोग 2026 में आने वाला है जिसमें चतुर्थ श्रेणी कामगार की तनख्वाह ₹45,000 महीने का अंदाजा व्यक्त किया जा रहा है। अब इसी तरह से 2036 में 10 साल के बाद में नौवा वेतन आयोग आएगा और उसमें भी उसकी तनख्वाह ₹1.5 लाख रुपए महीना होगी ढाई से तीन गुना बढ़ती है 10 साल में तो और 2046 में उसकी तनख्वाह 45 लाख रुपए होगी महीने की फिर से ढाई तीन गुना तो उस समय हम बहुजन कष्ट करके समाज के लिए देश के लिए संपत्ति निर्माण करने वाले हैं उनका क्या हक होगा? यह हम बहुजन समाज पंचायत के माध्यम से किस तरह आगे ले जाएंगे? नए पीढ़ी को किस तरह से इन नीतियों पर प्रभाव डालने के लिए खड़ा करेंगे। मेरे सामने यह सवाल है। आपके सबके चरणों में नमन नमस्कार धन्यवाद।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद। विजय जावंधिया जी. हम लोग उसी दिशा में पहुंच रहे थे। विजय जी ने उसको हमको बड़े आसानी से पहुंचा दिया। हम लोग बहुजन स्वराज पंचायत की ही दिशा में हम लोग बहुजन स्वराज पंचायत की दिशा में बढ़ रहे हैं। और विजय जी ने जो सवाल उठाया उसी के लिए हमें लगता है कि हमारे समाज में जो समाज के ऊपर बातचीत करने वाली समाज कैसा बनेगा। समाज में कैसा मूल्य कैसा मूल्य मिलेगा और किस तरह की जो है विनिमय प्रणाली होगी। किस तरह की आर्थिक संरचना होगी? किस तरह की समाज की संरचना होगी उस पे बातचीत करने वाले तत्व लगभग खत्म से होते जा रहे हैं। मतलब जो भी है कुछ लोग आंदोलन में लगे हैं। कुछ लोग जातिगत राजनीति से इस सत्ता के साथ बारगेनिंग कर रहे हैं। कुछ लोग यह कहते हैं कि कांग्रेस जाएगी तो भाजपा पहले हम हमारा जन्म तो हुआ कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ। हमने कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ हम लोग ने सामाजिक मतलब जीवन में हमारा शुरुआत हुई हमारी अब उसके बाद अब आज भाजपा आ गई है तब होता भाजपा जाए कांग्रेस आए कल फिर होगा कि कांग्रेस आए कोई और आए तो ये सत्ता परिवर्तन से बहुजन समाज का बहुत कुछ बदलने वाला नहीं है। कि ऐसी दिशा में जो विजय जी ने कहा कि मूल मुद्दा हमारे लिए बहुजन समाज के ज्ञान पे बहुजन समाज को अच्छा मूल्य मिले कैसे इस विषय पर अधिक से अधिक संवाद चल सके। इसके लिए हम लोगों को लगता है हम लोगों ने कल मिलकर के बातचीत आपस में की तो हम सभी साथियों को यह महसूस हो रहा था कि क्यों ना हम अभी चित्रा जी ने भी कहा उसी बात को कि हम लोग बहुजन स्वराज पंचायत को अधिक से अधिक किस रूप में संगठित हो अधिक से अधिक जगह हो जिसमें महिलाएं भी किसान भी कारीगर भी अपनी बात को कह सके अभी इस पूरे सत्र में थोड़ा उस दिन मतलब थोड़ी मुश्किल हो गई। उस दिन बारिश आ जाने से मुझे महिला मतलब मुद्दा पे भी बोलना था इस तरह विषय पे भी। मैं नहीं बोल पाई उस पे। लेकिन मुझे कहना है कि एक छोटे से बस बात से कहूंगी मैं कि जिस तरह से मोदी जी ने इलेक्शन आने के पहले अभी बिहार के महिलाओं के खाते में ₹10 10 ₹100 डाले। हम तो कहते हैं कि जो महिला है जो नौकरी में नहीं लगी है। घर में लगी है। गृहणी है वो नए समाज की रचना करती है। नया समाज बनाती है और एक बहुत मतलब चिंतक है, अर्थशास्त्री है और वो उसकी मतलब कि स्वास्थ्य कर्मी भी है, सेवा नर्स है, सब कुछ है। उसको यह समाज क्या देता है? कुछ भी नहीं देता है। तो मेरी मांग है इस व्यवस्था से की ₹1 ₹100 हर महीने देश के हर महिला के खाते में आने चाहिए। क्योंकि वो इतना बड़ा काम करती है। अगर बच्चे पालने का काम इस सरकार को करना हो तो कितनी सारी व्यवस्थाएं लगानी पड़ेंगी। तो इसलिए हमारी मांग है इस मंच से कि हमें ऐसी मांग उठानी चाहिए कि जो आम गृहणी है वो कैसे इस बहुजन समाज में अपने आप को देखती है। उसके विद्या को उसके गुण को कैसे देखा जाता है? क्योंकि अगर किसान चिंतक हो सकता है तो महिला भी जो आम महिला है जो घर में बैठी हुई महिला है वो भी चिंतक हो सकती है। वो भी मास्क के ऊपर बात करने वाली हो सकती है। वो भी बहुजन के नए समाज कैसा बनेगा उसका निर्माण उसको उसकी दृष्टा उसको देखने वाली हो सकती है। नई रचना करने वाली हो सकती है। कलाकार हो सकती है। बहुत कुछ हो सकती है। है भी है हो नहीं सकती है। है उनकी बस खोज करके हमको सामने लाना है और उन सारी महिलाओं की बात करनी है जो एक किसान महिला है कारीगर महिला है बुद्धिजीवी महिला है जो कि घर में है लेकिन फिर भी अपने बच्चों को ज्ञान दे रही है नए संस्कार गढ़ रही है उन सारी महिलाओं की बात करनी है हमें बहुजन पंचायत में तो हम चाहेंगे कि हमारे कुछ साथी आए जो कि बहुजन स्वराज पंचायत को कैसे हम आगे बढ़ाएं कैसे आगे इस पे काम किया जाए। इसके बारे में अपनी बातों को रखें। तो उसके लिए मैं पहले रामजनम जी से बोलती हूं कि रामजनम जी किसान संघर्ष से निकले हुए साथी हैं। उससे पहले से लगे हुए साथी हैं। किसान संघर्ष तो अभी रामजनम जी नहीं है क्या? है तो। हां। रामजनम जी आए। रामजनम जी का भी मतलब जेपी मूवमेंट से ही शुरुआत हुई है। उसके बाद इस किसान मूवमेंट में जो किसान आंदोलन हुए उसमें बनारस में आपने काफी काम किया है। रामजनम जी …
रामजनम:
थोड़ा इसको नीचे कर दीजिए। ठीक है।
अध्यक्ष मंडल साथियों ये दो दिन जो बहुत सारी बातें आई इस बहुजन स्वराज पंचायत में और मोटी मोटा जो हम विषय रखे थे बहुजन की पहल पर स्वराज निर्माण बातें उसी दिशा में हुई। लेकिन उन बातों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ और हमको सोचना पड़ेगा। कि इस बातचीत को इस बहस को जो बहुत सारी चीजें बहुत सारे विभिन्न तरह के साथियों ने इस बहुजन स्वराज पंचायत में रखा उसको अब आगे कैसे बढ़ाया जाए। तो मेरी समझ में जो बात आ रही है मैं आप लोगों के सामने रखना चाहता हूं। पहला काम कि जो लोग भी शामिल हुए हैं या जो लोग भी इस बहस को सकारात्मक उसमें देखते हैं उनके बीच से एक टीम बने। एक कोई छोटी समिति बने छोटी बड़ी जैसा भी आप लोग सोच लीजिए। निश्चित रूप से एक टीम बने जो इस बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाने के लिए कुछ सोचे कुछ करें। तो यहां जो लोग बैठे हैं उन लोगों से मैं कहना चाहता हूं कि एक तो एक टीम बने। दूसरा कि यह जो बहस है दो दिन की बहस आज तीसरा दिन है समाप्त होने के उस पे है। उस बहस को दूसरे अंचलों में कैसे ले जाया जाए। वो टीम कर सकती है। यहां जुटे हुए लोग कर सकते हैं। उसके बारे में भी सोचा जाए। क्योंकि जितनी बातचीत आज से आई है उससे इतना तो जरूर महसूस होता है किसी नए अंदाज नए तौर तरीके से बातों को सोचने का समय है। नए अंदाज का क्या मतलब? जो हमारी विरासत है उसी के बुनियाद पे हम नए अंदाज में सोचे। क्योंकि बहुत सारे लोग कहते हैं कि हमारी जो विरासत है या बहुजन समाज की जो विरासत है कई बार आया कि बहुजन समाज की विरासत बहुत मजबूत विरासत है। पूरे भारत भूभाग में या ऐसे कहें कि इस देश के किसान कारीगर महिला आदिवासियों की जो विरासत है इस देश की वो बहुत मजबूत है और उसका समय-समय पे चीजें सामने आती हैं। किसान आंदोलन क्या था? उसी विरासत की आवाज थी। तो हमारे सामने बहुत सारे उदाहरण हैं। हम उसको कैसे आगे ले जाएं? तो अभी ज्यादा चीज हम नहीं सोच पा रहे हैं। लेकिन एक चीज सोच रहे हैं कि यहां से कुछ नए लोगों की मतलब पुराने लोग हैं। पुराने लोग ज्यादा फिजिकली उस तरह से कुछ नहीं ज्यादा कर पाते हैं। तो नए लोग आए हम लोग नए लोगों से अनुरोध करें कि आप आइए आपके साथ मिलके हम लोग एक टीम बनाएं और इसको विभिन्न अंचलों में जैसे सारनाथ में तीन दिन बैठ के हमने चिंतन महान मंथन बातचीत किए। इसी तरह की बातचीत, इसी तरह की बहस किसी दूसरे अंचल में ले जाया जाए। किसी दूसरे प्रदेश में ले जाया जाए। किसी दूसरे जगह पर ले जाया जाए। तो उसके लिए एक टीम चाहिए। उस टीम का निर्माण हो आज की इस पंचायत में। दूसरा कि ये जो बहुत तरह के हमारे बीच में हैं। बहुत तरह के लोग हैं जिनको हम सम्मान करते हैं। जिनसे हम लोग सीखते हैं। उनकी एक क्या बोलेंगे उसको? कौन मंडल होगा? संरक्षक मंडल। हां संरक्षक मंडल। एक संरक्षक मंडल भी यहां से बनना चाहिए। जिनके निर्देशन में जिनकी अगुवाई भी हम कह सकते हैं वह अगुवाई करने के लिए तैयार है। मुझे लगता है कि 80 साल 82 साल 85 साल के लोग यदि इस तरह से सोच रहे हैं और अपने को कार्यकर्ता कहते हैं यदि इस देश का प्रोफेसर अपने को किसान आंदोलन का कार्यकर्ता कहता है तो अगवाई भी कर सकता है। तो उनका एक संरक्षक मंडल बने, एक टीम बने। फिर आगे भी कुछ सोचा जाए और भी साथी हैं। उनसे भी निवेदन करेंगे कि इस बातचीत को हम लोग कैसे आगे बढ़ाएं। अभी तो इतना ही. धन्यवाद!
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद, रामजनम जी। तो रामजनम जी ने जो कहा बात कि अगर अंचल में भी जो भी साथी हमारे बहुजन स्वराज पंचायत करना चाह रहे हो अगर लगता है कि निकट भविष्य में कर सकते हैं वैसे साथी भी यहां पर आए और शिक्षा से अपना नाम दें क्योंकि हम लोग सबको नहीं जान सकते कि मतलब कौन-कौन अभी साथी करना चाह रहे हैं। लेकिन अभी इसमें संजीव जी का है कि संजीव जी मालवा में काफी काम कर रहे हैं। तो हम चाहेंगे कि संजीव कीर्तने जी आए यहां पर अपनी बातों को रखें कि कैसे इस स्वराज बहुजन स्वराज पंचायत को आगे बढ़ाया जाए और अंचलों में कैसे इसके एक दिन दो दिन के जो भी कार्यक्रम है इसको कैसे हम लोग आयोजित कर सकें और भी साथी इसके बारे में सोचे कि इसको हम कैसे आगे बढ़ा सकते हैं जैसे अवधेश जी ने भी कहा था कि उनके इलाके में हम लोग शोध कार्यक्रम को आगे बढ़ा सकते हैं। तो ऐसे स्वराज पंचायत के कार्यक्रम को भी हम आगे बढ़ा सकते हैं कि कर सकते उसके बारे में भी जरा साथी सोचे और अपने बातों को रखें। यहां आइए संजीव जी …
संजीव दाजी:
नमस्कार। इंदौर से लगभग 70-80 किलोमीटर की दूरी पर एक अंचल है जो ये मान लें कि चौड़ाई में 100 किलोमीटर और ऐसा लंबाई में 100 किलोमीटर और चौड़ाई में 30-40 किलोमीटर का क्षेत्र है। पहाड़ों से है। नर्मदा जी है वहां बहती है। और ज्यादाकर वहां आदिवासी हैं। अब यह जो अंचल हैं इन अंचलों को जानने की कोशिश चल रही है। और इन अंचलों में जो लोकविद्याधर हैं वह लोकविद्याधरों को भी समझने की उनके रिश्तों को समझने की प्रक्रिया विगत दो-तीन वर्षों से चालू है। वैसे मैं वहां 10 15 वर्षों से जा रहा हूं। यहां भी आते हैं वो। इस अंचल को इस दृष्टिकोण से देखें यदि कि यह लोकविद्या जन आंदोलन की बात को कैसे आगे ले जा सकते हैं? क्या यह वास्तविकता में यह संभव है या यह उनको समझने के बाद ही समझ में आएगा। लेकिन यह चल रहा है। अब उसमें समझने में क्या-क्या तरीके से समझ रहा हूं, यह केवल मैं पेश कर सकता हूं। कि अंचलों के अंदर वहां पर छोटे-छोटे हट होते हैं और 12 किलोमीटर या 12 मील समझ ले उस क्षेत्र के लिए वह प्रभावित होता है। 12 मील के बाद दूसरा कुछ हाट लगता है। अब ये हाट जो होता है यह उसका एक इतिहास है। न जाने कितने दिनों से है वो। उन हाटों को जब मैंने बिल्कुल बारीकियों से देखा तो 12 मील के लोग उसमें शामिल होते हैं और उसमें लोकविद्याधरों के रिश्ते समझने के लिए मौके मिलते हैं। तो लोकविद्या धरो के जो हार्ट होते हैं उसको केंद्र बनाकर उसके 12 मील के क्षेत्रफल के लोगों के जीवन को समझना उनके रिश्तों को समझना और फिर यह क्या वास्तव में कुछ चाहते हैं क्या ऐसे बार 121 मील के अलग-अलग केंद्र मान ले हाथों को तो यह पूरा अंचल 121 मील के ऐसे हाटों में बांटकर मैं देख रहा हूं और एक हार्ट से दूसरे हार्ट का रिश्ता एक हार्ट से दूसरे हार्ट के लोगों के क्या संबंध कैसे बनते हैं यह भी समझ रहा हूं। तो क्या कर सकते हैं वहां? तो हटों को केंद्र मानकर कुछ लोकविद्या दर्शन के तरीकों से कुछ गढ़ा जाए जो उसमें विद्यमान है। इसकी समझ उन लोगों के साथ साझा की और उन्होंने कुछ गतिविधियों को अंजाम देना चालू किया। तो इसको हमने 12 बातों में विभाजित किया है कि कौन-कौन से ऐसे गतिविधियां हो सकती है जिसके माध्यम से सक्रियता से लोग उसमें शामिल हो और अपनी बात को अपने तरीके से गढ़ तो 12 चीजों में जैसे लोकविद्या का दर्शन प्रमुख है और वहां के लोग क्योंकि सत्संगी वहां पर उनका प्रभाव अच्छा है तो सत्य की बात करते हैं तो मुझे यह लगा कि सत्य जो होता है उसके इर्दगिर्द कुछ सोच सोचा जाए, कुछ करा जाए, उनसे साझा किया जाए। बहुत उत्साह से वह भाग लेते हैं। अपने तरीकों से बताते हैं कि सत्य क्या होता है। तो हमने सोचा कि चलो हट को ही सत का स्थान मान लेते हैं और उस हट को ही सत्य के प्रयोगों का स्थान मान लेते हैं। तो लोकविद्याधरो ने वहां पर सत्संग करना प्रारंभ किया। हाटों के अंदर और सत्य क्या होता है? वह बोलना चालू किया सत्संग के माध्यम से। इसके इर्दगिर्द ये जब हाटों में सत्संग होने लगते हैं तो हटों के जो छोटे-छोटे आसपास के लोग आते हैं, वह शामिल होते हैं, नाचते हैं। उसमें कुछ खुद ही सत्संग भी पेश करने लग जाते हैं। तो एक उनका स्वाभाविक मिलनजुलन होते रहता है। तो मुझे लगता है कि सत्संग के माध्यम से वो बातें बहुत आसानी से समझने लगते हैं। अपनी बात को कहने भी लगते हैं। और सत के इर्दगिर्द ही वो पूरा मामला चलता है। अब यह जो मैंने बताया हार्ट हैं उनको एक दूसरे से जोड़ने की बात है कि क्या एक हार्ट के इर्दगिर्द के लोग दूसरे हार्ट के इर्दगिर्द के लोगों से किस प्रकार से मेलजोल रखते हैं क्या होता है उनके अंदर तो फिर हमने एक लोकविद्या समन्वय समूह वहां बनाने की कोशिश की कि एक ऐसा उस अंचल का लोकविद्या समन्वय का काम करने वाला समूह बने जिसमें अलग-अलग अंचल अंचल के ही अलग-अलग गांव के लोग शामिल हो और उनके सामने एक उद्देश्य हो कि हमको इस अंचल के लोगों को जोड़ना है हाटों के माध्यम से। तो हाटों के माध्यम से वो लोकविद्या समन्वय समूह जोड़ने की कोशिश में कुछ प्रयोग करते रहता है। उसका उल्लेख में जब किसी को इसमें रुचि होगी तो बता सकता हूं। दूसरी बात कि अंचलों के अंदर क्योंकि कला की बहुत मान्यता है। कला को बहुत आदर से देखते हैं वो। चाहे वो लोक नृत्य हो या उनके उत्सव हो या जो भी हो तो उस क्षेत्र में एक लोकविद्या कला केंद्र का स्थान बनाया जाए। तो यह सत्संगी क्योंकि साथ में थे तो इन्होंने दो-तीन जगहों पर ऐसे पांच खंभों की झोपड़ी बना के एक ऐसे केंद्रों की स्थापना की है। इंदौर में हमने अपना एक लोकविद्या कला केंद्र लोकविद्या का अलग से खोला है। इंदौर में हमने लोकविद्या समन्वय समूह भी बनाया है। लेकिन अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग स्थानों पर लोकविद्या समन्वय समूह बन सकता है। इसका विश्वास बढ़ते जा रहा है। और लोकविद्या कला केंद्र क्या कर सकते हैं? कितने व्यापक तरीके से उसमें लोगों से संवाद हो सकता है? यह भी समझ में आ रहा है। तो शहर के लोग और गांव के लोग जोड़ना यह इंदौर का लोकविद्या कला केंद्र और लोकविद्या समन्वय समूह कर रहा है। लेकिन गांव के अंदर जब लोकविद्या कला केंद्र खुलते हैं या गांव के अंदर लोकविद्या समन्वय समूह जब बनते हैं तो फिर इन हाटों के माध्यम से क्योंकि एक हट में आने वाले व्यक्ति मतलब जो सामान लेकर आते हैं वो वही दूसरे हार्ट में जाते हैं और दूसरे जुड़ जाते हैं उनके साथ। तो एक हार्ट में जो भी गतिविधि होती है उसका प्रचार स्वाभाविक तरीके से दूसरे हार्ट में होता है और जब दूसरे हार्ट में कोई कार्यक्रम लेते हैं तो पहले हार्ट में आए हुए लोगों का अनुभव उसके साथ जुड़ता है और उसमें सहयोग मिलते जाता है तो ये प्रक्रिया बहुत तेजी से बढ़ती है और बहुत तरीके से सुदृढ़ होते जाती है। तीसरी बात वहां पर किसी चीज का कोई माध्यम बनाने की जरूरत महसूस नहीं होती है कि हमें कोई शहीद भगत सिंह का नाम लेना है। हमें संविधान का नाम लेना है। हमें अंबेड़कर जी का नाम लेना है। हमें किसान आंदोलन का नाम लेना है। हमें यह कोट करना है कि हम क्या है? हम क्या नहीं है। हमें यह कोट करना है कि अंग्रेज आए थे। यह हुआ था। हमें यह कोट करना है कि हिंदू बहुत बढ़िया है। हमें यह कोट करना है कि मुस्लिम बहुत खराब है। कुछ किसी भी बात की पूर्वाग्रह से कोई बात करने की जरूरत हाट में नहीं लगती। हाट में आप क्या हो यह भी पहचानने की जरूरत नहीं लगती। मैं कौन हूं? इससे भी कोई लेनदेन नहीं है। हाट एक सामान्य जीवन का सामान्य स्थल है। जहां पर वहां के सब ज्ञानी अपने ज्ञान से उत्पादित वस्तुओं को लाते हैं। साझा करते हैं। लोगों के रिश्ते वहां बनते हैं। शादियां तय होती है। उत्सव होते हैं वहीं पर और अनेक बातें वही होती है। किसी राजनीति को भी वहां आना हो तो हटों का कभी-कभी वो माध्यम बना लेते हैं। लेकिन अभी भी हट लोकविद्या के जीवंत स्थान है। ऐसा समझ बनी है मेरी। और यह हाटों के माध्यम से अनेक बातें हो सकती है। ऐसा मुझे लग रहा है। तो उसमें से कुछ बातें जो मैं हाटों के अंचलों में कर रहा हूं। वो मैं साझा करता हूं ताकि आप में से कोई उसमें रुचि रखता हो तो जरूर वहां आए। एक कि भाई वहां सतत सत्संग चलते हैं। बिना रोकटोक के आज जो सत्संग पेश हुए हैं वह सत्संग वहां भी नए बोलों के साथ नए तरीके से नए ढालकर वो पेश करने लग गए हैं। तो स्वाभाविक रूप से जो भी सत्संग करते हैं वह एक से दूसरी जगह जाते हैं और सत्संग केवल सत्संग ही उसका व्याख्या भी होती है। तो उसको वो जोड़ लेते हैं। जैसे यहां कबीर को जोड़कर उन्होंने करा तो मैं तो कहूंगा कि कबीर का भी नाम ना लिया जाए। मैं तो कहूंगा किसी का नाम ना लिया जाए और आप में इतने नए रचना की शक्ति होना चाहिए कि वो लोगों के दिलों तक छू जाए। अगर यह मौलिक रचनाएं होना प्रारंभ होगी तो न तो किसी भाषण की जरूरत है ना किसी चीज की। आपके जो आयोजन होते हैं वही रचनात्मक अपने आप वो लोग करने लगते हैं। ऐसा मेरा अनुभव आया है। यानी एक अनुभव मैं आपको साझा करता हूं कि जैसे ज्यादा से ज्यादा लोग ऐसे हैं कि जो अपनी बात को कहने में बहुत उत्सुक हैं। नई टेक्नोलॉजीस को भी वो देख रहे हैं मोबाइल के माध्यम से। अब मोबाइल के माध्यम से हमने शॉर्ट फिल्म्स बनाना चालू किया और वो शॉर्ट फिल्म्स है उसकी शूटिंग भी वो करेंगे। उसमें डायलॉग्स वो लिखेंगे। उनके सब्जेक्ट रहेंगे। एक्टिंग वो करेंगे। छोटी-छोटी फिल्मों को बनाएं। वो छोटी-छोटी फिल्मों से उनको यह विश्वास होता है कि कम से कम वो फिल्मों में तो हमारी बात को कह पा रहे हैं। उनकी बात को कोई सुनने के लिए शहर का आदमी नहीं रहता। वो फिल्म बनाते हैं और जब वो खुद ही फिल्म देखते हैं वही वो समाप्त हो जाती है। उसको YouTube पर डालने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन बाकी लोगों को भी यह लगे कि यहां हो रहा है इसलिए वो YouTube पर डाल रहा है। प्रचार प्रसार के लिए नहीं छोटी फिल्म बनाने का महत्व केवल इतना ही है कि आपने कुछ बोला और आप वहां देख रहे हो। एक स्क्रीन के ऊपर आप कैसे दिखते हो, जस्ट एक दो मिनट में खत्म कर देता हूं। तो यह यह एक मतलब गतिविधि जो है एक लोकविद्या ज्ञान यात्राओं का वहां पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। हमने वहां पर लोकविद्याएं जब अपनी यात्राएं चालू होती है तो तरह-तरह के लोग उसमें अपने आप शामिल होते हैं क्योंकि उसमें सत्संग हो रहा है। मजा ले रहे हैं। लोग नाच रहे हैं, गा रहे हैं तो एक सत्संग माध्यम है। अब इन सब चीजों के लिए एक प्रोग्राम हमने बनाया है कि पारोदरिया का कला जगत से संवाद पारोदरिया यानि लोक विद्याधर समाज की स्त्री और पुरुष उनका रिश्ता कुछ भी हो। वो पारो दरिया लोग अपनी बातों को अपनी भाषा में कलाकारों के बीच में रखते हैं और कहते हैं कि आप इन बातों को कला के माध्यम से प्रदर्शित करिए। आप जैसा देखते हैं वैसा देखें और उसको प्रदर्शित करें। तो लोकविद्या धरा को धरों का शहर और गांव के कलाकारों से संवाद होता है। अब इन सब बातों के लिए मैं जो यहां पर विद्या आश्रम के लिए बात कहना चाह रहा हूं कि विद्या आश्रम यह व्यवस्था कर सकता है कि वहां ऐसे लोगों को स्कॉलरशिप प्रदान करें। बहुत ज्यादा की जरूरत नहीं है। वहां पर एक छोटी स्क्रीन, एक लैपटॉप और एक प्रोजेक्टर आ जाए जो कि हार्डली 15 2000 के अंदर यह सब पूरा बजट में बता रहा हूं। ऐसी एक व्यवस्था ऐसी समूह निर्माण किया जाए कि जो उन लोगों की बातों का प्रदर्शन वहीं पर करें। उनको शहर में लाकर कुछ इसको प्रस्ता बहुत ज्यादा बढ़ाने की जरूरत नहीं है। इतनी बात मैं कहता हूं और इस बात के साथ में अपनी बात को समाप्त करता हूं कि बहुत मजा आता है। मतलब कोई गतिविधि करने में जब आनंद आता है शामिल हुए लोगों को और करने वाले लोगों का तो ही वो सृजन होता है। धन्यवाद!
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद संजीव जी। मुख्यत विषय पर ही हम लोग रहे कि बहुजन स्वराज पंचायत को आगे कैसे और बढ़ा सकते हैं। हां हां लक्ष्मीचंद दुबे जी अपनी बात को रखेंगे।
लक्ष्मीचंद दुबे:
इस सभा के सभापति महोदय उपस्थित साथी एवं बहने मैं ज्यादा कुछ कहने नहीं आया हूं। केवल इतना कहना चाहता हूं कि जिस संदर्भ में यह पंचायत जो है बहुजन स्वराज पंचायत जो है कार्यक्रम में हम सब आए हैं। मेरा एक ही निवेदन है कि हम उस जिले से आते हैं जहां पे सिंगरौली जिला है और उसी के नाम से सिंगरौली एक तहसील भी है। जहां पे बहुत बड़े-बड़े कारखाने हैं। लग रहे हैं। मजदूर जो है मजदूर और मजदूर हो रहा है और पूंजीपति नित्यांत वो जो है पूंजीपति बढ़ता चला जा रहा है। कहने का तात्पर्य कि हमारे सिंग्रोली जिले में नौ कोयला खदाने हैं। तीन थर्मल पावर हाउस है। अभी और लगने वाले भी हैं। वहां पे संघर्ष चल रहा है। संघर्ष के साथ हमारे जो जनप्रतिनिधि हैं उन जनप्रतिनिधियों को भी यह नहीं समझ आ रहा है कि जो मजदूर लोग हैं वो दिन प्रतिदिन मजदूर बनते जा रहे हैं और वो पूंजीपतियों के साठगांठ में बढ़ते हुए चले जा रहे हैं। केवल इतना हमको कहना है कि आदरणीय हमारे जो साथी अवधेश जी ने कहा मैं उसका समर्थन करता हूं। दूसरी बात माननीय संचालिका महोदय ने कहा कि द हजार जो रुपए बिहार में मिल रहा है तो हम तो यह कहते हैं कि पूरे देश में ये मिले। मोदी जी यह पूरे देश में लागू करें तब तो हम जानेंगे कि वास्तव में महिलाओं के प्रति वह सजग हैं। ज्यादा न कुछ कहते हुए केवल इतने ही हम निवेदन करते हैं कि पंचायत जो है हमारे जिले में भागीदारी करें और हम सबको जो है सने और कंधे से कंधा मिलाकर के जो किसान मजदूर जो किसान थे वह मजदूर हो रहे हैं उनकी भी रखवाली करें। ज्यादा ना कहते हुए हम केवल इतने कहते हैं कि पुनः से आप सब का जो हमको दो मिनट का समय दिया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। जय हिंद जय भारत।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरी भी बात यही थी कि देश की हर महिला को हर महीने मिलना चाहिए। और आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। ताली बजाइए कि आपने अपने यहां एक सम्मेलन बहुजन स्वराज सब पंचायत की बात कही है कि एक इन आपके इलाके में लक्ष्मी चंद दुबे जी के इलाके में बहुजन स्वराज पंचायत आयोजित की जाएगी। अभी राम किशोर जी आ रहे हैं।
राम किशोर:
बहुत-बहुत धन्यवाद! मंच बहुजन स्वराज पंचायत को आगे बढ़ाते हुए इसको हम लोग कैसे जो विस्तार रूप देना है। कैसे अन्य अंचलों में इसको हम लोग एक अच्छा मुहूर्त रूप देकर के इस विद्या आश्रम के प्रति लोगों का भाव समर्पित हो इसको बढ़ाते हुए मैं दो चार कुछ सुझाव दूंगा कि हमें लगता है कि बहुजन स्वराज पंचायत को बढ़ाने के लिए जितने समाज में जन्मे संत गुरुओं महात्माओं दार्शनिक कुछ लोगों का विचार हम इसमें समाहित करने की जरूरत है। जैसे कबीर हुए, रैदास हुए, सूरदास हुए जो सगुर भक्ति सखा चाहे राम भक्ति सखा हो जिसे यहां लोक विद्या चलता है उस कुछ पदों को उसमें भी समाहित करने की जरूरत है। क्योंकि बिना उनके जो पद है जो उस समय की जो पद में आज जो भाव चल रहा है उसको इसमें लाने की जरूरत है। जैसे हम भारतीय संविधान के मूलों को नकारा नहीं जा सकता है। भारतीय संविधान के प्रस्तावना में सारे चीज समानता, बंधुता, न्याय एकता पर आधारित अपना जो अपना लिखित बड़ा संविधान है। उसको हम उसमें समाहित हो करके भारतीय संविधान के मूलों को और इस बहुजन को एक साथ लेकर चलेंगे तो हमें लगता है कि बहुजन समाज को हम लोग बनाने में अच्छा मजबूती प्रदान होगा। दार्शनिक सुकरात को भी देखेंगे तो बहुत अच्छा विचार दिए क्योंकि हम जो बहुजन की बात है बहुजन ही की बात करेंगे जो जैसे समाज में [संगीत] जाति तोड़ों और समाज जोड़ों की बात हम करने की प्रयास करेंगे। जात मजहब की बात नहीं करेंगे। क्योंकि एक समाजशास्त्री अरस्तु ने भी कहा था मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। बिना समाज का बहुजन नहीं बन सकता है। अरस्तु की एक और मैं बात बताना चाहता हूं। मनुष्य सामाजिक संबंधों का जाल है। मनुष्य सामाजिक संबंधों का जाल है। क्योंकि मनुष्य इस पृथ्वी पर सबसे श्रेष्ठ प्राणी है। इसलिए समाज जो मनुष्य है मनुष्य ही बनाता है समाज को। इसके साथ अपनी बात को विराम दूंगा क्योंकि मैं दो ही मिनट के लिए मैं आया था। धन्यवाद। इस बहुजन समाज को आगे बढ़ाने बढ़ाने के लिए मैं चाहूंगा कि जितने लोग हैं हमारा सहयोग अपने जनपद देवरिया में उधर पूर्वांचल के जो भी आयोजन करेंगे बहुजन समाज पंचायत की बताइए और जो भी यहां से हम तीन दिन के बाद सीख करके जाएंगे और हम लोग के बीच में रामजनम जी हैं उनके सहयोग से हम लोग चाहेंगे कि देवरिया में इस विद्या आश्रम के माध्यम से देवरिया में एक बहुजन स्वराज पंचायत का आयोजन करने का हम हम लोग एकदम निर्णय लेंगे। उसके लिए हम लोग डेट ऑफिस कर लेंगे बैठ के। इसलिए कोई दिक्कत नहीं है। हमारे बहुजन के लोग बहुत साथी लोग हैं जो जो बहुजन के लोग हैं जो किसी भी अपने काम धंधे में लगे हैं। छोटे-छोटे अपने काम कारीगर हैं। उसको सबको समाहित करते हुए वहां के एक बहुत बहद रूप दिया जाएगा। और बहुजन स्वराज पंचायत को बढ़ाने के लिए हम लोग काम करेंगे। इसी के साथ अपनी बात को विराम देता हूं। जय हिंद जय भारत।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद रामकिशोर जी। आपने कहा कि आप देवरिया में बहुजन स्वराज पंचायत का आयोजन करेंगे। यहां पर जो भजन गाते हैं उसमें कबीर के ही भजन गाते हैं रामकिशोर जी, लेकिन अभी हमने सूरदासों को नहीं शामिल किया है। बाकी साथियों उनको शामिल करना है उसमें। हां आप … हां हां बिल्कुल बिल्कुल आइए
अवधेश:
असल में मैंने जो बात रखी थी वो इस लिहाज से बहुत संक्षेप में संक्षेप रखी थी कि यहां पे सब लोग वो काम ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उसमें डूबे हुए हैं। पूरी जिंदगी उन्होंने खपाई है। तो उसका बहुत विस्तार से बोलने की जरूरत नहीं है। वह सब संकेत से ही समझ लेते हैं कैसा है। हम लोगों का शुरू से ही जब यह विकास के नारे बड़े-बड़े हमारे राजनीतिक लगाते थे कि हमें विकास चाहिए तो आज विकास का एक लंबा समय गुजर चुका और उसका हस्र हम लोगों ने देखा सिंगरौली इसका एक बहुत उदाहरण बड़ा मानते हैं क्योंकि मैं सिंगरौली का नहीं हूं। बाहर से आया था लेकिन मुझे आए हुए भी करीब 35-40 साल हो गया तो जब चित्रा जी ने शोध के विषय की बात कही तो मुझे ऐसा लगा कि इस बीच में बहुत लोग आ रहे हैं जा रहे हैं वो क्या कह रहे हैं किस तरह की शोध कर रहे हैं कहां छाप रहे हैं किस तरह वो कर रहे हैं उससे हम लोग बहुत उभर चुके हैं तो यह चाहते हैं कि लोकविद्या आंदोलन का सिरौल से एक गहन रिश्ता रहा है। अभी से नहीं बहुत पहले से रहा है। तो इसको जो उन्होंने धरती कहा तो धरती से तो सब जुड़ा हुआ है। वहां पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। तो होता क्या है? तो अच्छा इसका एक संदेश जाएगा कि भाई जो राजनीतिक लोग हैं, सामाजिक लोग हैं या अन्य विधाओं से जुड़े लोग हैं वो देखें तो कि यह जो विकास की मांग करते करते हम कहां पहुंच गए हैं। इसका एक उदाहरण है सिंगरौली हम कह सकते हैं कि आज यह दशा पहुंच गई है कि बड़ा हिस्सा उनका दवाई में चला जाता है। पानी ऐसा पीते हैं कि आंख से ऊपर की भ खत्म है। पारा उनके पूरे शरीर में घुस चुका है। बाल आते नहीं है। आधा-आधा किलो के बच्चे हो रहे हैं। पूरी जुग्गी झोपड़ियां जिनको हम लोग ये सब बोलते हैं और वो भी यही मांग करते हैं कि सरकार कब हमारी जमीन ले ले। कब हम घर में ट्रैक्टर लाएं, कब मोटरसाइकिल लाएं, कब कार लाएं, पूरा और जबकि विस्थापन का एक लंबा दौर मैंने खुद अपनी आंख से देखा पर उससे कोई सबक नहीं सीख रहे हैं। जिंदगी में तनाव ही तनाव भरा पड़ा हुआ है। तो यह जो विचार है, यह कार्यक्रम है, यह हमको तनाव से मुक्त करने की दिशा में अगर नहीं वह करता है, तो कम से कम सोचने को मजबूर करता है। इसलिए यह शोध की अगुवाई के लिए मैंने चित्रा जी को उनकी टीम को आमंत्रित किया। और जो दुबे जी ने अभी बात कही सम्मेलन की बहुत अच्छा है। दुबे जी भले बहुत संचित बोले लेकिन वो खुद उनके लड़के लोग भी इसी तरह के कामों में लगे हुए हैं। सिंगरौली के वह बड़े पत्रकार हैं। उनका भी हमेशा इसी सब बातों में सहयोग रहा है। एक हमारे बैठे हुए हैं। साथी जरा तुमने तो कुछ कहा नहीं। आके कम से कम यही एक वाक्य बोल दो कि मैं समर्थन करता हूं। आ जाऊं। अरे अरे तो यह सब पहली बार जो लोग आते हैं हम भी जानते हैं कि जब इनकी अवस्था में हम भी रहे होंगे तो कांपने लगे होंगे। तो कम से कम अब उन सब स्थिति से उभर चुके हैं। हमेशा ये 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती में एक बढ़न में बहुत बड़ा कार्यक्रम करते हैं। तो कम से कम मेरी बात का तो समर्थन कर दूं। बोलिए नाम
न:
सबसे पहले जितने सभी बैठे हैं सभी को मेरा नमस्कार मैं जिला सिंगरोली से हूं और ये मेरे दादा जी के बराबर हैं और इनके यहां मैं हम लोग आते रहते हैं सृजन लोक हित समिति जो है इनके यहां उन इन्हीं के यहां से हम लोग सीखे आते जाते हैं देखते रहते हैं फिर उस तरह का कभी मौका नहीं मिला आज यहां आने का पहली पहली बार मौका मिला है इस धरती पे और बहुत अच्छा लगा सभी को देख के बातें सुनकर के और हम लोग भी चाहते हैं कि मैं यहां देखा कि इसमें नए युवक लोग थोड़ा कम लोग हैं तो नवयुवक लोग को इस तरह की चीजों को बढ़ाएं और नवयुवक लोगों की तो ज्यादा भागीदारी होनी चाहिए। नौकरी तो ठीक है। नौकरी लोग करते हैं जीवन जीने के लिए। वह बात ठीक है। पर नवयुवक लोग को ज्यादा इसमें भागीदारी हो। तभी हम इनसे सीखे हुए काम को आगे ले जा सकते हैं। और सिंगरौली में भी हमारे यहां के जो बताएं कि किया जाए यहां के माध्यम से। स्वागत है आए और एक बात मैं जी आपका नाम? जी। पारमिता जी जो कही मैडम कि देश में सभी महिलाओं को जो मोदी जी अभी कर रहे किए हैं कि महिलाओं को ₹1 ₹100 मिलना चाहिए। देश में तो सबसे ज्यादा काम तो महिलाएं करती हैं। तो महिलाओं का सम्मान करते हुए उनको पूरे देश में लागू ये चीज किया जाए कि सभी को 10,000 मिले और सिंगरौली हमें हमारे कार्यक्रम यहां के माध्यम से हो। उसमें हम लोग सब लोग भागीदारी रहेंगे। इसी बात को कहते हुए मैं अपनी बातों को खत्म करता हूं। नमस्ते।
अवधेश:
बस मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। बस इतना ही कहूंगा कि जो देख रहे हैं परसों भी देखा कल भी देखा कि राजनीतिक लोग हैं जिसकी वो बात कर रहे थे। हम भी उसी धारा से आए हैं सोशलिस्ट से। तो लेकिन वह करते क्या हैं? आप यह भी तो सोचें कि जिस तरीके की विकास की वह बात करते हैं, जिस तरीके का राजनीति करते हैं, उसमें जीवन हमेशा एक उथल-पुथल में रहेगा। कहीं आपको चैन नहीं रहेगी। कहीं कुछ नहीं रहेगा। आप कितने सालों से मुआवजा ले रहे हैं। पुनर्वास की बात कर रहे हैं। रोजगार की बात कर रहे हैं। क्या उससे हुआ? कुछ नहीं हुआ। यहां तक कि अभी कल वो बोल रही थी क्या नाम है एकता। एकता ने जो देखा वो पांच छ साल पहले देखा होगा। आज देखे तो बदल गया। आज वो बैगा बैगा नहीं रहा। वो हमारे जैसे ही हो गया। उतना ही चतुर उतना ही चालाक उतना ही धूर्त उतना ही सब कुछ। उस बैगा के बारे में क्या-क्या किताबें लिखी गई डिलीवरी का बैगा। हम तो बैगा हमारे आसपास ही भरे पड़े हैं। तो कहने का आशय मेरा यही है कि स्थितियां बदल रही हैं। हमें कहां जिंदगी तनाव मुक्त मिल सकती है वो विचार को बढ़ाया जाए। धन्यवाद।
पारमिता:
साथी ज्यादातर बोले कि बहुजन स्वराज पंचायत को कैसे आगे बढ़ाया जाए। इस पे और भी साथी आमंत्रित हैं। जो साथी बोल सकते हैं वो आएं यहां पे अपनी बात को रखें। अक्षय उड़ीसा से हैं। अपनी बात रखेंगे।
अक्षय जी:
धन्यवाद जी। मुझे … सुनील जी हैं। सब लोग को प्रणाम। मुझे दो ही बात करके खत्म करना है। दो ही प्रस्ताव रख के सही में जो बहुजन स्वराज का जो समाज है उसको तोड़ा है किस जिस ढंग से तोड़े हैं जिस ढंग से इस व्यवस्था में एक रणनीति का तरफ तोड़ा जा रहा है। उसमें बहुत बड़ा अगर देखें योगदान जो है तुलने में वो कर्जा लेकर कर्जा देकर तोड़ा जा रहा है। चाहे वो कर्जा माइक्रो फाइनेंस का कर्जा हो चाहे कर्जा बैंक का हो नेशनलाइज बैंक का हो चाहे कर्जा वर्ल्ड बैंक का हो आईएम का हो। पहली बात है अगर हम हम क्या जो पिटिकल राजनीतिक चेतना को डेवलप करना चाह रहे हैं लाना चाह रहे हैं जो राजनीतिक चेतना वो लाना चाह रहे हैं वो चाह रहे हैं रूम कृतम विवे हम जो लाना चाह रहे हैं सब के आधार पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए कर्जा नहीं करेंगे ना सरकार करेगा ना हम करेंगे। मुझे लग रहा है अगर इसी वन पॉइंट प्रोग्राम को कई प्रोग्राम है। मैं उसमें वन पॉइंट प्रोग्राम नहीं बोल रहा हूं। बहुजन स्वराज का अगर समाज को निर्माण करना है। बहुजन समाज का जो स्वराज को लेकर हम चल रहे हैं। वो समाज आज भी खड़ा है। उसको तोड़ रहे हैं। जो लोग जो स्ट्रक्चर जो रणनीति तोड़ रहा है उसको काउंटर करने का जरूरत है। और वो जो तोड़ रहे हैं उसमें कल भी बोला था जो ग्लोबल फाइनेंस कैपिटल है वैश्व वित्तीय पूंजी तोड़ रहा है। अगर बचाना चाहते हैं उस स्वराज को उस बहुजन समाज को स्थापित करना चाहते हैं तभी कर्जा को लेकर अगर एक कुछ नहीं सिर्फ प्रबोधन का चाहे कला के माध्यम से हो चाहे सेमिनार के माध्यम से हो मीटिंग के माध्यम से हो किसी भी माध्यम से अगर हम लोग तक लोगों तक ये चीज को पहुंचा दे वह बहुत बड़ा बहुजन समाज को उसका स्वराज समाज का जो विचारधारा है उसको स्थापित करने के साथसाथ हम उस आम आदमी तक पहुंचेंगे। इस तरफ सरकार का रणनीति को चुनौती दे पाएंगे। उस तरफ जो ग्लोबल फाइनेंस कैपिटल को लेकर कॉर्पोरेट सेक्टर हबी है उसको चुनौती दे पाएंगे और समाज को स्थापित करने के लिए एक सही जो समाज का रणनीति है उसको लेकर हम स्वराज को स्थापित कर पाएंगे। अगर हम उसको चुनौती देते हैं। इसलिए मेरा बस इतना ही कहना है। कर्जा को कर्जा नहीं लेंगे। बिना कर्जा में विकास होगा और बिना कर्जा में विकास होगी वो जो बात है उसको लेकर अगर रणनीति बनाया जाए प्रबोधन का रणनीति बनाया जाए और पूरा देश भर में जो बहुजन समाज अगर इस बात को लेकर कुछ रणनीति बना है तभी मैं उसके लिए मेरा समय मेरा जो भी है वो देने के तैयार हूं उसका साथ बात खत्म करता हूं. धन्यवाद!
पारमिता:
धन्यवाद, अक्षय जी. अब हमारे बीच में विनोद जी आ रहे हैं। विनोद जी लोकविद्या आंदोलन से इस विचार से 94 …1994-95 से जुड़े हुए हैं।
विनोद:
मैं बहुत दिनों से इधर बीच इस आंदोलन से नहीं जुड़ा हूं। लेकिन आज जो बात हो रही है उस पे एक एक दो बातें मुझे कहनी है कि हमारा जो लोकविद्या जन आंदोलन आज 10,000 की बात क्यों हो रही है? आज तो यहां पर पक्की आय की बात होनी चाहिए। 10,000 से क्या होने वाला है? इस महिला बहनों का क्या बनना बिगड़ना है उससे? हमें तो इस मंच से महिला बहनों के लिए पक्की आय की बात करनी चाहिए जिससे उनके परिवार का खर्चा चल सके। 10,000 से हमारा क्या बनना बिगड़ना है? और लोक जन आंदोलन आज 15 साल से यह कह रहा है कि उन परिवार को पक्की आय सरकारी कर्मचारी के बराबर की पक्की आय मिलनी चाहिए। आज इस मन से हमें वो बात लग रहा था छूट रही थी इसलिए इसको मैं दोहराना चाह रहा था याद दिलाना चाह रहा था कि हमें उसकी भी बात करनी चाहिए दूसरा आजकल मैं थोड़ी व्यवस्थाओं में था लेकिन आजकल मैं थोड़ी फुर्सत में हूं और खेती और खेती के साथ-साथ क्योंकि किसान का बेटा हूं तो खेती एक इस समय मेरे आय का साधन है उसके साथ-साथ बारीकी भी कल्पना जो लोकविद्या जन आंदोलन से मैंने कुछ सीखा है उससे बारी की भी एक संकल्पना बनाने की कोशिश कर रहा हूं और एक प्रयास है कि मैं खेती के साथ बारी भी बना सकूं। कुछ तमाम थोड़े-थोड़े किसानों से मैंने इधर-बीच बात की है क्योंकि बहुजन स्वराज को लेकर के बात हो रही है। पंचायत की बात हो रही है। तो मैं अपने क्षेत्र में बहुत जल्द ही एक ऐसी पंचायत कम से कम 50 लोगों के बीच में एक इस पंचायत को ऑर्गेनाइज करने का भैया कह रहे थे। एक मेरा उसमें शब्दों में पर्याय में थोड़ी घबड़ बहुजन जो शब्द है इस पे कहीं कुछ मुझे खटक रहा है तो उसमें अगर कोई और पर्याय शब्द जुड़ जाए मैं आग्रह है मेरा मैं मैं ऐसे नहीं कह रहा हूं मैं आग्रह से कह रहा हूं कि शायद इस शब्दों में कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ मुझे इन तीन दिनों में कुछ लगी है खटास लगी है मुझे तो अगर शायद मैं तैयार हूं मैं एक बढ़िया पंचायत कम से कम 50 किसानों के साथ एक पंचायत करना भी बहुत दिनों से वह कटा भी हूं। इसलिए मैं सोच रहा हूं कि फिर से मैं उस प्रक्रिया को कर सकूं और मेरा आग्रह है और मैं जल्द एक हफ्ते के अंदर मैं आपको बता दूंगा वो डेट कि वो डेट कब है वो पंचायत होगी हमारे यहां। धन्यवाद।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद, विनोद जी। थोड़ी सी समस्या यह है कि बहुजन शब्द अभी तक समाज में जो दलित वर्ग है उसके लिए इस्तेमाल होता था। तो जो किसान थोड़े ऊंची जाति के हैं उनको बहुजन कहलाने में थोड़ा शर्म महसूस होता है कि हम बहुजन कैसे हो सकते हैं। जबकि आज की व्यवस्था के हिसाब से देखिए जो ये ज्ञान है वो ज्ञान में पूरा किसान चाहे वो बड़ा हो पंजाब का बड़ा किसान हो चाहे उत्तर प्रदेश का छोटा किसान है सब बहुजन है। कहीं कोई भी मतलब वो जो बड़े अभिजन है उनके सामने हमारी कोई औकात नहीं है। इसलिए हमको लगता है कि जब तक हम बहुजन बनके काम नहीं करेंगे हम समझेंगे नहीं तब तक हमारी लड़ाई बड़ी नहीं बन पाएगी जो है अब मैं कुछ बोलो मेरे साथी हैं बीच में बुनकर समाज के साथी हैं फ़ज़लुर्रहमान जी कहां हैं हां अब फ़ज़लुर्रहमान जी अब अपनी बातों को बहुत कम समय में रखें और मुद्दे पे ही रखें विषय विषय पर ही कि कैसे और विनोद जी का बहुत-बहुत स्वागत है कि उन्होंने कहा है कि अपने इलाके में हुई एक सम्मेलन एक पंचायत आयोजित करेंगे।
फ़ज़लुर्रहमान अंसारी:
शुक्रिया, पारमिता जी। आज बहुजन स्वराज पंचायत आगे कैसे चले इस पे हम लोगों को कुछ विचार रखना है कैसे चलाया जाए पिछले काफी समय से विद्या आश्रम के साथ जुड़ के मैं लोकविद्या जन आंदोलन लोकविद्या सत्य संघ और तमाम चीजों में मैं सक्रिय रहा हूं। मैं खुद लोकविद्या का जानने वाले समाज से ताल्लुक रखता हूं और खुद लोकविद्या का ज्ञानी भी हूं। बात बहुजन समाज की आती है। हम लोगों ने पहले सत्र में ही कह दिया था कि हम जात के नजरिए से नहीं ज्ञान के नजरिए से बहुजन समाज को देखें। तो बहुजन समाज हम उसे कहते हैं जो ज्ञानी वर्ग है। जो लोकविद्या का ज्ञानी है हम उसे बहुजन समाज कहते हैं। एक थोपी गई व्यवस्था है। किसी ने सामान्य जन को बहुजन समाज कहा है। किसी ने बहुत लोगों को बहुजन समाज कहा है। किसी ने बहुजन समाज पार्टी बनाई है। नजरिए नजरिए का बल है। हमको समझना चाहिए इस पे। दूसरी चीज अभी बात धरती की हो रही थी। तमाम चीजों की हो रही थी। यह बनारस जिसे ज्ञान की नगरी के नाम से जाना जाता था। जिसे ताने-बाने के शहर के नाम से जाना जाता था। जिसकी विरासत कबी,र बिस्मिल्लाह खान, रविदास जैसे महापुरुष हुआ करते थे। आज इसको धार्मिक नगरी घोषित किया जा रहा है। यह एक सवाल है कि कल तक यह ज्ञान की नगरी हुआ करती थी। एक आस्था की नगरी हो गई है। यह बहुत मजबूत सवाल है। इस पर हमको बात करनी चाहिए। हम लोग विद्या के ज्ञानी लोग ज्ञान के नजरिए से देखें तो हम में कोई भेद नहीं है। हम में कोई फर्क नहीं है। आप किसी चीज के ज्ञानी हो। हम किसी चीज के ज्ञानी हैं। हम अपने ज्ञान के बल पे अपनी पहचान बनाए हैं। अपने ज्ञान के दाम की बात करते हैं। ज्ञान के प्रतिष्ठा की बात करते हैं। ज्ञान के सम्मान की बात करते हैं। इस कार्यक्रम को आगे बात इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की है। हम लोगों ने मोहल्ला ज्ञान पंचायत भी चलाई है। हम अपने बुनकर क्षेत्र जलालीपुरा में इस पंचायत को चला रहे थे। किसान संगठन के साथी लक्ष्मण कुमार मौर्य जी सलाारपुर में इस पंचायत को चला रहे थे। पंचायत चलाने में एक अनुभव उन लोगों को हुआ कि ज्ञानियों के बीच में ज्ञान की प्रतिष्ठा और सम्मान की जब बात करते हैं और जब उनके दाम की बात करते हैं तो उनका हौसला और सीना चौड़ा हो जाता है। जो बात आज कोई करने वाला नहीं है। कोई सियासी जमात या सियासी दल के लोग उनकी बात नहीं कर रहे हैं। आज बनारस से काफी संख्या में ज्ञानी लोग यहां से प्लान कर रहे हैं और आस्था के नाम पर लोग यहां पर दर्शन करने आ रहे हैं। तो हम इन ज्ञान की बातों को ज्ञानी समाज की बस्तियों तक पहुंचाएं। उनकी प्रतिष्ठा उनको बताएं। उसका सम्मान उनको दिलाएं। इसके लिए हमें शहर के साथ-साथ गांव में जो कारीगर समाज है, जो किसान समाज है, जिनके पास ज्ञान है, उनका गांव है, उनकी बस्ती है। हम ऐसी जगह पर बहुजन समाज पंचायत लगाएं और ज्ञान के विषय में, दान के विषय में, सम्मान के विषय में और बहुजन समाज के महापुरुषों के विषय में हम अपनी बात को रखें ताकि हमारी बात ज्ञान की बात उन तक पहुंचे। वो अपने ज्ञान का दावा, अपने ज्ञान की प्रतिष्ठा मजबूती से उठा सके। आज हम चंद लोग टीम वर्क में काम कर रहे हैं। जगह-जगह मोहल्लों में बस्तियों में जा रहे हैं। आगे हम चाहते हैं कि हर मोहल्ले में हर बस्तियों में हर गांव में जाएं। ऐसी चौपाल लगाएं और ज्ञान की बात करें। ज्ञान की प्रतिष्ठा की बात करें। खासतौर से आज की परिस्थिति में हमें बात करना है ज्ञान के दाम की। यह दान तब मिलेगा जब हम ज्ञान को सम्मान दिला पाएंगे। वो ज्ञान जो समय-समय पर आधुनिक रूप लेता जा रहा है। पहले हम कघा पर बुराई करते थे। समय के साथ हम परिवर्तित हुए। आज हम पावर पे बुराई करते हैं। तो हम ज्ञान में भी समय-समय पर नित नए प्रयोग करते रहे हैं। हम प्राचीन ज्ञान की सिर्फ बात नहीं करते। इस बात की भी मजबूती से हमको बात करनी होगी। इनहीं सब बातों के साथ क्योंकि समय कम है। आप लोगों का शुक्रिया। दो दिन का सत्र बहुत ही अच्छा हुआ। हम लोगों में को जो बहुत कुछ सुनने को समझने को मिला। एक अनुभव मिला। दूरदराज से लोग आए हुए हैं। उन्होंने अपना अनुभव शेयर किया। हम लोगों को काफी जानकारियां हुई। आगे से अगर समय मिला तो हम लोग इस विषय में और मजबूती के साथ काम करेंगे। शुक्रिया।
पारमिता:
धन्यवाद फ़ज़लुर्रहमान जी। हमारे पास समय बहुत कम है। हमको एहसान भाई दिख रहे हैं। अगर बोलना हो तो कुछ बोलिए इस पे कि कैसे इस पंचायत को आगे बढ़ाया जाए। सौरभ भी हैं। सौरभ आप भी बताइए कि इस पंचायत को सौरभ समझ रहे हैं ना कि सौरभ की बात हो रही है। हां तो जो है इसको कैसे हम लोग जो है इस पंचायत को बहुजन समाज बहुजन स्वराज पंचायत को हम कैसे आगे बढ़ाएं। इसके बारे में और अभी हमारे बीच राम जी यादव जी हैं। अपनी बात को रखेंगे। उनसे भी आग्रह है कि कुछ रखें। आर्यमन जी भी अपनी बात को रखें।
आर्यमन:
एहसान भाई:
शुक्रिया साथियों। मैं यहां पे आया था। सारे लोग को सुन रहा था। कल से भी आज भी मैं तो सोचा कि मुझे तो बोलने का मौका मिलेगा नहीं और मुझे क्या बोलना मैं तो सारे लोगों की बात सुनने आया था क्योंकि जो आज बहुजन समाज की बात हो रही है उसी पर सारे लोगों की बात होनी है क्योंकि हम लोग जो है आते हैं जो कांटेस्ट से जहां से आते हैं बुनकरी करते हुए और तमाम लोग हर जगह से आ रहे तो हर तबका अपनी-अपनी बात रख रहा है तो यहां कोई तबका या कोई ऐसी बात रखना नहीं क्योंकि यहां पे सारे लोग को बहुजन समाज की बात और बहुजन समाज को लेकर काम करना है। उसकी बात करना है और इसमें कुछ लोग को दिक्कत भी है कि ये नाम को बदलना एक दो लोग को ऐसा तो उसके लिए सोचा जाएगा। तो हम लोग को केवल मुद्दे पर बोलना है और इससे ज्यादा इसको ज्यादा से ज्यादा हम लोग आगे बढ़ाएं और हम भी आगे कोशिश यही करेंगे कि अपने बीच में जाकर के अपने लोगों को बीच में जाकर के ज्यादा से ज्यादा भोजन समाज का इसको ज्यादा से ज्यादा बात लोगों से करें और लोगों के बीच में जाके इसकी पहल करें। इसी के साथ मैं अपनी बातों को खत्म करता हूं। धन्यवाद!
पारमिता:
धन्यवाद, एहसान भाई.
सुनील सहस्रबुद्धे:
मैंने संचालिका महोदय से अनुमति ली है। दो शब्द बीच में बोलने के लिए। क्योंकि जो विषय वह बार-बार कह रही हैं उस पर लोग नहीं बोल रहे हैं। रामजनम जी ने सफाई से कहा कि आगे क्या उसके ऊपर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। प्रकारांतर से कुछ कह दे रहे हैं या कुछ बात ऐसे इंटरप्रेट हो जा रही है कि वह कुछ कह रहे हैं। हालांकि वह उसके बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। मैं ठोस प्रस्ताव रख रहा हूं जिससे कि जिसको कुछ कहना हो उन प्रस्तावों पर बोले। इसी विषय के अंतर्गत कि आगे क्या होना है। यहां से विद्या आश्रम से जो कार्य हो रहा है वह वह एक शोध कार्यक्रम और उसके साथ सुर साधना का प्रकाशन जो अलग-अलग संगठनों के लोग साथ आकर के जो विद्या आश्रम में साथ पहले से रहे हैं लेकिन अलग-अलग संगठनों के लिए भी काम करते हैं। उन्होंने साथ आकर के यह शुरू किया है। इसमें हरिश्चंद्र हैं। इनकी निषाद राज समिति है। इनकी यानी निषाद राज समिति के ये सचिव या जो कुछ भी हैं एक पदाधिकारी हैं। रामजनम जी हैं जो स्वराज अभियान से हैं। लक्ष्मण प्रसाद हैं। जो किसान यूनियन भारतीय किसान यूनियन से हैं। कमलेश राजभर हैं जो विद्या आश्रम की व्यवस्था देखते हैं और इर्दगिर्द के समाजों में विद्या आश्रम की जो बात ले जानी होती है वह ले जाते हैं। पारनीता जी हैं। सुरेश प्रताप हैं जो आए थे पहले दिन एक सीनियर पत्रकार हैं और चित्रा जी हैं। लोक विद्या जन आंदोलन की ओर से कोई नाम छूटा है? यह लोगों की एक आप समिति कह लीजिए, समूह कह लीजिए जो यहां से शोध कार्यक्रम को चला रहा है और सुर साधना का प्रकाशन कर रहा है जिसके मारफत वह शोध कार्यक्रम एक संख्या में लोगों के साथ जुड़ा हुआ है जिनसे वार्ता करता है। हमारा सुझाव यह है कि
पहली चीज कि शोध कार्यक्रम के लिए इन लोगों की जो समिति है और जो सुर साधना भी निकालती है उसको मान्यता दे या पंचायत उसको मान्यता दे और उन्हें इस बात के लिए अधिकृत करें। यह प्रस्ताव है। उन्हें इस बात के लिए अधिकृत करें कि वह अपने साथ और लोगों को जोड़कर कोऑप्ट करके अपने साथ यानी और लोगों को अपने में शामिल करके अपने समूह में इस कार्य को विस्तार दें। विस्तार कैसे देंगे यह वह सोचेंगे। अभी किसी के पास कोई सुझाव हो तो दे सकते हैं। हालांकि अभी तक किसी ने कोई सुझाव दिया नहीं।
दूसरी बात यह है जो इस जो इस पंचायत से संबंधित है, बहुजन स्वराज पंचायत से संबंधित है, एक दो प्रस्ताव आए हैं। एक जौनपुर से और एक सिंगरौली से और शायद एक कहीं से कि जौनपुर नहीं देवरिया सॉरी और चोला ये ये प्रस्ताव आए हैं। इसके ऊपर इस स्वराज पंचायत को इस बहुजन स्वराज पंचायत को संगठित करने वाले लोग भी वही हैं जो सुर साधना निकाल रहे हैं और जो शोध कार्यक्रम चला रहे हैं यहां से उन्हीं की जिम्मेदारी बनती है जो लोग प्रस्ताव दे रहे हैं उनको अपने साथ जोड़कर उनको अपने साथ जोड़कर कर और इसके लिए मैं प्रस्तावित कर रहा हूं कि रामजनम भाई और यह कौन है अपने सलारपुर के लक्ष्मण लक्ष्मण भाई यह दोनों जिन लोगों ने प्रस्ताव दिए हैं उनसे मिलकर डिटेल्स फाइनल करें और उन पंचायतों को आकार देने का रास्ता साफ करें। वाराणसी में शहर में यह पंचायतते होनी चाहिए।
जो स्थान मेरे दिमाग में आते हैं 80 घाट पर होनी चाहिए शिवाला घाट पर होनी चाहिए भैंसासुर घाट पर होनी चाहिए नाटी इमली में होनी चाहिए और भी जगह हो सकते हैं खोजवा के पास भी होनी चाहिए क्या नाम है उस जगह का वो जो तालाब है वहां शंकुधारा या क्या क्या है वो वहां भी एक पंचायत होनी चाहिए इस तरह से चार पांच पंचायतते बहुजन स्वराज पंचायतते बनारस के अंदर होनी चाहिए और यह जो ग्रुप है जो यहां पहले से कार्यरत है वह और लोगों को अपने साथ जोड़कर इस बनारस के अंदर की पंचायतों को शक्ल दे आकार दे। यह प्रस्ताव मैं आपके सामने रख रहा हूं। इसके ऊपर जिसको जो जोड़ना है वह जोड़ें अन्यथा इसे स्वीकार करें और इस पर अमल करने की नीति बनाएं। धन्यवाद।
पारमिता:
और कोई साथी इस बारे में अपनी अगर राय मतलब विचार रखना चाहते हैं तो आ सकते हैं। बहुजन स्वराज पंचायत को कैसे आगे बढ़ाया जाए? लोगों के बीच में कैसे इसको और आयोजित किया जाए इस कार्यक्रम को। आर्यमन को भी अगर कुछ कहना हो तो आ सकते हैं आर्यमन. अभी हमारे राजन मानव जी, और हरिश्चंद्र जी हैं. समय बहुत कम है। पांच-पांच मिनट का ही समय है। अपनी बात रखें।
राजेन्द्र मानव:
आज बहुजन स्वराज पंचायत का तीसरा दिन है और आखिरी सत्र अध्यक्ष मंडल का मैं स्वागत करते हुए और मंचासीन समस्त श्रोता गण का भी मैं स्वागत करता हूं। आज वाराणसी क्योंकि वाराणसी गवर्नमेंट के इकोनॉमिक है। बनारस काशी नहीं है। वाराणसी जिला है। इसलिए वाराणसी जिले में मैं अगला बहुजन स्वराज पंचायत की घोषणा करता हूं अक्टूबर महीने में। लास्ट में मैं कराऊंगा रिंग रोड के बगल में और मैं किसानों से संबंधित सारनाथ के बगल में वैदिक सिटी बन रही है। पांच गांव को उजाड़ने का अभियान वीडियो ने छेड़ दिया है। उस मुद्दे पर किसान आंदोलन यहीं से विद्या आश्रम से हम उसकी शुरुआत करना चाहते हैं और उस जमीन को बचाने का जो है हम बीड़ा उठाते हैं। आंदोलन के माध्यम से यही विद्या आश्रम से जो है जोड़कर क्योंकि मैं पहले किसान मोर्चा चलाता था। मैं उसका प्रदेश प्रवक्ता रहा। लेकिन 2 अक्टूबर को किसान मोर्चा की गतिविधि हमें अब समझ में नहीं आ रही थी। मैंने 2 अक्टूबर को किसान भारतीय किसान यूनियन का मैंने सदस्यता ग्रहण कर लिया। घोषणा भी कर दिया। इसे किसान भारतीय किसान यूनियन के सहयोग से विद्या आश्रम के पहल पर जो है निर्देश पर जो है निर्देशन में उस पांच गांव की भूमि को जो है बचाने के लिए हम लोग आंदोलन चलाएंगे और अगला बहुजन स्वराज पंचायत में अक्टूबर में जो है वाराणसी जिले में काशी और बनारस की बात मैं नहीं कर रहा हूं क्योंकि वाराणसी जिला मेरा है इसलिए वाराणसी जिले में जो है अगला कार्यक्रम कराने की घोषणा करता हूं। जय हिंद जय भारत।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद राजेंद्र मानव जी और साथी कोई बोलेंगे इस पे अपनी बात को रखेंगे या तो इस कार्यक्रम में अपनी मदद दे सके। कैसे इसको आगे और बढ़ाया जा सके सम्मेलन करा सके। इस टीम में जो टीम एक बन रही उसमें शामिल हो सके। बहुत सारे कार्यक्रम है जो कि … आप सौरभ … सौरभ बनारस में बुनकरों के बीच में काम कर रहे हैं।
सौरभ:
सभी साथियों को क्रांतिकारी लाल साहू साथियों आज जो यह बहुजन स्वराज पंचायत हो रहा है। इसकी भी मंशा और जो सर्वहारा समाज की चाह रखने वाले लोग हैं उनकी भी मंशा लगभग एक ही है। कि समाज के निचले से निचले तबके का कैसे उत्थान हो और कैसे उन तक हम पहुंचे और किस तरह से यह लड़ाई लड़ी जाए तो साथियों आज के समय में हम लोगों को बेहद पैमाने पे अलग-अलग संगठना को आपस में तालमेल बनाना पड़ेगा जो समाज में काम कर रहे हैं। ताकि बहुजन पंचायत हो या बहुजन स्वराज जब तक इसकी राजनीतिक लड़ाई को लेकर हम लोग सचेत नहीं होंगे तो हमें कामयाबी नहीं मिलेगी। आज जिस तरह से बीजेपी लचीलापन रखती है अलग-अलग संगठनों से चाहे वो कभी महबूबा मुफ्ती के साथ जरूरत पड़ने पर संबंध बनाती है जरूरत पड़ने पर फारूक अब्दुल्ला के साथ संबंध बना ले मुलायम सिंह के साथ संबंध बना ले तो हमारी जो लाइनें हैं अलग-अलग संगठनों की उसमें ज्यादा कोई अंतर नहीं है। हम लोगों को भी किस तरह से छोटे-मोटे मतभेद को भुलाकर बहद पहनाने में पे एकता बनानी चाहिए ताकि जो काम हम लोगों को आगे राजनीतिक रूप से इस लड़ाई को लड़ना है। तभी जाके बहुजन स्वराज या सर समाज का जो सपना है देश में देखने वाले लोगों का वो उस ओर हम लोग जा सकते हैं। धन्यवाद साथियों।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद। अब आगे और किसी को आर्मन बोलेंगे। बात रखेंगे। आरमन आ रहे हैं। अपनी बात को रखेंगे और भी कोई साथी राम जी यादव जी आप अपनी बात रखेंगे। आर्यमन के बाद आप आ जाए। कुछ टीम भी हमारी बनती जा रही है इसमें किमन आइए।
आर्यमन:
नमस्कार सभी को। जैसा कि मैं कल कह रहा था कि हम लोग वो लोग हैं जो लोकविद्या के रस से दूर रहे लोग हैं और रस की खोज में हमने लोकविद्या समाज से एक संवाद शुरू किया और जब से वो शुरू हुआ है तब से हमें बहुत कुछ मिला है अ और इस खोज को जारी रखने के लिए और इस खोज को और चौड़ा बनाने के लिए जिससे कि हमारे जैसे और लोग इसमें जुड़ पाए। हम लोग कुछ समय से कुछ कार्यक्रम कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर अगले महीने हम लोग जबलपुर के पास शहर से 30 किलोमीटर दूर एक गांव है। वहां पर 10 दिन के लिए मिलेंगे और कुछ 20 लोग हम गांव में रहकर गांव के अलग-अलग कारीगरों के साथ उनकी कारीगरी को समझेंगे और कारीगरी को समझने में सिर्फ उस ज्ञान की झलक नहीं मिलती है। एक पूरे नजरिए की झलक मिलती है और जब वह एक नया नजरिया हमारे सामने आता है तो दुनिया कुछ अलग दिखने लगती है और बहुत कुछ नया उत्पन्न होता है। यह क्योंकि हम लगातार कुछ तीन-चार साल से कर रहे हैं तो हमें यह एक अच्छी गतिविधि लगी जिसको हम जारी रखना चाहते हैं। जबलपुर के अलावा यह और स्थानों पर भी किया जा सकता है। जहांजहां पर आप हमें निमंत्रित करेंगे वहां आकर हम मिलना चाहेंगे वहां के कार्यकरों से। हमारा तरीका इसको करने का यह रहता है कि कार्यक्रम करने से पहले हम भिक्षा या चंदा इकट्ठा करते हैं और उस पैसे के जरिए हम अपना आयोजन करते हैं। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि ना हम किसी सरकार पर निर्भर हैं ना हम किसी बाजार की किसी कंपनी पर निर्भर हैं कि जब तक वो (बिजली जाने के कारण आवाज नहीं …)
आज समाज में जिस तरह की आपसी दूरियां बन रही है। विजय जी भी बता रहे थे कि युवाओं में वो पाते हैं कि एक एटमाइजेशन है। एक व्यक्तिवाद बढ़ गया है। तो उस व्यक्तिवाद को दूर करने के लिए कुछ छोटे-छोटे गतिविधियां हैं और यात्राओं के माध्यम से भी यह चीजें की जा सकती हैं। आगे यदि कुछ प्रस्तावनाएं आती हैं तो हम लोग भी इस पे चर्चा करेंगे। हम किस तरह से जुड़ सकते हैं।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद। रामजी यादव जी पांच मिनट में बस अपनी बात को रख दें। अगर कोई और साथी अपने इलाके में बहुजन स्वराज पंचायत करना चाहते हो तो कृपया बताएं।
रामजी यादव:
नमस्कार, और धन्यवाद पारमिता जी आपने मौका दिया। तीन दिनों का यह आयोजन जिस तरीके से बहुत अच्छे परिवेश में बातचीत का और बहुजन स्वराज को लेकर एक संवाद जैसे बना है। उसके लिए निश्चित रूप से बहुजन स्वराज पंचायत को आयोजित करने वाली टीम के सभी सदस्य साधुवाद के पात्र हैं। निश्चित रूप से इस तीन दिनों के कार्यक्रम के बाद यह तय होना चाहिए कि आगे हम क्या करेंगे। क्योंकि यह एक कैंपस में कार्यक्रम है। लेकिन जब आप बहुजन स्वराज की बात करते हैं तो यह किसी भी कैंपस से बाहर उन तमाम सारी जगहों पर जहां लोग अपनी अपने ज्ञान के बूते पर जीवन निर्वाह की और समाज को और मनुष्यता को बचाए रखने का अनवरत काम कर रहे हैं। हम लोग यानी गांव के लोग की टीम लोकविद्या जन आंदोलन के साथ मिलकर कुछ आयोजन इस कैंपस में भी कर रहा है और हम सारे हम लोग माने गांव के लोग के लोग बहुजन कलाओं के को लेकर खास तरह से बहुजन संस्कृति और कलाओं को लेकर उनके दस्तावेजीकरण का काम कर रहे हैं। और इसी क्रम में मुझे यह समझ में आता है कि कलाएं केवल गाने बजाने की नहीं है। वो हर तरह से कलाओं का जिंदगी जीने के हर घटक में उनका उनकी उपस्थिति है और मुझे लगता है कि इसके कार्यक्रम को यहां के कार्यक्रम को विस्तार देने की जरूरत इस रूप में है कि हम गांव की ओर जाएं जहां वास्तव में लोकविद्याधरों का समाज रहता है और सबसे पहली चीज तो यह है कि उनको कहने के मौके मौके कैसे मिले? उनको जो कुछ भी हम उनके उनकी व्याख्या कर रहे हैं, हम उनकी व्याख्या खुद ना करके उनके मुंह से अगर हम उनके जरिए से सुनते हैं, जानते हैं और उनकी पुन प्रस्तुति और उनका भरोसा फिर से पैदा हो अपने कामों के को लेकर जो आइसोलेशन इस पूरी व्यवस्था ने उनके ऊपर थोपा है उसके विरुद्ध वे कंधा झाड़कर खड़े हो और फिर नए तरीके से एक आंदोलन की शक्ल में वे इकट्ठा होना शुरू हो और अपनी अपना चार्टर अपनी डिमांड अगर वह रखें तो इसकी शुरुआत इस रूप में होनी चाहिए कि बनारस के शहरी इलाकों में जो कार्यक्रम हो उनका विस्तार गांव तक होना चाहिए। अलग-अलग गांव में और वहां के स्थानीय लोगों की भागीदारी इस रूप में है कि आयोजन भी वे लोग करेंगे। हम लोग उसमें शामिल होंगे और हम लोग भी थोड़ा बहुत उनको जो भी सपोर्ट कर सकते हो करें। यह मेरा सुझाव है और गांव में जाने की प्रक्रिया में बहुत सारे गांव में लगातार जा रहा हूं। तो उन गांव में लोगों को जोड़कर हम बहुजन स्वराज का की पंचायत और बहुजन समाज स्वराज की का संवाद की की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। काम कर सकते हैं। धन्यवाद।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद। अब मैं … लक्ष्मण जी थोड़ा सा बोलेंगे और हरिश्चंद्र जी बोलेंगे।
लक्ष्मण प्रसाद:
सम्मानित अध्यक्ष मंडल और बहुजन स्वराज पंचायत में उपस्थित सभी लोगों को प्रणाम करता हूं। यहां पर जो प्रस्ताव आया हुआ है और उसके उस प्रस्ताव पर जो बातें आई हैं जो जगह-जगह इस पंचायत को ले जाने की बात आई है। उन सभी को सुनियोजित करने में मैं अपना जितना भी शक्ति है उतना देने को तैयार हूं और साथ ही साथ मैं अपने गांव में जहां कुछ सामाजिक राजनीतिक गतिविधियां होती हैं। एक जगदेव प्रसाद जी की मूर्ति है। उसका स्थल है। वहां पर भी एक प्रयास करूंगा कि एक पंचायत बहुजन स्वराज पंचायत आगे के महीनों में मैं कराऊं और उस स्थल को इस रूप में भी विकसित करने का कि मेरी योजना है कि ये बातें वहां से अनवरत चलती रहे। कुछ ऐसा भी मैं प्रयास करूंगा शहर में और इसके साथ साथ इन बातों को मैं जहां-जहां भी जाऊंगा, चाहे वह भारतीय किसान यूनियन का कार्यक्रम हो और भी जगहों पर वहां भी मैं ले जाने का प्रयास करूंगा। ज्यादा समय न लेते हुए इन्हीं बातों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं। सबको धन्यवाद।
पारमिता:
हरिश्चंद्र जी!
हरिश्चंद्र:
धन्यवाद। मुझे लगता है कि मेरा ज्यादातर काम इन समाजों के साथ ही रहता है और मैं कोई आंदोलन करने से पहले पंचायत करता हूं और पंचायत में एक खूबी होती है कि वहां पे बहुत चीजों का समाधान आसानी से मिल जाता है क्योंकि अलग-अलग दृष्टि से लोग जब एक ही विषय पर लोग बात रखते हैं तो बहुत से सवालों का हल हम लोगों को मिल जाता है और इस बहुजन स्वराज पंचायत को मैं अपने कार्य क्षेत्र में ले जाऊंगा और कोशिश ये करूंगा कि अपने साथियों में सबसे ज्यादा पंचायतें आयोजित कराऊं। जितने भी यहां लोग उपस्थित हैं उन लोगों में सबसे ज्यादा पंचायतते कराने की कोशिश करूंगा क्योंकि यह मेरे मन में एक उत्साह है। एक हमारे लिए एक सूत्र है और बड़ा ही अच्छा समय है और इस वर्तलते वातावरण में इस माहौल में यह बात उसी तरह है जिस तरह से लोग जंक फूड और फास्ट फूड खा के वापस ऑर्गेनिक फूड पे आ रहे हैं। तो यह बहुजन स्वराज पंचायत वही टेस्ट वही स्वाद है जिसको लोग बिसरा दिए थे। वापस इसमें आना चाहते हैं और इसकी बांधगी मैं देखता हूं। मैं जहां काम करता हूं लोग ये चाहते हैं कि इस तरह से व्यवस्थाएं हो। तो साथियों इस काम में मैं और मेरा पूरा मेरी जो पूरी टीम है मेरी समिति है मेरे जो यूनियन के लोग हैं वो इस काम में पूरा सहयोग करेंगे और इसके लिए जो लेखन लिखने की जरूरत होगी जो प्रकाशन की जरूरत होगी जो संसाधन होंगे उन संसाधनों को भी इकट्ठा करने का काम करूंगा और आप लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलूंगा. धन्यवाद.
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद। अब यहां पे कुछ पंचायतते आयोजित करने का लोगों ने जिम्मा लिया है। उसको मैं बोल देती हूं। सिंगरौली से लक्ष्मी चंद दुबे जी ने कहा है कि एक पंचायत आयोजित करेंगे। देवरिया में राम किशोर जी ने कहा है कि एक पंचायत आयोजित करेंगे। विनोद चौबे जी ने चोलापुर जो बनारस का ही एक ब्लॉक है बनारस जिले का कहा है वहां पर एक पंचायत आयोजित करेंगे। राजेंद्र मानव जी ने कहा है कि रिंग रोड के बगल में वो अपनी एक पंचायत आयोजित करेंगे। लक्ष्मण जी ने कहा है अपने गांव सलारपुर में मतलब बनारस में तीन चार पंचायतों का आयोजन होगा। अभी हर ने बताया नहीं है लेकिन एक दो पंचायतों का आयोजन घाटों पर भी होगा। तो यह है कुल अभी तक सात आठ सिर्फ घाटों तक सीमित नहीं है। हरिश्चंद्र गांव में भी है। हरिचंद ना करेंगे। घाटों से मत ठीक है। हम तो इनके जो है ये वहां पे अपने पंचायत का आयोजन करेंगे। जो भी इनके इलाके हैं मिर्जापुर में भी करेंगे। हां। तो इसके साथ अब मैं इस कार्यक्रम को समाप्ति की तरफ ले जाते हुए धूप भी बहुत आ गई है। मंच पर बैठना बहुत मुश्किल काम हो गया है। तो इसलिए हम अब अध्यक्षीय भाषण की तरफ चल रहे हैं। तो सबसे पहले हम प्रवाल जी को आमंत्रित करेंगे कि प्रवाल जी आए। बोलें. मैं सोचती हूं कि डायस को नीचे चला जाए और मंच भी नीचे हो जाए। क्योंकि यहां धूप में खड़े होकर बोलना थोड़ा मुश्किल काम है। कहां सुन इसको नीचे कर दो नीचे कर दो नीचे अरे तो भी धूप आ गई है यार वहां भी धूप है …
प्रवाल जी:
यहां बहुत बातें हुई है लेकिन वो सारी बातें जो है लोगों के इकोनमिक उत्थान की ओर से बात की गई है मैं ये कहना चाहता हूं पी यूसीएल की ओर से कि इकोनमिक उत्थान के साथ साथ सिविल लिबर्टीज का उत्थान भी होना चाहिए सिविल लिबर्टीज जो है वह आप जिस इलाके में आप काम करते हैं जिस इलाके में आप कार्यरत हैं वहां के लोगों के लिए और साथ-साथ अपनी पर्सनल लाइफ में भी जो आपकी वाइफ हैं, आपके मदर हैं, आपके सिस्टर हैं, आपकी लड़कियां हैं। उनकी भी सिविल लिबर्टी होती है। उन सिविल लिबर्टीज को भी रेस्पेक्ट करना इन हम लोगों का काम है। और यह करते रहना चाहिए। इसके साथ ही मैं अह और तो कुछ नहीं कहना चाहता हूं क्योंकि काफी बातें हो चुकी है और आप सबका धन्यवाद देता हूं।
पारमिता:
अब मैं आगे के अध्यक्ष उद्बोधन के लिए सुनील सहस्रबुद्धे जी को आमंत्रित करती हूं कि आप आइए और आज का अध्यक्ष … इस पूरे स्वराज पंचायत का जो हमारे साथी लोग बोल भी रहे थे कि सुनील जी का कहीं कोई भाषण नहीं हुआ है तो उसका जो पूरा दृष्टिकोण हम लोग को थोड़ा समझाइए और लेकिन बहुत धीरे-धीरे ही बोलिएगा आवाज को बैठ … नहीं ठीक है।
सुनील सहस्रबुद्धे:
पहली बात तो यह कि आज जो कुछ भी तय हुआ है उसको लागू करने के लिए जो भी काम लोग हाथ में लेंगे उसके लिए जैसी जरूरत हो सहयोग की बात हो विद्या आश्रम से वो संपर्क कर सकते हैं। विद्या आश्रम के ये पांच छह लोग जो प्रमुख कार्यकर्ता हैं इस वक्त जो रिसर्च टीम भी है और जिन्होंने इस पंचायत को संगठित भी किया है। उनमें से किसी से भी शायद वह पुस्तक आपके पास होगी तो सबके मोबाइल नंबर उसमें होंगे। लक्ष्मण भाई से बात कर सकते हैं। रामजनम जी से बात कर सकते हैं। हरिश्चंद्र से बात कर सकते हैं। कमलेश से बात कर सकते हैं।ित्रा जी से भी बात कर सकते हैं। लेकिन अगर इन लोगों से बात होित्रा जी थोड़ा सा तय कर रही हैं कि अपनी सक्रियता कम करेंगी। थकान आती है। पारमीता से बात कर सकते हैं। और भी कोई हो तो आप जोड़ लें। फजलुर रहमान अंसारी हैं। उनसे बात कर सकते हैं। इन सब लोगों के नाम हैं। सुर साधना के का संयोजक मंडल यही है। संपादक मंडल यही है। सुर साधना मैं एक बात केवल और कहूंगा। बहुजन स्वराज पंचायत के किसी मौलिक समझ को के बारे में आपने देखा कि इस पंचायत में एक कला सत्र भी था। ऐसी पंचायतों में या ऐसी सभाओं में कला सत्र नहीं हुआ करते हैं। कला सत्र वही होते हैं या कला पर बातें वही होती हैं जो जो बैठकें या पंचायते या या सभाएं कला पर ही केंद्रित होती हैं। बाकी जगह कला की बात करना यह जरूरी नहीं समझा जाता है। या यह समझ में नहीं आता है कि उसको भी शामिल करें। कला सत्र शामिल होना एक विशेष घटना है इस पंचायत के संदर्भ में स्वराज के संदर्भ में और स्वराज बहुजन की पहल पर स्वराज निर्माण की जब जब बात होगी तब कला की बात होनी होगी अन्यथा वह किसी और दिशा में बात चली जाएगी। एक बात है कला से संबंधित जो मैं आपके सामने रख देना चाहता हूं। यह बात लोकविद्या के संदर्भ में भी होती रही है और सब लोगों सब लोग संतुष्ट हो ऐसी बात हमेशा नहीं हो पाती है लेकिन बात सामने रखना जरूरी है उससे कुछ समझना जो यूरोपीय सोच का तरीका है उसका उसकी जो नीव है जो नीव हो गई है नीव ऐतिहासिक तौर पर नहीं देखिए दो बातें हमेशा क्रोनोलॉजी के अर्थ में नीव नहीं क्या पहले हुआ ये नहीं लेकिन तार्किक इस पे तर्क के आधार पे उसकी नीव जो है वो कुछ अजीब किस्म की नीव है वह एक निरपेक्ष किस्म की नीव है। यह पाश्चात्य दर्शन के जो आधुनिक दर्शन है पिछले 300 400 साल का 17 वी सदी से निश्चित ही थोड़ा पहले से उसकी खासियत यह है कि मनुष्य की सोच में जो मनोवैज्ञानिक तत्व हो सकते हैं उन सबको छांट देना यह 200 300 साल में उन्होंने एक एक करके उनहीं दार्शनिकों के नाम अब प्रतिष्ठा योग्य रह गए हैं जिन्होंने अपने विचार से मनोवैज्ञानिक तत्वों को छांट दिया। मनुष्य का किसी मनुष्य से क्या संबंध है? इस तत्व को छांट दिया। मनुष्य का प्रकृति से क्या संबंध है? उसके बारे में वह क्या सोचता है? नहीं सोचता है उसको छांट दिया और एक ऐसी तार्किक संरचना का उद्घाटन किया धीरे-धीरे करके उस पर पहुंचे जिसमें जो सार विहीन होता है जिसका कोई कंटेंट ही नहीं होता है जो सार विहीन होता है और इसलिए क्योंकि उसका कोई सार नहीं होता है वो यूनिवर्सल होता है वह सब जगह पर लागू होने लायक बन जाता है क्योंकि वह किसी जगह पर लागू होने के लिए नहीं बनाया हुआ होता है। वह यूनिवर्सल यानी सार्वभौम शब्द का इस्तेमाल होता है। एग्जैक्ट ट्रांसलेशन तो मुश्किल है क्योंकि ऐतिहासिक और दार्शनिक दृष्टि से ये यूनिवर्सल शब्द पिछले तीन 400 साल के यूरोपीय इतिहास में रूटेड है। वहां पर इसकी जड़ है। इसलिए उसका अनुवाद इतना आसान नहीं होगा। अनुवाद कर लेते हैं लेकिन अनुवाद के मारफत बात करने में बात बिगड़ती है बहुत बार। तो वह एक ऐसा कोर है, एक ऐसा कर्नल, एक ऐसा बीज रूप उसके अंदर एक ऐसी संरचना है उसके अंदर की जिसका कोई कंटेंट ही नहीं है। ना वो नैतिक है, ना वो सुंदर है, ना उसका इस दुनिया से कुछ लेना देना है। किसी चीज से कुछ लेना देना नहीं है। ये उस पूरे दर्शन के दौर ने यूरोप में अंत में वो यहां पर पहुंच गया। 19वीं सदी के 20वीं सदी के शुरुआत का समय कह सकते हैं मोटे तौर पर या 19वीं सदी के अंत का और यह होना और साइंस का साइंस आधुनिक विज्ञान कह सकते हैं लेकिन साइंस कहना अच्छा है विज्ञान शब्द का प्रयोग बहुत जगह पर अलग-अलग अर्थों में हुआ है और साइंस ही अह एक कहानी याद आ गई लेकिन नहीं बताएं। अह साइंस [संगीत] क्या कह रहा था मैं कि साइंस की नीव इसी सोच में है जिसको वो मॉडर्न लॉजिक या सिंबॉलिक लॉजिक के नाम से जानते हैं। एक्समेटिक सिस्टम्स के नाम से जानते हैं कि उसका उनका अपना कुछ नहीं होता है। उसका कोई कंटेंट नहीं। वो नीति निरपेक्ष होता है। वो सौंदर्य भाव से निरपेक्ष होता है। वो किसी मटेरियल प्रोसेस से उसका कुछ लेना देना किसी चीज से कोई लेना देना उसका नहीं होता है। कुछ ऐसी अजीब सी बात है वो समझना इतना आसान नहीं है। मैं केवल जिक्र कर दे रहा हूं। उसकी तुलना में जब हम स्वराज की बात करते हैं, जब आप डेमोक्रेसी के साथ में फ्रीडम और डेमोक्रेसी की बात एक साथ करते हैं। जो 19वीं सदी के शुरू से पॉपुलर हुआ है। यूरोप में भी और धीरे-धीरे सब जगह साम्राज्यवाद के साथ ये बातें गई हैं। तब यह फ्रीडम और डेमोक्रेसी जो अंततो गत्वा इसका आधार जिसमें होता है जिसको वो रीजन कहते हैं तर्क उस डेमोक्रेसी का उस फ्रीडम का हर चीज का अंतिम आधार उनकी तार्किक प्रणाली में होता है। बहुजन का तर्क का तरीका अलग है और यहां पर ही बहुजन की दृष्टि से अगर भविष्य का निर्माण होना है तो एक नए नैरेटिव की जरूरत होती है। जो नैरेटिव बहुजन के अपने तर्क के हिसाब से होता है। बहुजन का तर्क भाव प्रधान होता है। बहुजन का तर्क कला प्रधान होता है। लोकविद्या का तर्क कला प्रधान होता है और भाव प्रधान होता है और हर चीज से साथ उसका कुछ ना कुछ लेना देना होता है। मैं आपको एक व्यक्तिगत अनुभव छोटा सा बताता हूं। आप लोगों के पास ज्यादा अनुभव होंगे। अनुभव यह है कि मेरी पीठ खराब हो गई थी। यह अलीम भाई हमारे दोस्त हैं। आए हुए हैं। मोहम्मद अलीम छितूपुर में रहते हैं। इसके पीछे विश्वविद्यालय के पीछे तो वह हमको एक जगह ले गए। पीठ यानी क्या कहते हैं उसको? L4 एल5 का प्रोलैप्स जो मेडिकल वाले कहते हैं स्लिप डिस्क कहते हैं या अपनी भाषा में वो चिनक जाती है पीठ या चमक जाती है कुछ इस ढंग से कि फिर आप हिलने डुलने लायक नहीं रह जाते हैं। उस वक्त हमारी उम्र 42 43 साल की थी और उस उम्र में होता है। और लोगों को भी हमने देखा है। तो एक जने के पास ले गए। एक जने थे जो एक गुमठी थी उनके पास विश्वविद्यालय की दीवार के बाहर नरिया की साइड में नरिया से थोड़ा आगे बढ़ने पर उनकी एक गुमठी हुआ करती थी वहां से वो रिक्शा व्क्षा चलवाते तीन चार रिक्शा उनके पास थे और पंचरवंचर बनाने का काम भी खुद ही करते थे उनके पास ले गए कि ये ठीक करेंगे गए हम लोग तब तक लोकविद्या शब्द का चयन नहीं हुआ था यह शब्द तब तक हम लोगों के पास नहीं था। बहरहाल गए हम लोग। उन्होंने झुकने को कहा और कमीज ऊपर उठाई। कुर्ता जो पहना था ऊपर उठाया। बालू पीठ पर गिराई और कहीं तो भी एक चिकोटी बड़ी महीन वाली चिकोटी उन्होंने ले ली कि पूरा बदन सिहर गया। अब फिर कहने लगे अब खड़े हो जाइए। आधे ठीक हो गए हैं। फिर आएंगे तो बाकी आधा भी ठीक कर देंगे। हम हाथ में डंडा ले गए थे। डंडा रखने लेने की जरूरत नहीं रह गई। मोटरसाइकिल गए थे और मोटरसाइकिल बैठकर के अली भाई चला रहे थे। हम वापस आ गए। हमने उनसे कहा कि इसके एवज में हम आपको कुछ तो कहे नहीं हम नहीं ले सकते हैं। क्योंकि हमने जहां सीखा है जिस गुरु से या जहां पर हमने सीखा है वहां यह बताया गया है कि इसके लिए अगर पैसा लोगे तो तुम्हारी विद्या काफूर हो जाएगी। चली जाएगी। तो उसके लिए कुछ नहीं ले सकते थे। तर्क दे रहे हैं। वह भूलिएगा मत। कहानी नहीं सुना रहे हैं। तर्क दे रहे हैं। अब उसको आप कहानी कह लीजिए। उसको आप कोई नरेटिव कह लीजिए। उसको आप जो भाषा दे दीजिए। तो हमने कहा हम चाय पिला दे आपको कम से कम। क्योंकि यह अनुभव बहुत कम होता है कि फिर उसने इस तरह से कह दिया हो कि हम कुछ नहीं ले सकते। हुआ। तो हमने कहा चाय पिला दे। तो कह नहीं आज हम आपकी चाय नहीं पिएंगे। उसका मतलब यह निकल जाएगा कि हमने चाय पी ली आपकी और आपका काम कर दिया। तो हम आज आपकी चाय नहीं अब आपका रास्ता होगा। आते जाते हैं। ये रोड के ऊपर है। कभी इधर से जाइएगा तो हम चाय पी लेंगे। आप पिला दीजिएगा चाय। यह बात हो गई। फिर यह हुआ तो अब हम मंगल को आए। इतवार का दिन था। कोई दिन था। हमने दो दिन बाद का पूछा कि मंगल को आए। कहे नहीं मंगल को मत आइएगा। मंगल मंगल को हम भगवती माई की पूजा करने जाते हैं। मंगल को यह काम नहीं करते हैं। तो क्या भगवती माई की पूजा करने जाना उनका इस संदर्भ में उसका जिक्र करना और यह कहना कि इसलिए हम मंगल को इसलिए या जो भी संबंध हो हम मंगल को यह काम नहीं करते हैं। यह कोई तर्क दे रहे हैं। या कुछ गप मार रहे हैं। क्या कर रहे हैं? वो अपनी जिंदगी चला रहे हैं। इस हिसाब से यह मत भूलिएगा। एक पक्का नियम है जिसका पालन कर रहे हैं और आपको बता रहे हैं। और यह अनुभव बहुत लोगों को यहां बैठे हुए हैं। हमारे साथी पहले के जो लोकविद्या गांव में जगह-जगह गए हैं। ये विनोद बहुत से अनुभव लेकर आए थे। इनको अनुभव तमाम लोगों को ये रामजनम को ये ये हैं अपने लक्ष्मण भाई हैं। ये सब लोगों को इस टाइप के अनुभव हैं। इस स्वराज पंचायत ने यह कहना चाहा है कि बहुजन का तर्क भाव प्रधान होता है। बहुजन का तर्क कला कबीर क्या तर्क दे रहे हैं? अगर कबीर का तर्क बहुजन का तर्क है तो वो क्या कह रहे हैं? वो भक्ति कर रहे हैं या ज्ञान की बातें कर रहे हैं? ये आपको चुनना है। रेदास क्या कर रहे हैं? कह रहे हैं कोई चीज निश्चित नहीं है। कोई चीज सटीक नहीं है। कोई चीज शुद्ध नहीं है। कोई चीज यह नहीं है, वह नहीं है। किसी समाज को इंगित करके कह रहे हैं कि वह अपने को शुद्ध कहते हैं। दुनिया में कुछ शुद्ध नहीं है। वो क्या अलग से हैं जो शुद्ध हो गए। शुद्ध तो कुछ होता ही नहीं है। कबीर कह रहे हैं कि दिन रात कोठी पढ़ते हैं। समझते हैं ज्ञानी हो गए हैं। ज्ञान उनको छू के भी नहीं गया है। ज्ञान तो वहां है जहां मोहब्बत है। क्या कर रहे हैं? कोई तर्क दे रहे हैं। आप उसको सामाजिक तर्क कह सकते हैं। जो यूनिवर्सिटी में ज्यादा पढ़े लिखे लोग हैं, दर्शन शास्त्र भी पढ़े हैं। फिजिक्स के डिपार्टमेंट में भी हैं। इंजीनियरिंग भी कुछ करना जानते हैं। पढ़े लिखे हैं वो कहेंगे सामाजिक तर्क है। हम कह भाई सामाजिक तर्क क्यों है? केवल तर्क क्यों नहीं कहते हो? उसको सामाजिक तर्क क्यों कहते हो? यहीं पर समस्या है और यही बात समझने की है। जब बहुजन स्वराज की हम बात करेंगे और उसकी पंचायत करेंगे तो उस पंचायत में का जो तर्क का विधान होगा हर पंचायत का वैसे तो लेकिन खास करके बहुजन पंचायत का जो तर्क का विधान होगा वो होगा जिसे वो जिसे विश्वविद्यालय वाले बड़ी कृपा करेंगे तो कहेंगे सामाजिक तर्क है नहीं तो कहेंगे कोई तर्क नहीं है उसका विश्वास है। वो मानते हैं यह कुछ परिवर्तन हुआ, कुछ हुआ जिसकी वजह से कबीर पढ़ाए जाने लग गए। लेकिन कबीर को दर्शन विभाग में नहीं पढ़ाते हैं। यह बहुजन की जिम्मेदारी है कि कबीर दर्शन विभाग में पढ़ाया जाए। कबीर दर्शन का विषय है। कबीर को भाषा विभाग में पढ़ा करके चतुराई वाला काम ना किया जाए। ये चालाकी का काम है, बदमाशी के काम है और बेईमानी के काम है। हम गांधी से सहमत हो या ना हो हम डॉ. अंबेडकर से सहमत हो या ना हो डॉ. अंबेडकर को और गांधी को पॉलिटिकल साइंस में ना पढ़ाया जाए। उनको दर्शन विभाग में पढ़ाया जाए। उनका अपना दर्शन है। हम सहमत हो या ना हो दर्शन विभाग में सबके दर्शन पढ़ाए जाते हैं। इनके भी अगर शंकराचार्य को पढ़ाया जा सकता है तो डॉक्टर अंबेडकर को क्यों नहीं पढ़ाए? बुद्ध को पढ़ा सकते हैं। बड़ी मजबूरी में शुरू किया है। हमारे पास में वो रहा करते थे मूर्ति जी जिन्होंने बुद्ध की पढ़ाई शुरू की इस बीएचयू में। हम बीएचयू में रहते थे। ये 1950 के बाद की बात है। ये डिपार्टमेंट बन के 50 साल हो चुके थे। इस देश में दर्शन के नाम पर केवल शंकराचार्य को पढ़ाया जाता था। अब शंकराचार्य को ना पढ़ा के कांट और हेगेल को पढ़ाने लग गए। सोक्रेटीस और प्लेटो को पढ़ाने लग गए। लेकिन कबीर को नहीं पढ़ाएंगे। कहां कितनी गहराई में आपको इस बात को समझना है कि बहुजन को जो अपनी बात सबके सामने पब्लिक डोमेन में सार्वजनिक दुनिया में अपनी बात जो स्थापित करनी है उसके लिए और यह बहुजन समाज के लोग ये जानते हैं वो है एक भरत हरि का भरत हरि के वो नीति शतक करके भरत हरि का एक श्लोक है 100 नीति शतक के उसमें एक है शुरू में ही है अज्ञ सुख आराध्य विशेषज्ञ क्या है सुखतर माराते विशेषज्ञ जो अज्ञानी है उसको आसानी से समझाया जा सकता है और जो विशेष रूप से ज्ञानी है उसको और आसानी से समझाया जा सकता है दूसरी लाइन क्या है ज्ञान लव ब्रह्माितम नर रंजते जिसको ज्ञान छू के चला गया है उसको ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते तो जब आपको यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को जिसको ज्ञान छू के चला गया है वो अपने को विशेषज्ञ कहता है विशेषज्ञ वगैरह कुछ नहीं है ज्ञान छू के चला गया है जिसको ज्ञान छू के चला गया है उसको कुछ जब समझाना हो आप उसको डंडा मत मारिए लेकिन हाथ में डंडा ले जाइए। जब उससे बात करना हो तो हाथ में डंडा होना चाहिए। किसान हमेशा डंडा ले जाता है। सेल्फ डिफेंस में हम नहीं कह रहे हैं उसे मारने के लिए डंडा हाथ में लेकिन वो सब चार छह जने मिलके आपको पीट देंगे। गलतफहमी में ना रहिएगा कि वो डंडा नहीं उनको डंडा चलाना नहीं आता है। लेकिन आपको पीटने के लिए वो डंडा चला देंगे। और चार छ चार छ जने मिलकर चला देंगे। बहुजन [संगीत] का रास्ता लंबा है। बहुत लंबा शायद नहीं है। इतना लंबा नहीं है कि हम डर जाए। उसकी उसकी गति को देखा जा सकता है। देखा नहीं। यह बहुजन स्वराज पंचायत उसी गति का परिचायक है। कि किस गति से किस ढंग से बहुजन को अपने गंतव्य स्थान की ओर बढ़ना है। उस गंतव्य स्थान को हमने स्वराज किसी ने कहा हमारे मित्र हैं झांसी के। उन्होंने कहा कि यह गंतव्य स्थान ना कहिए। उसको आप रोज उसको प्रैक्टिस में लाने की जरूरत है। तब जाकर के वो साधन भी है, साध्य भी है, स्वराज सब कुछ है। तो स्वराज की तरह-तरह से अर्थ लगाए गए हैं। आप अपना अर्थ लगाइए। कोई आकर के गांधी जी ने क्या अर्थ लगाया बताने लग जाए और अड़ जाए कि यही अर्थ है तो उससे कहिए कि आप इस हिंदुस्तान को नहीं जानते हैं। गांधी जी में हिंदुस्तान अटता नहीं है। गांधी जी के मारफत हिंदुस्तान दिखाई देता है। तमाम महापुरुषों के मारफत हिंदुस्तान दिखाई देता है। कुछ के विचार ज्यादा प्रभावी हैं। कुछ के कम प्रभावी हैं। ये सब हो सकता है। लेकिन स्वराज जैसा बड़ा विचार जो स्पिरिचुअल से लेकर के मटेरियल तक पूरी दुनिया पूरा स्पेक्ट्रम पूरा जो ये है कैनवास है पूरा आपका स्पिरिचुअल से लेकर मटेरियल तक का उस पूरे के ऊपर स्वराज के नाम से कुछ ना कुछ उकेरा हुआ है। शुरू से ले अंत तक वो एक किसी व्यक्ति की समझ या किसी एक या दूसरे की समझ में हट जाए। वो तो हस जिस तरह कबीर जहां जाते हैं वहां के लोग कबीर का गायन बनाते हैं। हम लोगों ने लोकविद्या के मारफत या लोकविद्या की समझ के मारफत कबीर का एक री इंटरप्रिटेशन प्रस्तुत कर दिया कि कबीर को यूं देखो। कोई और कबीर को कहता है यूं देखो। दिक्कत यह है कि जो कबीर के नाम पर गद्दी पर बैठे हुए हैं, कबीर मरने के लिए चले गए कहीं और उनका वो कबीर का जन्म नहीं हुआ कहते हैं। वह प्रकट हुए थे। प्राकट्य दिवस मनाने लग गए। यह सब जब बहुजन समाज ब्राह्मणों की नकल करने लगता है तब यह होने लगता है बहुजन समाज अपनी पंचायत करे अपने लोगों से वार्ता करें। इतनी बड़ी संख्या में लोग हैं। इतने तरह के काम जानने वाले लोग हैं। इतने तरह से सोचने वाले लोग हैं। इतनी भाषाओं को जानने वाले लोग हैं। बहुजन समाज में ये सब लोग हैं। काहे को हम किसी और से बात करने के लिए जाते हैं। एक छोटी सी बात और कहानी बताऊंगा। उसके बाद मैं अपनी बात खत्म कर दूंगा। ये लंबा नहीं खींचना चाहिए। एक बार मैं हमारे यहां एक प्रोफेसर गांधियन इंस्टिट्यूट में उनके साथ गया था जसीडी। जसीडी यानी वो बैजनाथ धाम कुछ वहां काम एक बंगाल से वो संथाल थे कि नहीं ये हमें नहीं पता लगा कुछ मंडल उनका नाम था वो संथाल नहीं रहे होंगे जो भी रहे हो हम नहीं कह सकते हम इतना पूर्व के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं हमारे साथ मैं भी ब्राह्मण था और हमारे साथ जो गए थे सीनियर प्रोफेसर थे वो भी ब्राह्मण थे आया आया तो थे वह सज्जन वहां कुछ बातचीत शुरू हो गई हम तो चुप थे क्योंकि वह हमारे साथ जो थे वो हमसे 20 साल सीनियर थे प्रोफेसर थे मैं नया नया आया था गांधियन इंस्टिट्यूट में उनके साथ घूमने के लिए गया था उस आदमी ने इनसे कह दिया कि मैं ब्राह्मणों से बात ही नहीं करता हूं। अब यह हम इनको जेन्युइन आदमी समझते हैं। आज भी समझते हैं और थे। जेन्युइन आदमी थे। हमेशा दलितों के पक्ष में खड़ा होना भी जानते थे और लड़ना भी जानते थे। तो इन ये गुस्सा गए। और कुछ फिर कहने की कोशिश की तो फिर उसने कह दिया कि हम ब्राह्मणों से बात ही नहीं करते। हम नहीं कह रहे हैं कि आप ब्राह्मणों से बात ना करें। यह सुझाव हम नहीं दे रहे हैं। लेकिन हम यह जरूर कर रहे कह रहे हैं कि आप जिस तरह एक दिन उपवास करते हैं, खाना नहीं खाते हैं या नवरात्र भर कुछ लोग उपवास करते हैं। उपवास या क्या व्रत रखते हैं या जो भी कहिए आप यह तो तय कर सकते हैं कि कि एक महीना अब मैं ब्राह्मणों से बात नहीं करूंगा। देखिए कितना मजा आएगा। प्रैक्टिस तो कीजिए। बहुजन को अपने सेल्फ रियलाइजेशन का एक स्पिरिचुअल एक्ट है। हम ब्राह्मणों से बात नहीं करेंगे एक महीना भर। प्रैक्टिस में तो लाइए एक बार करके तो देखिए। उसके बाद जो लोगों ने ये तय किया है 10 20 लोग तय करें कि हम अगले महीने ब्राह्मणों से बात नहीं करेंगे। मत कीजिए। आपकी रोजीरोटी थोड़ा छीन जाएगी। अरे आप सरकारी कर्मचारी हैं तब भी आपका काम चलेगा। बोलिए मत सुन लीजिए जो कह रहा है। अफसर ब्राह्मण हो सकता है जो बोल रहा है सुन लीजिए। उससे कह दीजिए कि हम महीना भर ब्राह्मण से नहीं बात करने जा रहे हैं। इसलिए हम आपकी बात सुन लेंगे। आपको कोई जरूरत होगी तो हम लिखित दे देंगे। बोलेंगे नहीं। कुछ रास्ता निकालिए। बीच का रास्ता निकालिए। लेकिन ऐलान कीजिए कि अगला महीना अब हम ब्राह्मण से बात नहीं करेंगे। करिए तो पांच 10 लोग करिए आपस में मिल बैठकर के तय करिए हमारे कहने से मत करिए आपस में मिल बैठकर के तय करिए कि एक बार करके तो देखा जाए मत तय करिए मत करिए ये तो निर्णय आपको भाई जिसको करना है उसको निर्णय देना है कितना कोई भाषण करके चला जाए नवरात्र में व्रत रखना चाहिए जिसको रखना है वही ना तय करेगा किसी कहने से थोड़ा होगा उसका मन करेगा तो रखेगा नहीं मन करेगा तो नहीं रखेगा हम यह बस सुझाव भर आपके सामने दे रहे हैं क्योंकि मेरा अनुभव है और वह मन अनुभव बड़ा कांटे का है। बड़ा जबर किस्म का आदमी था। अड़ गया। कहने लगा हम ब्राह्मणों से बात नहीं करते। अब आप खींचते रहिए। कितना खींचेंगे? आप कहिए रामचंद्र शुक्ल को पढ़े हो। कहे नहीं हम नहीं पढ़ते। हजारी प्रसाद को पढ़े हो वह तो दूसरी लाइन के हैं कबीर पढ़ाने क्या आए होंगे कबीर पढ़ाने और सक्सेसफुल भी रहे होंगे और बढ़िया इंसान रहे होंगे और उनका दर्शन भी पढ़ने लायक होगा लेकिन और बहुत से दर्शन पढ़ने लायक है हम हजारी प्रसाद का दर्शन नहीं पढ़ेंगे हम नहीं कह रहे हैं कि आप मत पढ़िए हमने पढ़ा है हजारी प्रसाद को थोड़ा बहुत और बहुत सीखने लायक भी बहुत कुछ मालूम पड़ा है लेकिन कहीं कुछ संकल्प किसी किस्म का संकल्प जिसे एक बहुजन संकल्प का नाम दिया जा सके। आप कहिए कि ब्राह्मण ये बैठे हुए हैं राम जी यादव सामने हम पढ़ते नहीं है बहुत कम पढ़ते हैं और जो थोड़ा बहुत पढ़ते हैं वो याद रह जाता है तो बोलने में आ जाता है लेकिन कहानी नहीं पढ़ते हैं प्रेमचंद के कहानियां पढ़ी है प्रेम उपन्यास नहीं पढ़ा है एक भी उपन्यास प्रेमचंद का नहीं पढ़ा है कहानियां पढ़ी है वो आठ वॉल्यूम में आता है उसमें से कुछ दो तीन वॉल्यूम के बराबर कहानियां पढ़ी है उससे ज्यादा पढ़ी नहीं है इनकी एक किताब है आधा बाजा राम जी यादव बैठे हुए हैं सामने। बहुजन प्रवक्ता हैं और इनकी किताब पढ़ के हमारे समझ में यह आया कि बहुजन चेतना पर केंद्रित बहुजन चेतना से हाका हुआ नहीं। हाकी नहीं जाएगी। कहानी किसी से हाकी नहीं जाएगी। कहानी तो कहानीकार बनाएगा। वो ना बहुजन चेतना से हाकी जाएगी ना किसी और चेतना से। लेकिन बहुजन चेतना प्रमुख रूप से अभिव्यक्त हो रही हो। ऐसी कहानी तो हो ही सकती है। उस कहानी चार पांच छह कहानी पढ़ी तीन चार कहानी पढ़ी अच्छी लगी तो हम बाकी कुछ 101 कहानियां है। बाकी भी सब पढ़ गए। बहुत बड़ी कहानियां नहीं है। कोई 20 पेज की है, कोई 25, कोई आठ नौ पेज की है। इससे ज्यादा छोटी किताब है। अगोरा प्रकाशन आधा बाजा बहुजन चेतना का वो सब जो उनके क्या कहते हैं जो पात्र हैं, प्रमुख पात्र हैं वे बहुजन चेतना के प्रतीक हैं। प्रतीक या जो भी भाषा आप जो भी इस्तेमाल करें हम वो कहीं पर खोजे तो हम जो हमें नहीं पता है उसे हम अपने लोगों के बीच में पहले क्या है वो तो खोजे हम तुरंत क्यों पहुंच जाते हैं किसी और के पास में जो पोथी पढ़ के बताता है अपने लोगों के बीच में तो खोजे कि क्या है कुछ संकल्प करना तो सीखें और पहला संकल्प मेरी ओर से जो सुझाव है पहला संकल्प यह है कि अगले महीने से या जब हमें उचित समय लगे एक महीना हम ब्राह्मणों से बात नहीं करेंगे। देखिए क्या मजा आता है। हो सकता है कि आपको ना आए मजा। आप कहे कि यह गलत रास्ता है। उसके बाद एक पंचायत रखिए। 20 जने जमा होइए। उसके ऊपर बात कीजिए। कि यह सही रास्ता है या नहीं है। इसका अनुभव संचित अनुभव क्या हमें आगे ले जाएगा? क्या उस पॉलिटिकल स्पेस के निर्माण में सहायक होने जा रहा है? यही सब बातें हैं और यह तो अंतहीन कहानी है। इसको मैं अपनी बात खत्म करता हूं और एक बात शुरू हो गई है। छोटे पैमाने पे शुरू हुई है। छोटे-छोटे पैमानों पर बात होती रहे। हम नहीं चाहते हैं। हम हम नहीं यह जरूरी नहीं है कि सैकड़ों लोग हो। 400 लोगों में बात करने के लिए आपको बहुत सी वो बात करनी पड़ेगी जो 400 लोग सुनना चाहते हैं पहले से। यहां बहुत सी बातें ऐसी हुई हैं जो वहां नहीं हो पाएंगी। शुरुआत तो की जाए और इस बात को आगे बढ़ाया जाए। बहुजन स्वराज पंचायतते की जाए। किसी और नाम से किया जाए। हमारे एक मित्र हैं यहां उड़ीसा से आए हुए हैं। वो नवनिर्माण के मारफत वो बातें कर रहे हैं। नवनिर्माण के मारफत की ये बातें तो शुरू हो लेकिन नामकरण महत्वपूर्ण जरूर है। चाहे जिस नाम से चाहे जो काम नहीं हो पाएगा। इसलिए बस इसी से अपनी बात खत्म करता हूं। आप लोगों को सबको नमस्कार और विद्या आश्रम की ओर से विद्या आश्रम की ओर से यह आभार प्रकट करता हूं कि यहां पर यह बहुजन स्वराज पंचायत हो सकी और आशा है कि एक ऐसी शुरुआत हो जाएगी कि हम लोग को यहां क्या बात हुई थी उसकी ओर मुड़ के देखने की जरूरत नहीं होगी। हमेशा आगे ही देखते चले जाएंगे। बस इतना ही नमस्कार।
पारमिता:
बहुत-बहुत धन्यवाद सुनील जी। अब हम लोग इस कार्यक्रम को इस पूरे बहुजन स्वराज पंचायत को समाप्त करते हैं। करने की घोषणा करते हैं। उसके पहले एक हमारे पगडंडी के साथियों ने हम लोग तीन दिन से उस पर बात करना अनाउंस करना चाह रहे थे लेकिन भूल जा रहे थे। एक कला कक्ष बनाया है जिसमें तमाम प्रकार के उनके चित्र लगे हुए हैं। तो जो साथी यहां बैठे हैं भोजन के बाद उस कला कक्ष में जरूर जाएं और वो बहुजन समुदाय के जुड़े हुए विभिन्न पक्षों को दर्शाते हुए वह चित्र बने हुए हैं। उन चित्रों को देखें और यहां से मैं अपने मंच पर बैठे हुए अध्यक्ष लोगों को भी हार्दिक धन्यवाद देती हूं कि इतनी धूप में भी आप लोग बैठे इस मंच पे और आप सभी लोग जो आए हुए हैं आप सभी लोगों को बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद बहुजन स्वराज पंचायत की तरफ से विशेषकर पगडंडी समूह को भी बहुत-बहुत धन्यवाद कि इन लोगों ने इस आयोजन को करने में बहुत अपना समय दिया और बहुत उत्साह से बच्चे ये लगे रहे। उससे बड़ी जीवंतता भी दिखाई दे रही थी। चहलपहल भी दिख रही थी इनसे कि कहीं जो है कल मतलब वो बन रहा स्केचिंग हो रही है। कहीं कलाकृतियां बन रही है। कहीं कुछ लिखे जा रहे हैं। कहीं आपस में गप हो रहा है। खाना बनाने में मदद कर रहे थे। खाना परोसने में मदद कर रहे थे। काफी बाकी जो ये खाने वाली टीम बना रहे थे साथी उनको भी बहुत-बहुत धन्यवाद। बहुत स्वादिष्ट बहुत अच्छा खाना बना रहे थे। बहुत समय से खाना सबको मिलता रहा और जो आए हुए भी साथी हैं, किसान यूनियन के साथी हैं, भारतीय किसान यूनियन के बहनें भी आई हैं। दूरदराज गांव से परसों भी आई थी आप लोग। आप सभी लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन इस पंचायत को धन्यवाद से काम नहीं चलेगा। पंचायत को बहुजन स्वराज पंचायत को बहुजन स्वराज की जो बातें हैं उनको हमको आगे बढ़ाना है। कैसे आगे गांव में भी हमारी पंचायतें लगे इसके तरफ चलना है। दूरदरा से जो हमारे साथी आए हैं विजय जावंदिया जी अवधेश जी साउथ से जो साथी आए हैं। आप सभी लोगों का धन्यवाद। रामकृष्ण गांधी जी को हार्दिक आभार धन्यवाद हमारा यहां से और अक्षय भी उड़ीसा से आए हैं। बहुत व्यस्तता से में समय निकाल के आए हैं। उनको भी धन्यवाद। हमारे साथी कानपुर से अभिजीत मित्र जी आए हुए हैं। अभिजीत जी को और प्रभाल जी को मैं बहुत कम बोलते हुए देखा है मैंने। आज तो प्रभाल जी को मैंने मंच से बोलते हुए देख लिया। नहीं तो ऐसा बहुत कम होता है। प्रभाल जी का नाम लेते ही प्रभाल जी मना कर देते हैं कि मैं नहीं बोलूंगा। तो सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। हमारे जो है हमारे जो रिकॉर्डिंग करने वाले साथी हैं आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद। आप जो है वहां से आए हुए हैं मालवा से जो है और इंदौर से और तीन दिन से लगातार आप रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। राम जी यादव और अपर्णा जी को भी बहुत हार्दिक धन्यवाद। आप लोग भी लगातार तीन दिन से इस कार्यक्रम में लगे हुए थे। रिकॉर्डिंग भी किया और कला सत्र को बहुत सुंदर ढंग से राम जी यादव जी ने उसको चलाया। हरिश्चंद्र केवट को भी धन्यवाद और बाकी सभी लोगों को सभी साथियों हमारे जो मुख्य सबसे बड़ी बात है जो मालवा की टीम आई थी गाने वाली उसने बहुत सुंदर कल का भजन गाया है और वो मतलब कि वो जो उनकी थी क्या नाम राधा राधा स्वामी राधास्वामी सत्संग के साथी थे वो वो चले गए हैं इंदौर लेकिन उनको हम अपना धन्यवाद प्रेषित करते हैं। हमारे साहू भगत जी को भी धन्यवाद। परसों भी बहुत सुंदर भजन सुनाए कबीर के आज भी सुनाए। अब मैं मंच पर अरुण जी को बुलाती हूं अरुण जी से और इसके साथ हम पगडंडी ग्रुप के श्याम को भी बुलाते हैं। श्याम भी आज अपना एक गीत प्रस्तुत करेंगे और अरुण जी अपने गीत प्रस्तुत करेंगे। अरुण जी ने किताब लेके आए हुए हैं और उसके साथ अपना समूह बनाएंगे। अरुण जी आपको स्वागत करते हैं अरुण जी का।